राष्ट्रपति ने दिलाई शपथ, पीएम मोदी समेत कई गणमान्य हुए शामिल

नई दिल्ली।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय को नया नेतृत्व मिल गया है। न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई ने बुधवार को भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में शपथ ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में शपथ दिलाई। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद समेत कई गणमान्य अतिथि मौजूद रहे।

न्यायमूर्ति गवई ने न्यायमूर्ति संजीव खन्ना का स्थान लिया, जो मंगलवार को सेवानिवृत्त हुए थे। वरिष्ठता के आधार पर नियुक्ति की परंपरा का पालन करते हुए जस्टिस खन्ना ने उनके नाम की सिफारिश की थी, जिसे केंद्र सरकार ने स्वीकार करते हुए 30 अप्रैल को अधिसूचना जारी की थी।


👨‍⚖️ कौन हैं जस्टिस बी.आर. गवई?

जन्म: 24 नवंबर 1960, अमरावती (महाराष्ट्र)
पिता: स्व. आर.एस. गवई (पूर्व राज्यपाल, बिहार व केरल)

जस्टिस गवई का जीवन सामाजिक सेवा और न्यायिक प्रतिबद्धता का उदाहरण रहा है। उनके पिता स्वर्गीय आरएस गवई न केवल एक प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता थे, बल्कि वे बिहार और केरल के राज्यपाल भी रहे। न्यायमूर्ति गवई देश के दूसरे अनुसूचित जाति से आने वाले मुख्य न्यायाधीश बने हैं। उनसे पहले जस्टिस के.जी. बालाकृष्णन को यह सम्मान 2010 में मिला था।

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📚 न्यायिक सफर और उपलब्धियां

  • 16 मार्च 1985: वकालत की शुरुआत
  • नगर निगमों और विश्वविद्यालयों के स्थायी वकील के रूप में कार्य
  • 1992-93: नागपुर खंडपीठ में सहायक सरकारी वकील और अतिरिक्त लोक अभियोजक
  • 17 जनवरी 2000: सरकारी वकील और लोक अभियोजक नियुक्त
  • 14 नवंबर 2003: बॉम्बे हाईकोर्ट में अतिरिक्त न्यायाधीश
  • 12 नवंबर 2005: हाईकोर्ट में स्थायी न्यायाधीश
  • 24 मई 2019: सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश नियुक्त

जस्टिस गवई सुप्रीम कोर्ट की कई अहम संविधान पीठों का हिस्सा रहे हैं। दिसंबर 2023 में, वे उस पांच सदस्यीय संविधान पीठ में शामिल थे जिसने अनुच्छेद 370 को रद्द करने के केंद्र के फैसले को सर्वसम्मति से बरकरार रखा। यह निर्णय न केवल संवैधानिक रूप से ऐतिहासिक था, बल्कि जम्मू-कश्मीर के भविष्य को भी नया आयाम देने वाला साबित हुआ।


🏛️ क्या है मुख्य न्यायाधीश की भूमिका?

भारत के मुख्य न्यायाधीश न केवल सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख होते हैं, बल्कि वे देश की न्यायिक व्यवस्था के संरक्षक भी होते हैं। वे बड़ी संवैधानिक पीठों का नेतृत्व करते हैं, महत्वपूर्ण मामलों के पीठ गठन का अधिकार उनके पास होता है, और न्यायपालिका की स्वतंत्रता के प्रतीक माने जाते हैं।


🌟 एक ऐतिहासिक उपलब्धि

जस्टिस गवई की नियुक्ति सामाजिक समरसता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है। उन्होंने न केवल न्यायिक सेवा में उत्कृष्टता दिखाई है, बल्कि एक ऐसे समुदाय से आकर मुख्य न्यायाधीश बनना, जो लंबे समय तक हाशिये पर रहा है, यह न्यायपालिका में समावेशन की दिशा में बड़ा संकेत है।



न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई की नियुक्ति देश की न्यायिक प्रणाली में अनुभव, संतुलन और सामाजिक समावेश के प्रतीक के रूप में देखी जा रही है। उनके कार्यकाल से न केवल संवैधानिक मामलों में स्पष्टता की उम्मीद की जा रही है, बल्कि यह भी आशा है कि वे न्यायपालिका की साख और पारदर्शिता को और मजबूत करेंगे

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