October 16, 2025 1:16 AM

किश्तवाड़ में बादल फटने से भीषण तबाही: 65 की मौत, सैकड़ों लापता, मचैल माता यात्रा स्थल पर मचा हाहाकार

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किश्तवाड़ में बादल फटने से तबाही: 65 मौतें, सैकड़ों लापता, मचैल माता यात्रा प्रभावित

किश्तवाड़ (जम्मू-कश्मीर)।
जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले के पड्डर सब-डिवीजन के चसोटी गांव में 14 अगस्त की दोपहर 12:30 बजे बादल फटने की घटना ने पूरे इलाके को मौत और तबाही के मंजर में बदल दिया। पहाड़ों से आए मलबे और तेज बहाव वाले पानी ने पलक झपकते ही वहां मौजूद सैकड़ों श्रद्धालुओं, दुकानों, लंगरों और बसों को अपने साथ बहा दिया। यह स्थान मचैल माता यात्रा का पहला पड़ाव था, जहां हजारों श्रद्धालु यात्रा शुरू करने से पहले रुके हुए थे।

तबाही का पैमाना

प्रशासनिक आंकड़ों के अनुसार, अब तक 65 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है, जिनमें से 21 शवों की पहचान हो पाई है। 167 लोगों को जिंदा बचाया गया है, लेकिन इनमें से 38 की हालत नाजुक बनी हुई है। मुख्यमंत्री अब्दुल्ला ने बताया कि 100 से अधिक लोग अब भी लापता हैं, जबकि स्थानीय और कुछ राजनीतिक नेताओं का दावा है कि मलबे में दबे लोगों की संख्या 500 से 1000 तक हो सकती है।

कैसे हुआ हादसा

चसोटी गांव, किश्तवाड़ शहर से लगभग 90 किलोमीटर दूर और मचैल माता मंदिर के मार्ग पर पहला प्रमुख पड़ाव है। यह पड्डर घाटी के भीतर 14-15 किलोमीटर अंदर स्थित है। इस क्षेत्र के पहाड़ 1,818 मीटर से 3,888 मीटर की ऊंचाई तक फैले हुए हैं, जिन पर ग्लेशियर और ढलानें मौजूद हैं। इसी कारण यहां का जल प्रवाह बेहद तेज होता है। 14 अगस्त को अचानक अत्यधिक वर्षा और ग्लेशियर पिघलने के कारण ऊपरी पहाड़ों से मलबे और पानी का भारी बहाव आया, जिसने कुछ ही मिनटों में पूरा इलाका जलमग्न कर दिया।

मचैल माता यात्रा पर पड़ा असर

हर साल अगस्त से सितंबर तक चलने वाली मचैल माता यात्रा में हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं। यह यात्रा इस साल 25 जुलाई से शुरू हुई थी और 5 सितंबर तक जारी रहनी थी। जम्मू से किश्तवाड़ तक 210 किमी का सफर सड़क से तय किया जाता है। पड्डर से चसोटी तक 19.5 किमी सड़क मार्ग है, इसके बाद 8.5 किमी की पैदल यात्रा होती है। घटना के समय सैकड़ों यात्री चसोटी में थे, जहां बसें, टेंट और लंगर यात्रा की तैयारियों में लगे हुए थे।

राहत और बचाव कार्य

किश्तवाड़ के डिप्टी कमिश्नर पंकज शर्मा ने बताया कि एनडीआरएफ की टीमें लगातार सर्च और रेस्क्यू ऑपरेशन में लगी हुई हैं। दो और टीमें रास्ते में हैं। सेना की व्हाइट नाइट कोर की मेडिकल यूनिट, जम्मू-कश्मीर पुलिस, एसडीआरएफ और अन्य एजेंसियां भी मौके पर जुटी हुई हैं। कुल 300 जवान, जिन्हें 60-60 के पांच समूहों में बांटा गया है, राहत कार्य में लगे हैं। सेना के आरआर जवान भी घायलों को सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाने के लिए कठिन परिस्थितियों में काम कर रहे हैं।

भयावह मंजर

न्यूज एजेंसी पीटीआई के अनुसार, इस आपदा के दृश्य दिल दहला देने वाले हैं। कई शव खून से सने हुए और मलबे में बुरी तरह दबे मिले। कई घायलों के फेफड़ों में कीचड़ भर गया, पसलियां टूट गईं और शरीर के अंग बिखर गए। कीचड़ और मलबे में दबे लोगों को निकालने के लिए स्थानीय ग्रामीणों, सेना और पुलिस ने घंटों मशक्कत की। कई घायलों को पीठ पर लादकर, घुटनों तक कीचड़ में चलकर अस्पताल पहुंचाया गया।

स्थानीय और राजनीतिक प्रतिक्रिया

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने घटनास्थल का जायजा लेने के बाद कहा कि “मुझे लगता है कि मलबे में दबे लोगों की संख्या आधिकारिक अनुमान से कहीं ज्यादा हो सकती है।” वहीं, नेशनल कॉन्फ्रेंस पार्टी की एक सदस्य ने दावा किया कि 1000 से अधिक लोग अब भी दबे हो सकते हैं।

चुनौतियां और खतरे

पड्डर घाटी का इलाका भौगोलिक दृष्टि से बेहद चुनौतीपूर्ण है। यहां संकरी सड़कें, खड़ी ढलानें और ऊंचाई के कारण बचाव दलों के लिए मौके तक पहुंचना कठिन हो रहा है। भारी बारिश और पहाड़ी ढलानों से लगातार गिरते पत्थर राहत कार्य को और जोखिम भरा बना रहे हैं।

सरकार की अपील

सरकार ने लोगों से प्रभावित इलाकों से दूर रहने की अपील की है और तीर्थयात्रियों को यात्रा स्थगित करने की सलाह दी है। एनडीआरएफ और सेना ने राहत शिविर भी स्थापित किए हैं, जहां पीड़ितों को अस्थायी आश्रय, भोजन और चिकित्सा सुविधा दी जा रही है।


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