जस्टिस यशवंत वर्मा की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा, आचरण पर सवाल
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यशवंत वर्मा द्वारा दाखिल उस याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है, जिसमें उन्होंने उनके खिलाफ आंतरिक जांच समिति की रिपोर्ट और महाभियोग की सिफारिश को रद्द करने की मांग की है। सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने जस्टिस वर्मा के आचरण को ‘अविश्वसनीय’ करार देते हुए कई गंभीर सवाल उठाए।
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की बेंच ने जताई सख्त आपत्ति
जस्टिस दीपांकर दत्ता की अध्यक्षता वाली पीठ ने जस्टिस वर्मा के वकील से सवाल किया कि जब वे आंतरिक जांच पैनल की वैधता को चुनौती दे रहे हैं, तो फिर उन्होंने उस पैनल के सामने पेश होकर सहयोग क्यों किया। कोर्ट ने कहा —
“आपको पहले उस पैनल की रिपोर्ट को अदालत में चुनौती देनी चाहिए थी। अब जब रिपोर्ट आपके खिलाफ है, तो आप उसकी प्रक्रिया पर सवाल उठा रहे हैं।”
राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को रिपोर्ट भेजने पर भी उठा सवाल
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि अगर देश के मुख्य न्यायाधीश को लगता है कि किसी न्यायाधीश का आचरण संदिग्ध है, तो वे यह जानकारी राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को दे सकते हैं।
“यह राजनीतिक निर्णय हो सकता है कि उस पर आगे क्या कार्रवाई हो, लेकिन यह ज़रूरी है कि न्यायपालिका कानून का पालन कर रही है, यह संदेश स्पष्ट हो।”
पैसे किसके थे, इस पर जांच की मांग
जस्टिस वर्मा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलील दी कि जस्टिस वर्मा राष्ट्रपति को सूचना भेजे जाने का विरोध नहीं कर रहे, लेकिन उनके आवास से बरामद नकदी किसकी थी, इसकी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए थी। उन्होंने कहा कि सिर्फ इस आधार पर यह मान लेना कि नकदी जस्टिस वर्मा की है, उचित नहीं है।
क्या है पूरा मामला?
14 मार्च 2024 को जस्टिस यशवंत वर्मा के आवास से अज्ञात स्रोत की भारी नकदी मिलने के बाद मामला सुर्खियों में आया था। सुप्रीम कोर्ट ने 22 मार्च को इस मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय आंतरिक जांच समिति गठित की थी। इस समिति में शामिल थे:
शील नागू (मुख्य न्यायाधीश, पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट)
जीएस संधावालिया (मुख्य न्यायाधीश, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट)
अनु शिवरामन (न्यायमूर्ति, कर्नाटक हाईकोर्ट)
जस्टिस वर्मा का ट्रांसफर और सिफारिश
जांच समिति की रिपोर्ट के बाद राष्ट्रपति ने जस्टिस वर्मा को दिल्ली हाईकोर्ट से इलाहाबाद हाईकोर्ट ट्रांसफर कर दिया था। इसके बाद तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश संजय खन्ना ने संसद से जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने की सिफारिश की थी। अब जस्टिस वर्मा ने याचिका दाखिल कर इस सिफारिश और जांच समिति की रिपोर्ट को रद्द करने की मांग की है।
कोर्ट के तेवर सख्त, फैसला सुरक्षित
28 जुलाई को हुई पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस वर्मा द्वारा राष्ट्रपति को रिपोर्ट भेजे जाने के विरोध पर भी सख्त टिप्पणी की थी। कोर्ट ने कहा था कि राष्ट्रपति संविधान के प्रमुख हैं, उन्हें सूचना देना न्यायपालिका का कर्तव्य है।
अब सुप्रीम कोर्ट ने पूरे मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। यह मामला न्यायपालिका की आंतरिक जवाबदेही, पारदर्शिता और संस्थागत निष्पक्षता को लेकर महत्वपूर्ण मिसाल बन सकता है।
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