October 15, 2025 11:36 AM

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने ‘एक्स’ की याचिका खारिज की; कहा — भारत में प्लेटफॉर्म्स को भारतीय कानून के अनुसार ही काम करना होगा

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कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एक्स की याचिका खारिज की — सोशल मीडिया को भारत के कानूनों का पालन अनिवार्य

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने बुधवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उसने केन्द्र सरकार के सूचना हटाने के आदेशों और सरकार द्वारा संचालित ‘सहयोग’ पोर्टल के वैधानिक वैधता को चुनौती दी थी। न्यायाधीशों ने स्पष्ट कर दिया कि भारत में संचालित होने वाले किसी भी प्लेटफॉर्म को देश के कानूनों का पालन करना अनिवार्य है और स्वतंत्रता के साथ-साथ उत्तरदायित्व भी जुड़ा हुआ है।

क्या थी ‘एक्स’ की चुनोती और अदालत ने क्या कहा

एक्स ने तर्क दिया कि सरकार के माध्यम से जारी कुछ कंटेंट हटाने के आदेश मौलिक अधिकारों का हनन करते हैं और सहयोग पोर्टल को लेकर चिंता व्यक्त की कि उसे ‘सेंसरशिप पोर्टल’ जैसे आक्षेप लगते रहे हैं। अदालत ने इन दलीलों को तवज्जो नहीं दी और कहा कि सामाजिक मीडिया को अनियंत्रित छोड़ना संभव नहीं है, विशेषकर महिलाओं के विरुद्ध अपराधों जैसी संवेदनशील मामलों में, क्योंकि अनुपालन न होने पर नागरिकों के गरिमा संबंधी अधिकार प्रभावित होते हैं। न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना की पीठ ने यह भी कहा कि सार्वजनिक हित और कानून-व्यवस्था को देखते हुए नियमन आवश्यक है।

कानून और प्रावधानों का झगड़ा: सेक्शन 79(3)(b) बनाम सेक्शन 69A

मुकदमे में मुकद्दमा यह भी रहा कि क्या ऐसी हटाने की हिदायतों को सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 79(3)(b) के तहत जारी किया जाना चाहिए या धारा 69A के दायरे में रखा जाना चाहिए। एक्स का दावा था कि कुछ प्रक्रियाएँ अतिव्यापक हैं और उन्हें स्वतंत्रता व निजता के दृष्टिकोण से चुनौती दी जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट तथा उच्च न्यायालयों में इस तरह के तकनीकी-नैतिक सवाल लंबे समय से उठते रहे हैं, पर कर्नाटक उच्च न्यायालय ने माना कि वर्तमान तंत्र साइबर अपराध और अवैध/हानिकारक जानकारी से निपटने के लिये आवश्यक सार्वजनिक हित का साधन है।

सुनवाई के दौरान उठे विवादास्पद बिंदु और सरकारी पक्ष की रक्षा

सुनवाई के दौरान एक समय वकीलों के बीच तीखी बहस भी हुई; इस विवाद में कभी-कभी उग्र भाषा का प्रयोग भी रिपोर्ट हुई। पिछले सुनवाई में एक्स के पक्ष ने कहा था कि सरकारी अधिकारियों को अत्यधिक अधिकार दे दिये गये हैं — जो “टॉम, डिक और हैरी” जैसे भ्रामक आरोपों तक गिरे — जबकि सरकार के वकील, जिसमें सॉलिसिटर जनरल भी शामिल रहे, ने स्पष्ट किया कि ये अधिकारी संवैधानिक और विधिक दायरे के भीतर कार्यरत हैं और नियम केवल अवैध सामग्री को फ्लैग करने व प्लेटफॉर्म को सूचित करने के लिये हैं, न कि मनमाना सेंसरशिप करने के लिये। अदालत ने इन दलीलों को भी गंभीरता से परखा और सरकार के तर्कों को तवज्जो दी।

आदेश के प्रभाव और सोशल मीडिया पर नियमन का मतलब क्या होगा

न्यायालय का यह फैसला सोशल मीडिया कंपनियों के लिये एक स्पष्ट संदेश है — यदि वे भारत के भीतर सेवाएँ प्रदान करते हैं तो उन्हें भारतीय नियमन और आदेशों का पालन करना होगा। यह निर्णय न केवल एक्स के मामलें तक ही सीमित रहेगा, बल्कि अन्य मंचों के लिये भी नीतिगत और कानूनी मिसाल कायम कर सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह के न्यायिक रुख से सरकारी नियंत्रण की वैधता मजबूत होती है, परन्तु यह भी कहा जा रहा है कि संतुलन बनाए रखना आवश्यक होगा ताकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता व उपयोगकर्ता अधिकारों की सुरक्षा भी बने रहे।

डिजिटल प्लेटफॉर्म, सुरक्षा और नागरिक अधिकार — आगे की राह

अदालत ने यह भी संकेत दिया कि डिजिटल आयाम में स्वतंत्रता के साथ जिम्मेदारी का संतुलन महत्वपूर्ण है। न्यायालय ने नोट किया कि राष्ट्र के कानूनों को परे रखकर किसी विदेशी न्यायशास्त्र को यहाँ लागू नहीं किया जा सकता। साथ ही, मामले से जुड़े तंत्र — जैसे सहयोग पोर्टल — सरकार के लिये साइबर अपराधों व अवैध सामग्री के त्वरित निवारण में सहायक उपकरण माने गए हैं। अब यह देखना होगा कि प्लेटफॉर्म्स किस तरह से अपने संचालन नीतियों को भारतीय नियमन के अनुरूप ढालते हैं और उपयोगकर्ता सुरक्षा तथा गोपनीयता से जुड़े और किस प्रकार के दिशानिर्देश विकसित होते हैं।

क्या इस फैसले से सेंसरशिप बढ़ेगी—विशेषज्ञ क्या कहते हैं

कई तकनीकी और निजता विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के फैसलों से सरकारों को कंटेंट मॉडरेशन के लिये अधिकार प्राप्त होते हुए दिखेगा, पर यह भी ज़रूरी है कि पारदर्शिता, जवाबदेही और अपील के उपाय मौजूद हों ताकि किसी भी प्रकार के दुरुपयोग से बचाव हो सके। कानूनी पंडितों का कहना है कि अदालत ने तकनीकी-नैतिक संतुलन रखने की चुनौती को रेखांकित किया है, और आगे न्यायालयों व नियामकीय संस्थानों को इस विषय पर संगठित रूप से दिशानिर्देश और मानक निर्धारित करने होंगे।

कुल मिलाकर कर्नाटक उच्च न्यायालय का यह निर्णय यह स्पष्ट करता है कि भारत के भीतर संचालित होने वाली डिजिटल सेवाओं व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को भारत के कानूनों व प्रक्रियाओं का पालन करना होगा; साथ ही उपयोगकर्ता सुरक्षा व महिलाओं के विरुद्ध अपराधों से निपटने के लिये त्वरित और प्रभावी नियमन की आवश्यकता को अदालत ने रेखांकित किया है। इस फैसले के बाद प्लेटफॉर्म और सरकार के बीच कानूनी और तकनीकी समन्वय का दौर और गहरा होने की संभावना है।


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