August 6, 2025 4:42 AM

बिजली की 829 किलोमीटर लंबी चमक का बना विश्व रिकॉर्ड: वैज्ञानिकों को चेतावनी, खतरा बढ़ रहा है

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भोपाल। आकाश में कौंधती बिजली की चमक अब केवल भय और रोमांच का प्रतीक नहीं रह गई, बल्कि यह जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय असंतुलन का खतरनाक संकेत बनती जा रही है। हाल ही में विश्व मौसम संगठन (WMO) ने पुष्टि की है कि अक्टूबर 2017 में अमेरिका के टेक्सास से कंसास तक फैली बिजली की एक असाधारण चमक ने 829 किलोमीटर की दूरी तय कर नया वैश्विक रिकॉर्ड बनाया है। इसे ‘मेगाफ्लैश’ नाम दिया गया है, जो आज तक दर्ज की गई सबसे लंबी बिजली की रेखा है।

यह दूरी पेरिस से वेनिस के बीच की भौगोलिक दूरी के बराबर है और इसने वर्ष 2020 में दर्ज 768 किलोमीटर के पिछले रिकॉर्ड को 61 किलोमीटर से पीछे छोड़ दिया। इस घटना की सटीक माप व पुष्टि WMO की वेदर एंड क्लाइमेट एक्सट्रीम्स कमेटी ने अत्याधुनिक सैटेलाइट प्रौद्योगिकी की सहायता से की। अमेरिकी मौसम विज्ञान सोसाइटी के बुलेटिन में भी इसकी पुष्टि की गई है।


क्या है ‘मेगाफ्लैश’?

‘मेगाफ्लैश’ वह स्थिति होती है जब बिजली की चमक सामान्य भौगोलिक सीमाओं को पार करते हुए सैकड़ों किलोमीटर तक फैली होती है। वैज्ञानिक भाषा में इसे हॉरिजॉन्टल मेसोस्केल लाइटनिंग डिस्चार्जेस कहा जाता है। यह घटना न केवल विज्ञान के लिए चुनौती है बल्कि मानव जीवन, हवाई यातायात और पारिस्थितिकी के लिए भी खतरे की घंटी है।

WMO की महासचिव सेलेस्टे साउलो ने इस घटना पर टिप्पणी करते हुए कहा, “आकाशीय बिजली प्रकृति की अद्भुत शक्ति है, परंतु यह प्रतिवर्ष सैकड़ों जिंदगियां भी लील जाती है। यही वजह है कि इसे वैश्विक ‘अर्ली वार्निंग्स फॉर ऑल’ योजना में प्राथमिकता दी गई है।”


17.1 सेकंड तक लगातार कौंधती रही बिजली

इतिहास में बिजली की कई घटनाएं वैज्ञानिकों के लिए शोध का विषय बनी हैं। 18 जून 2020 को उरुग्वे और उत्तरी अर्जेंटीना में बिजली की एक रेखा लगातार 17.1 सेकंड तक आकाश में चमकती रही, जो अब तक दर्ज सबसे लंबी समयावधि की बिजली थी। इस घटना ने यह साबित कर दिया कि बिजली की प्रकृति पहले से कहीं अधिक शक्तिशाली और जटिल हो चुकी है।


बढ़ता खतरा: हर साल करोड़ों पेड़ और सैकड़ों जानें जाती हैं

बिजली गिरने की घटनाएं केवल मानव जीवन ही नहीं, बल्कि पारिस्थितिक तंत्र को भी भारी नुकसान पहुंचा रही हैं। एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन के अनुसार, हर साल करीब 32 करोड़ पेड़ केवल बिजली गिरने से नष्ट हो रहे हैं। यह आंकड़ा बताता है कि बिजली अब पर्यावरण के लिए भी एक बड़ी आपदा बनती जा रही है।

इतिहास में बिजली गिरने से हुई बड़ी दुर्घटनाओं में 1975 में जिम्बाब्वे में एक ही स्थान पर 21 लोगों की मौत और 1994 में मिस्र में बिजली गिरने से तेल टैंक फटने की घटना, जिसमें 469 लोगों की अप्रत्यक्ष मौत हुई, आज भी चेतावनी के उदाहरण हैं।


जलवायु परिवर्तन का प्रभाव या प्राकृतिक चक्र?

विज्ञान और मौसम विज्ञान विशेषज्ञ इस बात पर मंथन कर रहे हैं कि इन घटनाओं का संबंध जलवायु परिवर्तन से है या ये प्रकृति का सामान्य विकासक्रम है। लेकिन यह स्पष्ट है कि जैसे-जैसे वायुमंडलीय अस्थिरता और तापमान में परिवर्तन हो रहा है, बिजली की तीव्रता और प्रसार क्षेत्र दोनों बढ़ रहे हैं। इससे न केवल जानमाल का खतरा बढ़ा है, बल्कि वनों की आग, हवाई दुर्घटनाएं और पशु-पक्षियों की मृत्यु जैसी आपदाएं भी बढ़ी हैं।


जनता और प्रशासन के लिए जरूरी चेतावनी

‘मेगाफ्लैश’ जैसी घटनाएं बताती हैं कि बिजली अब सीमित भू-भाग तक सीमित नहीं रह गई है। इसकी मारक क्षमता कई सौ किलोमीटर तक फैल सकती है। इसलिए अब ज़रूरत है कि:

  • सरकारें चेतावनी तंत्र को मजबूत करें।
  • ग्रामीण इलाकों में बिजली गिरने से बचाव के उपायों को प्राथमिकता दें।
  • स्कूलों, किसानों और सामान्य जनता को जागरूक करने के कार्यक्रम चलाए जाएं।
  • वन क्षेत्रों और पर्वतीय इलाकों में अलर्ट सिस्टम अनिवार्य किया जाए।

‘मेगाफ्लैश’ केवल एक तकनीकी उपलब्धि या वैज्ञानिक रिकॉर्ड नहीं है, बल्कि यह एक बड़ा संकेत है कि अब हमें प्रकृति की शक्ति को और गंभीरता से लेना होगा। आसमानी बिजली अब पहले से कहीं अधिक दूर तक फैलने वाली, लंबे समय तक टिकने वाली और अत्यधिक घातक बन चुकी है। यह बदलाव प्राकृतिक आपदाओं के बढ़ते खतरे की ओर हमारा ध्यान खींचता है।



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