भारत-पाकिस्तान पर जयशंकर का बड़ा बयान: किसी तीसरे देश की मध्यस्थता कभी स्वीकार नहीं

नई दिल्ली। विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने शनिवार को एक कार्यक्रम में साफ कहा कि भारत-पाकिस्तान संबंधों में तीसरे देश की मध्यस्थता की कोई गुंजाइश नहीं है। उन्होंने कहा कि 1970 से लेकर अब तक पिछले 50 साल में भारत ने कभी भी किसी की दखलअंदाजी स्वीकार नहीं की और यह नीति भविष्य में भी जारी रहेगी।


अमेरिका और ट्रंप पर सीधा जवाब

डॉ. जयशंकर ने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उस दावे पर प्रतिक्रिया दी, जिसमें ट्रंप ने भारत-पाकिस्तान संघर्ष विराम में मध्यस्थता का संकेत दिया था। उन्होंने कहा –
“यह गलत है कि भारत-पाकिस्तान के बीच किसी तीसरे देश की मध्यस्थता से समाधान निकला। अगर कोई कहता है कि परिणाम मध्यस्थता से आया, तो यह वास्तविकता को तोड़-मरोड़ कर पेश करना है।”

जयशंकर ने ट्रंप की विदेश नीति शैली को भी असामान्य बताया। उन्होंने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति का सार्वजनिक तौर पर इस तरह से विदेश नीति चलाना पारंपरिक तरीकों से बिल्कुल अलग था।


किसानों और छोटे उत्पादकों के हित सर्वोपरि

भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता पर बोलते हुए जयशंकर ने कहा कि बातचीत जारी है, लेकिन भारत की कुछ लाल रेखाएं (Red Lines) हैं।
उन्होंने कहा –
“हम अपने किसानों और छोटे उत्पादकों के हितों से समझौता नहीं कर सकते। आलोचना करने वाले लोग बताएं कि क्या वे ऐसा समझौता करेंगे? सरकार की प्राथमिकता है कि किसानों और व्यापारियों का हित सुरक्षित रहे।”

साथ ही उन्होंने अमेरिका पर कटाक्ष करते हुए कहा –
“अगर आपको भारत से तेल या रिफाइंड उत्पाद खरीदने में समस्या है, तो मत खरीदिए। हम किसी को मजबूर नहीं करते। लेकिन यूरोप और अमेरिका खुद खरीदते हैं, तो आरोप लगाने का कोई औचित्य नहीं है।”


रूस-भारत शिखर वार्ता की तैयारी

जयशंकर ने बताया कि भारत और रूस के बीच साल के अंत तक वार्षिक शिखर वार्ता होगी। यह परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है।
उन्होंने कहा –
“हमारे संबंध केवल रक्षा तक सीमित नहीं हैं। व्यापार और बाजार पहुंच पर भी चर्चा होती है। रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर भारत का रुख हमेशा यही रहा है कि संघर्ष का समाधान केवल संबंधित पक्ष ही निकाल सकते हैं। हम जल्द से जल्द शांति बहाल होने का समर्थन करते हैं।”


भारत-चीन रिश्तों पर स्पष्टता

विदेश मंत्री ने कहा कि भारत-चीन संबंधों को अमेरिका से जोड़कर देखना गलत है।
“हर समस्या की अपनी समय-सीमा और परिस्थितियां होती हैं। अमेरिका के साथ कुछ हुआ तो जरूरी नहीं कि चीन के साथ भी वैसा ही हो। इन रिश्तों को एकीकृत नजरिए से देखने की कोशिश करना वास्तविकता नहीं है।”


आत्मनिर्भरता और विविध आपूर्ति श्रृंखला पर जोर

जयशंकर ने कहा कि हालिया वैश्विक अनुभव ने सिखाया है कि किसी एक देश या बाजार पर निर्भर रहना खतरनाक है।
उन्होंने कहा –
“इसलिए हमें सोर्सिंग से लेकर उत्पादन और बाजार तक विविधता लानी होगी। आत्मनिर्भर भारत इसी सोच का हिस्सा है। घर पर उत्पादन बढ़ाना मुश्किल काम है, लेकिन यह आवश्यक है।”


अमेरिका-पाकिस्तान रिश्तों पर टिप्पणी

अमेरिका और पाकिस्तान के ऐतिहासिक संबंधों पर जयशंकर ने कहा –
“दोनों देशों का लंबा इतिहास रहा है और वे कई बार अपने इतिहास को नजरअंदाज भी करते रहे हैं। यह पहली बार नहीं हो रहा है। अमेरिकी सेना खुद कई मौकों पर पाकिस्तान की भूमिका उजागर कर चुकी है। एबटाबाद ऑपरेशन इसका उदाहरण है।”



विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने अपने संबोधन में एक बार फिर भारत की रणनीतिक स्वायत्तता, किसानों और छोटे उत्पादकों के हितों की सुरक्षा, और स्वदेशीकरण की नीति पर सरकार की प्रतिबद्धता को रेखांकित किया। पाकिस्तान को लेकर उनका संदेश साफ था – भारत अपने पड़ोसी से सीधे बात करेगा, किसी तीसरे देश की दखल स्वीकार नहीं।