- जस्टिस यशवंत वर्मा कैश कांड से जुड़ी दो अहम याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को सुनवाई होगी
नई दिल्ली। उच्च न्यायपालिका के इतिहास में चर्चा का केंद्र बने जस्टिस यशवंत वर्मा कैश कांड से जुड़ी दो अहम याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को सुनवाई होगी। यह मामला उस समय सामने आया था जब 14 मार्च को जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास के बाहर जले हुए नोट मिलने की खबर सामने आई थी। इस घटना ने पूरे न्यायिक तंत्र को हिलाकर रख दिया और इसके बाद शुरू हुई जांच प्रक्रिया अब संवैधानिक और कानूनी सवालों के घेरे में आ गई है।
जस्टिस वर्मा की याचिका: समिति की निष्पक्षता पर सवाल
पहली याचिका स्वयं जस्टिस यशवंत वर्मा ने दायर की है, जिसमें उन्होंने सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित तीन सदस्यीय जांच समिति की रिपोर्ट को चुनौती दी है। यह समिति संविधान के अनुच्छेद 124(4) के तहत गठित की गई थी, जिसने उनकी बर्खास्तगी की सिफारिश की थी। जस्टिस वर्मा का आरोप है कि “समिति ने पूर्व निर्धारित राय के साथ काम किया और उन्हें स्वयं का पक्ष रखने का पूरा अवसर नहीं दिया गया।” उन्होंने यह भी मांग की है कि उस पत्र को रद्द किया जाए जो पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा राष्ट्रपति और तत्कालीन प्रधानमंत्री को भेजा गया था, जिसमें समिति की सिफारिशों के आधार पर कार्रवाई करने की बात कही गई थी।
दूसरी याचिका: एफआईआर दर्ज करने की मांग
दूसरी याचिका वरिष्ठ अधिवक्ता मैथ्यू जे. नेदुमपारा और अन्य याचिकाकर्ताओं द्वारा दाखिल की गई है, जिसमें दिल्ली पुलिस को निर्देश देने की मांग की गई है कि वह जस्टिस वर्मा के आवास के बाहर मिले जले हुए नोटों के मामले में प्राथमिकी दर्ज करे। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने मार्च में इस प्रकरण की जांच और मई में आपराधिक कार्रवाई की मांग वाली नेदुमपारा की याचिकाओं को खारिज कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ करेगी सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर प्रकाशित सूची के अनुसार, इन दोनों याचिकाओं पर सुनवाई जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ए.जी. मसीह की पीठ करेगी। इस सुनवाई के दौरान न्यायिक जवाबदेही, जांच समिति की प्रक्रिया और एफआईआर की वैधता जैसे गंभीर कानूनी बिंदुओं पर बहस की संभावना है।
विवाद की पृष्ठभूमि
14 मार्च को नई दिल्ली स्थित न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के सरकारी आवास के बाहर जले हुए नोट बरामद किए गए थे। इस घटना के बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने उन्हें स्थानांतरित कर इलाहाबाद हाई कोर्ट भेज दिया और मामले की जांच के लिए आंतरिक समिति गठित की गई। समिति की रिपोर्ट के आधार पर उनके खिलाफ अनुच्छेद 124(4) के तहत बर्खास्तगी की सिफारिश की गई, जो अब विवाद का विषय बन गई है।
राजनीतिक और कानूनी हलकों में हलचल
यह मामला न केवल न्यायिक व्यवस्था की पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर सवाल खड़े करता है, बल्कि इसमें संवैधानिक प्रक्रियाओं की गंभीरता भी जुड़ी हुई है। महाभियोग प्रस्ताव तक की स्थिति बनना, समिति की रिपोर्ट पर आपत्ति, और एफआईआर की मांग जैसे पहलुओं ने इसे उच्च न्यायपालिका में अब तक के सबसे संवेदनशील प्रकरणों में शामिल कर दिया है।