पटना। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) में अध्यक्ष पद को लेकर कोई संशय नहीं रह गया है। पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने सोमवार को पार्टी कार्यालय पहुंचकर औपचारिक रूप से अध्यक्ष पद के लिए नामांकन दाखिल किया। इस दौरान लालू परिवार के तमाम सदस्य—राबड़ी देवी, तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव उनके साथ मौजूद थे। पार्टी कार्यालय के बाहर कार्यकर्ताओं की भारी भीड़ जमा रही और ‘लालू यादव ज़िंदाबाद’ के नारों से माहौल गूंजता रहा।
पार्टी की ओर से यह पहले ही तय माना जा रहा था कि लालू यादव ही अगली बार भी अध्यक्ष होंगे। नामांकन दाखिल करने की प्रक्रिया अब इस संभावना पर मुहर लगाती दिख रही है, क्योंकि अब तक किसी अन्य नेता ने अध्यक्ष पद के लिए नामांकन नहीं किया है। ऐसे में 5 जुलाई को होने वाली औपचारिक घोषणा केवल औपचारिकता भर मानी जा रही है। उल्लेखनीय है कि 5 जुलाई को लालू प्रसाद यादव का जन्मदिन भी है, जिसे पार्टी ‘लालू सम्मान दिवस’ के रूप में मनाने की तैयारी कर रही है।
राजद के वरिष्ठ नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी पहले ही यह स्पष्ट कर चुके हैं कि पार्टी नेतृत्व को लेकर कोई भ्रम नहीं है और लालू यादव ही अगला अध्यक्ष होंगे। उनका कहना था कि पार्टी को जिस प्रकार की सामाजिक और राजनीतिक दिशा लालू यादव ने दी है, उसे जारी रखना आवश्यक है।

हालांकि, इस नामांकन प्रक्रिया के दौरान एक अनुपस्थिति खास तौर पर चर्चा में रही—पूर्व प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह पार्टी कार्यालय में मौजूद नहीं थे। इसको लेकर राजनीतिक हलकों में तरह-तरह की चर्चाएं शुरू हो गई हैं। माना जा रहा है कि तेजस्वी यादव और जगदानंद सिंह के बीच पिछले कुछ समय से चली आ रही नाराज़गी इसकी वजह हो सकती है। जगदानंद सिंह की अनुपस्थिति को कई लोग पार्टी में संभावित आंतरिक मतभेदों के संकेत के रूप में देख रहे हैं।
राजद के आंतरिक समीकरणों पर नजर रखने वाले विश्लेषकों का मानना है कि लालू यादव का दोबारा अध्यक्ष बनना पार्टी के पारंपरिक वोट बैंक को एकजुट रखने के लिहाज़ से अहम कदम है। साथ ही, यह भी देखा जा रहा है कि पार्टी नेतृत्व अब एक बार फिर से तेजस्वी यादव को आगे लाकर भविष्य की राजनीति की दिशा तय करना चाहता है, लेकिन नेतृत्व का अंतिम नियंत्रण फिलहाल लालू यादव के ही पास रहेगा।
राजद कार्यकर्ताओं और समर्थकों के लिए यह दिन उत्सव जैसा रहा। पार्टी के प्रदेश कार्यालय में ढोल-नगाड़ों और मिठाइयों के साथ नामांकन को जश्न में बदला गया। कार्यकर्ताओं ने इसे ‘नई ऊर्जा’ और ‘संघर्ष के प्रतीक’ लालू यादव की वापसी करार दिया।
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