भारत वैश्विक महाशक्ति है, इजरायल क्षेत्रीय शक्ति — दिल्ली में बोले इजरायली विदेश मंत्री

नई दिल्ली।
भारत और इजरायल के बीच रणनीतिक साझेदारी को और गहराई देने के प्रयासों के बीच, इजरायल के विदेश मंत्री गिडोन सा’आर ने अपनी पहली भारत यात्रा के दौरान दिल्ली में विदेश मंत्री एस. जयशंकर से मुलाकात की। इस मुलाकात में दोनों नेताओं ने वैश्विक राजनीति, रक्षा सहयोग, आतंकवाद, और प्रौद्योगिकी साझेदारी जैसे अहम मुद्दों पर विस्तृत चर्चा की। इस अवसर पर इजरायली विदेश मंत्री ने भारत की भूमिका की सराहना करते हुए कहा कि भारत अब एक “वैश्विक महाशक्ति” बन चुका है और आने वाले समय में यही विश्व का भविष्य तय करेगा।

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भारत की वैश्विक स्थिति पर इजरायली विदेश मंत्री की टिप्पणी

गिडोन सा’आर ने हैदराबाद हाउस में आयोजित वार्ता के दौरान कहा, “मेरा मानना है कि भारत भविष्य है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और सबसे तेज़ी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था भी। भारत आज न केवल एशिया बल्कि पूरी दुनिया में एक निर्णायक भूमिका निभा रहा है।” उन्होंने आगे कहा, “भारत एक वैश्विक शक्ति है और इजरायल एक क्षेत्रीय शक्ति। दोनों देशों के बीच पहले से ही गहरी मित्रता है और हमारा उद्देश्य इस संबंध को दीर्घकालिक रणनीतिक साझेदारी में बदलना है।”

उन्होंने कहा कि दुनिया अब एक बहुध्रुवीय संरचना में परिवर्तित हो रही है, जहाँ केवल अमेरिका का प्रभुत्व नहीं रहा। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा, “अमेरिका का वैश्विक वर्चस्व समाप्त हो गया है। अब रूस, चीन, भारत और अमेरिका सभी प्रमुख शक्तियाँ हैं। अमेरिका अभी भी मानता है कि वही ‘शो चलाता है’, लेकिन वास्तविकता यह है कि विश्व अब कई केंद्रों में बँट चुका है, और भारत उनमें सबसे प्रमुख है।”

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आतंकवाद पर साझा चिंता

हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले की निंदा करते हुए सा’आर ने कहा कि “कट्टरपंथी आतंकवाद भारत और इजरायल दोनों के लिए एक समान खतरा है।” उन्होंने कहा कि इजरायल आतंकवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई में उसके साथ खड़ा है। दोनों देशों ने इस मुद्दे पर सुरक्षा सहयोग को और मज़बूत करने का संकल्प दोहराया।

भारत-इजरायल संबंधों की ऐतिहासिक जड़ें

इजरायल और भारत के संबंध केवल राजनयिक स्तर पर नहीं बल्कि रक्षा और रणनीतिक दृष्टिकोण से भी मजबूत रहे हैं। इसका सबसे उल्लेखनीय उदाहरण 1999 का कारगिल युद्ध है, जब अमेरिका ने भारत को हथियार और तकनीकी सहायता देने से मना कर दिया था। उस कठिन दौर में इजरायल ने भारत की मदद के लिए हाथ बढ़ाया था।

अमेरिका ने भारत को गाइडेड बम, ड्रोन और सैटेलाइट सर्विस देने से इनकार कर दिया था। भारत उस समय एडवांस्ड हथियार और तकनीक खरीदना चाहता था, पर अमेरिका ने डील रद्द कर दी। इसके बावजूद भारत ने हार नहीं मानी और स्वदेशी तकनीकी प्रणालियों के विकास की दिशा में कदम बढ़ाया। इसी प्रक्रिया से आगे चलकर भारत ने ‘नाविक’ सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम तैयार किया, जो आज देश की सैन्य और नागरिक सेवाओं की रीढ़ है।

कारगिल युद्ध में इजरायल की भूमिका

अमेरिका के पीछे हटने के बाद इजरायल भारत के साथ खड़ा रहा। इजरायल ने भारतीय वायुसेना के मिराज-2000 विमानों के लिए लाइटनिंग लेज़र पॉड और लेज़र-गाइडेड बम उपलब्ध कराए, जिनकी मदद से भारतीय सेना ने दुश्मन के ठिकानों पर सटीक निशाना साधा। इसके साथ ही इजरायल ने सर्चर और हेरोन ड्रोन दिए, जिन्होंने पाकिस्तानी बंकरों की ऊँचाई से निगरानी की और रियल टाइम तस्वीरें भेजीं।

इजरायल ने अपनी सैन्य सैटेलाइट्स से कारगिल क्षेत्र की उच्च गुणवत्ता वाली तस्वीरें भी भारत को दीं, जिससे टाइगर हिल और पॉइंट 4875 जैसे रणनीतिक स्थानों पर नियंत्रण वापस हासिल करने में बड़ी मदद मिली। इसके अलावा इजरायल ने गोला-बारूद और मोर्टार की खेप भेजी, जिससे भारतीय सेना को युद्ध के मोर्चे पर भारी बढ़त मिली।

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मोदी-नेतन्याहू के बीच मित्रता और समर्थन

इजरायली विदेश मंत्री ने 7 अक्टूबर 2023 को हमास द्वारा इजरायल पर किए गए हमले की चर्चा करते हुए कहा कि “भारत ने उस कठिन समय में हमारे साथ खड़े होकर सच्ची मित्रता का परिचय दिया। हम नहीं भूलेंगे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विश्व के पहले नेता थे जिन्होंने प्रधानमंत्री नेतन्याहू को फोन कर अपना समर्थन जताया।” उन्होंने कहा कि यह भारत-इजरायल मित्रता का प्रतीक है जो संकट की घड़ी में भी अटूट रहती है।

रणनीतिक साझेदारी का नया दौर

जयशंकर और सा’आर की इस बैठक में दोनों देशों ने रक्षा, साइबर सुरक्षा, तकनीकी सहयोग, कृषि अनुसंधान और ऊर्जा क्षेत्र में साझेदारी बढ़ाने पर सहमति जताई। दोनों देशों ने कहा कि आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन और वैश्विक आर्थिक अस्थिरता जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए परस्पर सहयोग और अधिक मज़बूत किया जाएगा।

भारत और इजरायल की यह साझेदारी अब केवल रक्षा तक सीमित नहीं रह गई है, बल्कि यह नवाचार, तकनीक, स्टार्टअप और कृषि में भी विस्तार पा रही है। दोनों देशों के बीच 1992 में स्थापित राजनयिक संबंध अब एक नई ऊँचाई पर पहुँच चुके हैं, और वर्तमान में दोनों राष्ट्र एक दूसरे के रणनीतिक सहयोगी के रूप में कार्य कर रहे हैं।