किसानों ने अपनी मांगों को लेकर लंबे समय से चल रहे आंदोलन को और तेज करते हुए अब दिल्ली कूच का ऐलान कर दिया है। पंजाब और हरियाणा के शंभू बॉर्डर पर फरवरी से डटे किसान संगठनों ने शुक्रवार दोपहर करीब 1 बजे दिल्ली के लिए पैदल मार्च शुरू किया।
क्या है मामला?
शंभू बॉर्डर पर किसान संगठनों ने अपनी विभिन्न मांगों को लेकर आंदोलन छेड़ा हुआ है। इनमें न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी, कर्ज माफी, बिजली बिलों में राहत, और खाद्य पदार्थों के बढ़ते दामों को लेकर समाधान जैसी मांगें शामिल हैं। आंदोलनकारियों का कहना है कि केंद्र सरकार उनकी समस्याओं की अनदेखी कर रही है, और बार-बार की वार्ताओं के बावजूद कोई ठोस समाधान नहीं निकाला गया है।
दिल्ली कूच की घोषणा
किसान संगठनों ने घोषणा की कि अब उनका आंदोलन सिर्फ शंभू बॉर्डर तक सीमित नहीं रहेगा। उन्होंने दिल्ली में अपनी आवाज बुलंद करने का निर्णय लिया है। इस कदम के तहत शुक्रवार को करीब 100 किसानों ने बैरिकेड्स को तोड़ते हुए कंटीले तार हटाए और दिल्ली की ओर कूच शुरू कर दिया। किसानों का कहना है कि यह सिर्फ शुरुआत है, और आने वाले दिनों में बड़ी संख्या में किसान दिल्ली के लिए रवाना होंगे।
सरकार और प्रशासन की प्रतिक्रिया
सरकार और स्थानीय प्रशासन ने इस कूच को रोकने के लिए शंभू बॉर्डर पर भारी पुलिस बल तैनात किया है। साथ ही बैरिकेडिंग और कंटीले तार लगाए गए थे ताकि किसानों को आगे बढ़ने से रोका जा सके। लेकिन किसानों ने ये बाधाएं पार कर लीं और साफ तौर पर कहा कि वे अपने हक के लिए किसी भी हद तक जाएंगे।
किसानों की मांगें और आंदोलन का उद्देश्य
किसान संगठनों ने कहा है कि उनकी मांगें पूरी होने तक यह आंदोलन जारी रहेगा। आंदोलनकारियों ने केंद्र सरकार से मांग की है कि:
- MSP पर गारंटी कानून लागू किया जाए।
- सभी प्रकार के किसान कर्ज माफ किए जाएं।
- बिजली बिलों में राहत दी जाए।
- खाद्य पदार्थों और खेती से संबंधित वस्तुओं के दाम नियंत्रित किए जाएं।
आंदोलन में महिलाओं और युवाओं की भूमिका
दिलचस्प बात यह है कि इस आंदोलन में न केवल बुजुर्ग किसान बल्कि महिलाएं और युवा भी बड़ी संख्या में भाग ले रहे हैं।
आगे की रणनीति
किसानों ने साफ कहा है कि अगर दिल्ली में भी उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया, तो वे वहां लंबे समय तक डेरा डालने को तैयार हैं। शंभू बॉर्डर से शुरू हुआ यह आंदोलन अब राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन गया है।
किसानों के इस कदम से सरकार पर दबाव और बढ़ गया है। अब देखना यह होगा कि केंद्र सरकार उनकी मांगों को लेकर क्या रुख अपनाती है। क्या यह आंदोलन एक बार फिर पिछले किसान आंदोलन की तरह राष्ट्रीय स्तर पर बड़ा प्रभाव डालेगा?