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April 19, 2025 7:28 AM

कुणाल कामरा पहुंचे बॉम्बे हाईकोर्ट: बोले, “मेरी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला”

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मुंबई।
स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा एक बार फिर कानूनी विवादों के केंद्र में हैं। इस बार मामला उनके एक कॉमेडी शो में उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे पर किए गए व्यंग्यात्मक गीत को लेकर है। कामरा ने इस मामले में अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द कराने के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है। अदालत इस याचिका पर मंगलवार को सुनवाई करेगी।

क्या है पूरा मामला?

पिछले महीने मुंबई के खार इलाके के एक होटल में आयोजित कॉमेडी शो में कुणाल कामरा ने एकनाथ शिंदे को लेकर मजाकिया अंदाज में एक गीत प्रस्तुत किया था। इस शो का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिसके बाद शिंदे गुट की शिवसेना ने इसे ‘अपमानजनक’ बताते हुए कड़ी आपत्ति जताई।

इसके बाद मुंबई के विभिन्न पुलिस थानों—विशेषकर खार पुलिस स्टेशन—में कामरा के खिलाफ शिकायतें दर्ज करवाई गईं। इन शिकायतों के आधार पर पुलिस ने उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की और खार पुलिस स्टेशन ने उन्हें तीन बार समन भेजा, लेकिन कामरा अब तक पूछताछ के लिए पेश नहीं हुए हैं।

हाईकोर्ट में क्या कहा कामरा ने?

कामरा की ओर से अधिवक्ता मीनाज काकलिया ने सोमवार को बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। इसमें कहा गया है कि—

  • उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर भारतीय संविधान के तहत दिए गए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, किसी भी पेशे को चुनने की स्वतंत्रता, और जीवन व व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
  • कॉमेडी और व्यंग्य सार्वजनिक संवाद का हिस्सा हैं और उन्हें अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।

कामरा ने यह भी तर्क दिया है कि उनके खिलाफ दर्ज कई एफआईआर एक ही घटनाक्रम से जुड़ी हैं, इसलिए ये ‘डुप्लिकेशन ऑफ प्रोसेस’ (प्रक्रिया की पुनरावृत्ति) हैं और उन्हें रद्द किया जाना चाहिए।

कोर्ट की प्रतिक्रिया और अगला कदम

याचिका पर सुनवाई मंगलवार को न्यायमूर्ति सारंग कोतवाल की अदालत में होगी। सोमवार को कोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए इसे सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या कोर्ट अभिव्यक्ति की आज़ादी बनाम राजनीतिक मर्यादा के इस संवेदनशील मुद्दे पर कोई अहम दिशा-निर्देश देता है या मामले को पुलिस जांच की प्रक्रिया पर ही छोड़ देता है।

क्यों अहम है यह मामला?

कुणाल कामरा पहले भी अपने राजनीतिक व्यंग्य और कटाक्षों के लिए चर्चा में रह चुके हैं। इस बार उनका मामला केवल हास्य तक सीमित नहीं है, बल्कि यह अभिव्यक्ति की सीमा, संविधानिक अधिकार और सत्ता के प्रति सवाल उठाने की आज़ादी जैसे बड़े मुद्दों से भी जुड़ गया है। यह केस आने वाले दिनों में कॉमेडी और राजनीतिक आलोचना के बीच की कानूनी रेखाओं को परिभाषित कर सकता है।

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