कारगिल दिवस: जब सैनिकों के मंच को मंदिर मानकर महिला ने चप्पल उतार दी
हिमाचल प्रदेश के शिमला में आयोजित एक सम्मान समारोह में उस क्षण ने सबका ध्यान खींच लिया, जब एक महिला बिना चप्पल पहने प्रवेश कर गई। यह कोई धार्मिक स्थल नहीं था, न ही किसी मंदिर की सीढ़ियाँ थीं — यह तो कारगिल विजय दिवस के अवसर पर वीर सैनिकों को सम्मान देने का मंच था। लेकिन उस महिला की नज़र में यह मंच भी उतना ही पवित्र था जितना कोई मंदिर।
यह दृश्य देखकर मौजूद सैन्य अधिकारी, कार्यक्रम संचालक और आम नागरिक सभी स्तब्ध रह गए। सैनिकों की ओर श्रद्धा का ऐसा भाव, जिसमें कोई महिला चप्पल उतार कर आए — ये आज के समय में कम ही देखने को मिलता है। समारोह की व्यवस्था में लगे सैनिकों ने उन्हें विनम्रता से चप्पल पहनने का आग्रह किया, पर वे तैयार नहीं हुईं। दो-तीन बार आग्रह के बाद ही उन्होंने चप्पल पहनी। इस एक वाक्ये ने साबित कर दिया कि हिमाचल की धरती केवल देवभूमि नहीं, बल्कि वीरभूमि भी है।

वीरों की भूमि, जहां श्रद्धा सिर्फ मंदिरों तक सीमित नहीं
यह घटना शिमला स्थित रिज मैदान (मॉल रोड) की है, जहां सैन्य प्रशिक्षण कमान द्वारा कारगिल युद्ध के वीरों को सम्मान देने के लिए समारोह आयोजित किया गया था। उस महिला का व्यवहार कोई दिखावा नहीं था, बल्कि इस प्रदेश में पाई जाने वाली सैनिकों के प्रति गहरी भावनात्मक श्रद्धा का प्रतीक था।
हिमाचल प्रदेश को यूँ तो देवभूमि कहा जाता है, लेकिन इसे वीर भूमि कहना कहीं अधिक समीचीन होगा। जिस भूमि ने देश को चार परमवीर चक्र विजेता दिए हों, वहाँ ऐसे सम्मान का स्वाभाविक होना कोई आश्चर्य की बात नहीं।

हिमाचल के वीर: जो बने देश के गौरव
हिमाचल प्रदेश से देश के पहले परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा थे। कारगिल युद्ध के अमर शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा की वीरगाथा आज भी हर भारतीय की जुबान पर है। इसके अतिरिक्त मेजर धन सिंह थापा और राइफलमैन संजय कुमार भी परमवीर चक्र से सम्मानित हो चुके हैं।
यहां तक कि तीन अशोक चक्र, 18 कीर्ति चक्र, असंख्य वीर चक्र, और सेना मैडल भी हिमाचल के रणबांकुरों की झोली में आए हैं। यह राज्य न केवल वीरता का केंद्र है, बल्कि उसका हृदय भी है।
आंकड़ों में वीरता: हर साल हजारों नए सैनिक
लगभग 69 लाख की आबादी वाले इस राज्य से हर साल लगभग 5,000 युवा सेना में शामिल होते हैं। यहां की माटी इतनी उपजाऊ है कि हर गांव में कोई न कोई जवान या पूर्व सैनिक अवश्य मिलेगा। राज्य में तीन लाख से अधिक सेवारत व सेवानिवृत्त सैनिक और उनके परिवारों को मिलाकर आठ लाख से अधिक लोग सीधे तौर पर सेना से जुड़े हैं।
कारगिल युद्ध के 527 शहीदों में से 52 वीर सपूत हिमाचल से थे — यह आंकड़ा स्वयं में एक गर्व की गाथा है।
सैनिक सम्मान नहीं, श्रद्धा के पात्र हैं
यह घटना एक बड़ा सामाजिक संदेश भी देती है — कि सैनिकों का सम्मान सिर्फ शब्दों से नहीं होता, अपितु भावनाओं से होता है। जिस तरह एक मंदिर में प्रवेश से पूर्व श्रद्धालु अपने चप्पल बाहर उतारते हैं, वैसे ही उस महिला ने सैनिकों के मंच को ‘मातृभूमि की पूजा स्थली’ मानकर अपनी श्रद्धा प्रकट की।
उस महिला ने शायद वह जीवन मूल्यों की शिक्षा दी, जो किताबों से नहीं, संस्कारों से आती है।
“पुष्प की अभिलाषा” से हिमाचल का वीर जुड़ाव
इस मौके पर राष्ट्रकवि माखनलाल चतुर्वेदी की कालजयी कविता “पुष्प की अभिलाषा” सजीव हो उठती है, मानो हिमाचल का हर नौजवान उसी की पंक्तियाँ जी रहा हो:
“मुझे तोड़ लेना वनमाली!
उस पथ में देना तुम फेंक
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पथ जाएं वीर अनेक”
निष्कर्ष: श्रद्धा जब संस्कार बन जाए
उस महिला का चप्पल उतारकर आना एक प्रतीक है — कि जब देशभक्ति केवल भाषण नहीं, आचरण बन जाए; जब सैनिकों को केवल रक्षक नहीं, पूज्य समझा जाए; तब जाकर राष्ट्र निर्माण का सपना पूरा होता है।
शायद किसी और राज्य में यह घटना “वायरल खबर” बन जाती, लेकिन हिमाचल में यह केवल श्रद्धा की सहज प्रतिक्रिया है — इतनी सामान्य कि उसे समाचार नहीं समझा गया, लेकिन वह भारतवर्ष के लिए एक आदर्श है।

– संजीव शर्मा
सहायक निदेशक,
प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी), शिमला
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