गीता जयंती का महत्व भारतीय संस्कृति और हिन्दू धर्म में विशेष स्थान रखता है। यह दिन भगवद गीता के उपदेशों के जन्म की स्मृति में मनाया जाता है। भगवद गीता, महाभारत के भीष्म पर्व का हिस्सा है, जो भगवान श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए महान उपदेशों का संग्रह है। गीता जयंती हर वर्ष कार्तिक माह की शुक्ल एकादशी को मनाई जाती है, जो आमतौर पर नवम्बर और दिसम्बर के बीच आती है। इस दिन का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व बहुत अधिक है, क्योंकि इसे भगवान श्री कृष्ण के दिव्य उपदेशों के रूप में जीवन जीने का मार्गदर्शन प्राप्त होता है।
भगवद गीता का पौराणिक महत्त्व:
भगवद गीता वह दिव्य ग्रंथ है, जो महाभारत के भीष्म पर्व में अर्जुन और श्री कृष्ण के संवाद के रूप में समाहित है। जब कुरुक्षेत्र में महाभारत का युद्ध हो रहा था, तब अर्जुन युद्ध भूमि पर भ्रमित और मानसिक रूप से असहज हो गए थे। वे अपने रिश्तेदारों, गुरुजनों और मित्रों से युद्ध करने को लेकर असमंजस में थे। इस संकट की घड़ी में भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें भगवद गीता का उपदेश दिया, जिसमें जीवन, धर्म, कर्म, भक्ति, योग और मोक्ष के बारे में अद्भुत ज्ञान प्रदान किया।
भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को बताया कि जीवन का उद्देश्य धर्म का पालन करना है, और कर्म किए बिना फल की इच्छा नहीं करनी चाहिए। गीता के उपदेशों में भगवान श्री कृष्ण ने यह भी कहा कि "कर्म करो, फल की चिंता मत करो"। गीता में भगवान ने योग के विभिन्न प्रकारों की व्याख्या की, जैसे राजयोग, ज्ञानयोग, भक्ति योग, और कर्मयोग। इन सभी योगों का उद्देश्य व्यक्ति को आत्मज्ञान की ओर प्रेरित करना है, ताकि वह जीवन के हर पहलू को समझ सके और आत्मा के परम सत्य को जान सके।
गीता जयंती का पौराणिक महत्व:
भगवद गीता का पौराणिक महत्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि इसे स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने दिया है। गीता को सुनकर अर्जुन ने न केवल अपने मनोबल को पाया, बल्कि उसने जीवन जीने के एक नए दृष्टिकोण को अपनाया। इसके द्वारा अर्जुन ने युद्ध की चुनौती को स्वीकार किया और धर्म के रास्ते पर चलने का निर्णय लिया। गीता का ज्ञान आज भी हमारे जीवन में प्रासंगिक है, क्योंकि यह हमें हर परिस्थिति में सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।
गीता जयंती का पर्व इस महान उपदेश के प्रसार के उद्देश्य से मनाया जाता है, ताकि लोग भगवद गीता के शिक्षाओं का पालन करें और अपने जीवन को सार्थक बना सकें। इस दिन विशेष रूप से गीता का पाठ, भव्य पूजा और हवन आयोजित किए जाते हैं, और लोग गीता के संदेशों को अपने जीवन में उतारने का संकल्प लेते हैं।
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आज के संदर्भ में गीता जयंती का महत्व:
आज के समय में भी गीता का संदेश अत्यंत महत्वपूर्ण है। वर्तमान जीवन में जहां लोग व्यस्त और तनावग्रस्त हैं, वहां गीता के उपदेश हमें मानसिक शांति और संतुलन बनाए रखने में मदद करते हैं। गीता में बताए गए कर्मयोग और भक्ति योग का पालन करने से व्यक्ति न केवल अपने जीवन में संतोष पा सकता है, बल्कि समाज में भी सकारात्मक बदलाव ला सकता है।
- कर्म योग: गीता के अनुसार, हमें अपने कर्मों में निष्कलंक निष्ठा और समर्पण के साथ जुटना चाहिए। आज के समय में जब लोग सफलता की दौड़ में भाग रहे हैं, तो गीता का यह उपदेश उन्हें अपने कार्यों में संतुलन और ईमानदारी बनाए रखने के लिए प्रेरित करता है।
- ज्ञान योग: गीता में भगवान श्री कृष्ण ने ज्ञान और विवेक की महत्ता पर जोर दिया है। आज के समय में जब तकनीकी विकास और जानकारी का अंबार है, गीता का ज्ञान योग हमें सही जानकारी और विवेकपूर्ण निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करता है।
- भक्ति योग: गीता में भक्ति के माध्यम से भगवान के प्रति निष्ठा और श्रद्धा की बात की गई है। आजकल की तनावपूर्ण जीवनशैली में भक्ति योग एक व्यक्ति को मानसिक शांति और संतोष देने का साधन बन सकता है।
- जीवन के प्रति दृष्टिकोण: गीता के उपदेशों से हमें यह सीख मिलती है कि जीवन में जो कुछ भी हो, हमें उसे स्वीकार करना चाहिए और अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश करनी चाहिए। इससे हम जीवन के हर संघर्ष का सामना शांति और धैर्य के साथ कर सकते हैं।
समाप्ति में:
गीता जयंती न केवल भगवान श्री कृष्ण के उपदेशों की याद दिलाती है, बल्कि यह हमें अपने जीवन को सही दिशा में ले जाने के लिए प्रेरित करती है। यह दिन हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि हम अपने जीवन में गीता के उपदेशों को कितनी गंभीरता से पालन कर रहे हैं। गीता का संदेश आज भी अत्यधिक प्रासंगिक है, और इसे जीवन में उतारने से हम हर परिस्थिति का सामना आत्मविश्वास और शांति के साथ कर सकते हैं।
इसलिए गीता जयंती को मनाना हमारे जीवन में इस दिव्य ग्रंथ की शिक्षा को पुनः स्मरण करने और अपने आचरण में सुधार लाने का एक महत्वपूर्ण अवसर है।
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