नई दिल्ली।
ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान की बार-बार की गई अपीलों और अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप की मांगों पर दुनिया भर के देशों की चुप्पी भारत के लिए राजनयिक विजय मानी जा रही है। चीन और तुर्किये जैसे चंद देशों को छोड़ दें तो अधिकांश वैश्विक शक्तियों ने इस संघर्ष पर भारत को खुला समर्थन न सही, लेकिन पाकिस्तान की दलीलों को अनदेखा जरूर किया। इसी बीच, भारत और तालिबान प्रशासन वाले अफगानिस्तान के बीच एक अभूतपूर्व राजनीतिक संवाद सामने आया है।
पहली बार भारत-तालिबान के बीच हुआ राजनीतिक संवाद
15 मई को विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर और तालिबान के कार्यकारी विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी के बीच फोन पर आधिकारिक बातचीत हुई। यह पहली बार है जब तालिबान के शासन में भारत ने अफगानिस्तान से सीधे राजनीतिक स्तर पर संपर्क साधा है। इससे पहले भारत और अफगान तालिबान के बीच कुछ प्रशासनिक और राजनयिक संपर्क तो रहे हैं, लेकिन यह संवाद एक नए कूटनीतिक अध्याय की शुरुआत माना जा रहा है।
अफगानिस्तान ने की पहलगाम हमले की निंदा
जयशंकर ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए बताया कि अफगान विदेश मंत्री ने पहलगाम में हुए आतंकी हमले की सख़्त निंदा की है और भारत में हालिया घटनाओं को लेकर फैलाए जा रहे अविश्वास के प्रचार को खारिज किया है।
“अफगानिस्तान के लोगों के प्रति हमारी परंपरागत मित्रता और विकास के लिए सहयोग जारी रहेगा,” — जयशंकर ने अपने पोस्ट में यह बात दोहराई।
यह बयान ऐसे समय में आया है जब अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच सीमा विवाद और तालिबान की नाराजगी सार्वजनिक तौर पर जाहिर हो चुकी है। अफगानिस्तान ने कई मौकों पर पाकिस्तानी घुसपैठ और सैन्य कार्रवाइयों पर चेतावनी भी दी है।

अफगानिस्तान ने भारत से मांगी मानवीय मदद
तालिबान सरकार की ओर से इस संवाद पर कोई पाकिस्तानी संदर्भ नहीं दिया गया, लेकिन जारी प्रेस विज्ञप्ति में भारत से कुछ स्पष्ट मानवीय आग्रह किए गए हैं।
तालिबान के विदेश मंत्रालय के संचार निदेशक हाफिज जिया अहमद ने बताया कि मुत्तकी ने भारत से
- अफगान नागरिकों को मेडिकल वीज़ा देने,
- भारतीय जेलों में बंद अफगान कैदियों के मामलों पर विचार करने,
- और द्विपक्षीय व्यापार व चाबहार बंदरगाह के विकास में सहयोग मांगा है।
पाकिस्तान पर तालिबान की नाखुशी
पिछले कुछ महीनों में पाकिस्तानी मीडिया ने यह आरोप लगाए थे कि अफगान तालिबान, भारत की मदद से पाकिस्तान को अस्थिर कर रहा है। जवाब में तालिबान ने सार्वजनिक रूप से इन आरोपों को बकवास बताया और पाकिस्तान को अपनी विफलताओं के लिए दूसरों को दोष न देने की सलाह दी।
अब मुत्तकी की जयशंकर से बातचीत को विश्लेषक भारत के प्रति तालिबान के बदलते रुख और पाकिस्तान से बढ़ती दूरी के संकेत के रूप में देख रहे हैं।
क्या यह भारत की कूटनीतिक रणनीति का हिस्सा है?
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत लंबे समय से अफगानिस्तान में स्थिरता और विकास का पक्षधर रहा है। तालिबान के सत्ता में आने के बाद भले ही संबंधों में ठहराव आया हो, लेकिन भारत ने अपने दरवाजे कभी पूरी तरह बंद नहीं किए। यह बातचीत दर्शाती है कि भारत अब अपने सुरक्षा और कूटनीतिक हितों को लेकर ज्यादा मुलायम लेकिन स्पष्ट नीति अपना रहा है।
भारत ने दुनिया को क्या दिखाया?
जहां पाकिस्तान बार-बार संयुक्त राष्ट्र और ओआईसी जैसे मंचों पर भारत के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाने की कोशिशें कर रहा है, वहीं भारत ने शांत रहकर मौन समर्थन की कूटनीति को अपनाया। अधिकांश देशों ने न तो पाकिस्तान की मध्यस्थता की मांग का समर्थन किया और न ही उसकी शिकायतों को विशेष तवज्जो दी।
निष्कर्ष नहीं, लेकिन संकेत साफ हैं
भारत-तालिबान संवाद और वैश्विक प्रतिक्रिया से यह स्पष्ट हो गया है कि भारत की कूटनीतिक जमीन पहले से ज्यादा मजबूत हो चुकी है। आतंकवाद पर निर्णायक रुख और सीमाओं की सुरक्षा के साथ-साथ अब भारत पड़ोस में कूटनीतिक संतुलन बनाने में भी सफल होता दिख रहा है।
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