नई दिल्ली, 5 जनवरी (हि.स.)। शनिवार की सुबह गोताखोरों के एक समूह ने एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक खोज की। उन्होंने लक्षद्वीप द्वीपसमूह के कल्पेनी द्वीप के पास समुद्र के भीतर 17वीं या 18वीं शताब्दी के एक यूरोपीय युद्धपोत का मलबा पाया। यह खोज समुद्र के नीचे छिपे ऐतिहासिक धरोहरों का पता लगाने के उद्देश्य से किए गए शोध का हिस्सा थी।
शोधकर्ताओं के अनुसार, इस युद्धपोत का मलबा इस क्षेत्र में यूरोपीय शक्तियों के समुद्री संघर्षों और व्यापार मार्गों पर उनके प्रभुत्व को लेकर महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है। मलबे के अध्ययन से यह निष्कर्ष निकाला गया कि यह युद्धपोत पुर्तगाली, डच या ब्रिटिश में से किसी एक यूरोपीय देश का हो सकता है। यह खोज इस प्रकार की पहली खोज मानी जा रही है, जो लक्षद्वीप के पश्चिमी हिस्से में स्थित जहाज़ के मलबे से हुई है।
गोताखोरों ने जहाज़ के मलबे के आसपास विभिन्न सामग्रियों को पाया, जिसमें तोपें और अन्य सैन्य उपकरण शामिल हैं, जो यह संकेत देते हैं कि यह एक युद्धपोत था। यह युद्धपोत संभवतः उस समय की तकनीक और समुद्री युद्ध के लिए बनाए गए जहाज़ों का हिस्सा रहा होगा। मलबे से प्राप्त जानकारी के आधार पर, यह माना जा सकता है कि युद्धपोत लोहे और लकड़ी के संयोजन से बना था, जो उस युग की खासियत थी।
यह खोज 17वीं और 18वीं सदी के समुद्री संघर्षों के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, खासकर मध्य पूर्व और श्रीलंका के बीच व्यापार मार्गों पर प्रभुत्व की लड़ाई के संदर्भ में। यह मलबा उस समय के समुद्री युद्धों और समुद्री व्यापार की रणनीतियों को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक कड़ी के रूप में सामने आया है।
यह खोज न केवल लक्षद्वीप बल्कि पूरे भारतीय उपमहाद्वीप के समुद्री इतिहास के अध्ययन के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जा रही है। विशेषज्ञ इस मलबे की अधिक गहन जांच करने की योजना बना रहे हैं ताकि इस युद्धपोत के बारे में और भी जानकारी प्राप्त की जा सके और इस क्षेत्र के समुद्री इतिहास को बेहतर तरीके से समझा जा सके।