October 16, 2025 1:38 AM

नवरात्रि में कन्या पूजन 2025: क्यों किया जाता है कंजक पूजन, क्या है महत्व, पूरी विधि और भोग का स्वरूप

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कन्या पूजन 2025: जानें महत्व, विधि, भोग का स्वरूप और क्या मिलता है इसका फल

भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक परंपरा में नवरात्रि का पर्व शक्ति की उपासना का सबसे बड़ा उत्सव माना जाता है। नौ दिनों तक मां दुर्गा और उनके नौ स्वरूपों की आराधना होती है। इस पर्व के समापन पर अष्टमी और नवमी तिथियों पर कन्या पूजन का विशेष महत्व है। इसे कंजक पूजन या कुमारी पूजन भी कहा जाता है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, छोटी-छोटी कन्याओं में स्वयं मां दुर्गा का वास माना गया है। देवी भागवत पुराण में उल्लेख है कि “जहां कन्याओं का पूजन होता है, वहां स्वयं भगवती दुर्गा प्रसन्न होकर वास करती हैं।” यही कारण है कि भक्त अपनी साधना को पूर्णता देने के लिए कन्या पूजन अवश्य करते हैं।


क्यों करते हैं कन्या पूजन?

कन्या पूजन केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं बल्कि नारी शक्ति के सम्मान का प्रतीक है। कन्याओं को देवी दुर्गा के स्वरूप मानकर उनका पूजन किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार, दो से दस वर्ष की आयु की कन्याएं नवदुर्गा के नौ रूपों का प्रतिनिधित्व करती हैं।

  • 2 वर्ष की कन्या ‘कुमारिका’ कहलाती है, इसके पूजन से धन और आयु में वृद्धि होती है।
  • 3 वर्ष की ‘त्रिमूर्ति’, जो घर में सुख-समृद्धि लाती है।
  • 4 वर्ष की ‘कल्याणी’, जिससे विवाह और मंगल कार्य सिद्ध होते हैं।
  • 5 वर्ष की ‘रोहिणी’, जिसकी पूजा से स्वास्थ्य लाभ मिलता है।
  • 6 वर्ष की ‘कालिका’, शत्रु नाश में सहायक।
  • 7 वर्ष की ‘चंडिका’, बल और साहस प्रदान करती है।
  • 8 वर्ष की ‘शांभवी’, दरिद्रता का नाश करती है।
  • 9 वर्ष की ‘दुर्गा’, कठिन कार्य और रोगों का शमन करती है।
  • 10 वर्ष की ‘सुभद्रा’, मोक्ष और आध्यात्मिक उन्नति देती है।

इसके साथ एक छोटे बालक (लांगुरिया/भैरव) को भी इस परंपरा में आमंत्रित किया जाता है, जो भैरव बाबा और हनुमान का प्रतीक माना जाता है।


कन्या पूजन की विधि

  1. तैयारी: अष्टमी या नवमी की सुबह स्नान करके घर की साफ-सफाई करें और भगवान गणेश तथा मां दुर्गा की पूजा करें।
  2. आमंत्रण: 9 छोटी कन्याओं और एक छोटे बालक को घर बुलाएं।
  3. पाद-प्रक्षालन: साफ जल से उनके पैर धोएं और स्वच्छ कपड़े से पोंछकर आसन पर बिठाएं।
  4. पूजन: उनके माथे पर कुमकुम और अक्षत का टीका करें, मौली बांधें और दीप जलाकर आरती उतारें।
  5. भोग: कन्याओं को विशेष भोजन परोसा जाता है। परंपरागत रूप से पूड़ी, काले चने, सूजी का हलवा और नारियल अर्पित किया जाता है।
  6. भेंट: भोजन के बाद अपनी सामर्थ्य अनुसार उपहार, वस्त्र, चुनरी या दक्षिणा दें।
  7. आशीर्वाद: अंत में उनके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लें और उनसे थोड़ा अक्षत घर में छिड़कने के लिए कहें।

भोग में क्यों पूड़ी, चना और हलवा?

  • पूड़ी समृद्धि और पूर्णता का प्रतीक मानी जाती है।
  • काले चने ऊर्जा और शक्ति प्रदान करते हैं, जो मां दुर्गा की शक्ति स्वरूपा का द्योतक हैं।
  • हलवा मधुरता और जीवन में मिठास का प्रतीक है।
  • नारियल पवित्रता और शुभ फल का प्रतीक है।

कन्या पूजन से क्या मिलता है?

  • भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं
  • परिवार में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है।
  • जीवन से रोग और कष्ट दूर होते हैं
  • कन्याओं का आशीर्वाद दीर्घायु और सफलता प्रदान करता है।
  • सामाजिक दृष्टि से यह परंपरा बेटियों को सम्मान देने और स्त्री शक्ति के महत्व को स्वीकार करने का संदेश देती है।

सामाजिक महत्व

कन्या पूजन हमें यह भी सिखाता है कि समाज में नारी के बिना सृष्टि अधूरी है। यह परंपरा हमें बेटियों को बोझ नहीं, बल्कि शक्ति और सौभाग्य का प्रतीक मानने की प्रेरणा देती है।

आज के समय में कन्या पूजन केवल धार्मिक परंपरा न रहकर नारी सम्मान और सुरक्षा का संकल्प है। नवरात्रि के अवसर पर भक्त यह प्रण लें कि वे स्त्रियों और बच्चियों को सम्मान देंगे और उनके अधिकारों की रक्षा करेंगे। यही सच्चे अर्थों में शक्ति पूजा होगी।


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