• हिमालय का 86% हिस्सा बर्फ से ढंका, ला नीना के असर से तापमान 3-4 डिग्री तक गिरेगा

नई दिल्ली/शिमला। इस साल देश में सर्दी का प्रकोप 110 वर्षों में तीसरी बार सबसे ज्यादा तेज रहने की संभावना जताई गई है। मौसम विशेषज्ञों के अनुसार, ऊपरी हिमालय का 86% हिस्सा समय से दो महीने पहले ही बर्फ से ढंक गया है, जो असामान्य रूप से जल्दी हुआ है। पिछले दिनों आए पश्चिमी विक्षोभ (वेस्टर्न डिस्टरबेंस) के कारण हिमालयी क्षेत्रों में तापमान औसतन 2 से 3 डिग्री सेल्सियस तक नीचे चला गया है।

इस बार का ठंडा मौसम इसलिए भी खास रहेगा क्योंकि दिसंबर तक ला नीना की स्थिति सक्रिय हो जाएगी — यह प्रशांत महासागर के तापमान के सामान्य से ठंडा होने की मौसमी घटना है। मौसम विभाग के अनुसार, ला नीना के चलते उत्तर, मध्य और पूर्वी भारत में औसत तापमान 3 से 4 डिग्री तक कम हो सकता है।

हिमालय पर समय से पहले बर्फबारी, ठंड की शुरुआत तेज

आमतौर पर हिमालय पर नवंबर में घनी बर्फ की परत जमनी शुरू होती है, लेकिन इस बार अक्टूबर की शुरुआत में ही ऊपरी हिमालय (4 हजार फीट से अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्र) पर माइनस 15 डिग्री या उससे नीचे का तापमान दर्ज किया गया है। लगातार बर्फबारी के कारण बर्फ पिघल नहीं रही, जिससे तापमान और गिरने की संभावना है।

मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि यह स्थिति सर्दियों के लिए “कोल्ड ट्रिगर पॉइंट” की तरह है। यानी अक्टूबर में जितनी जल्दी बर्फ जमा होती है, उतनी ही जल्दी मैदानों में ठंड फैलनी शुरू हो जाती है।

मध्य प्रदेश और राजस्थान में ठंड ने दी समय से पहले दस्तक

मध्य प्रदेश में ठंड ने अक्टूबर के पहले पखवाड़े में ही दस्तक दे दी है। भोपाल का न्यूनतम तापमान 15.8°C दर्ज किया गया, जो सामान्य से 3.6 डिग्री कम है। पिछले 26 वर्षों में यह तीसरी बार है जब अक्टूबर में इतनी ठंड दर्ज की गई है।

इसी तरह राजस्थान के सीकर, चुरू और झुंझुनूं में रात का तापमान 15°C से नीचे चला गया है। मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार, दिन और रात के तापमान में बढ़ता अंतर यह संकेत है कि उत्तर भारत में ठंडी हवाएं अब मैदानों की ओर बढ़ रही हैं।

नेपाल से कश्मीर तक बर्फ की सफेद चादर

हिमालय की ऊंची चोटियों से लेकर नेपाल, सिक्किम, उत्तराखंड, हिमाचल और कश्मीर तक हर जगह बर्फ की सफेद चादर बिछी हुई है।
डॉ. मेहता के अनुसार, इस बार की ताजा बर्फबारी ने हिमनदों (ग्लेशियरों) के लिए एक सकारात्मक संकेत दिया है। उन्होंने कहा,

“तापमान में गिरावट के कारण इस साल बर्फ पिघल नहीं रही, जिससे ग्लेशियर अगले पांच साल तक रिचार्ज रहेंगे। इससे गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र और अन्य हिमालयी नदियों के स्रोत नहीं सूखेंगे।”

उन्होंने यह भी बताया कि बर्फ का कैचमेंट एरिया (बर्फ संग्रहण क्षेत्र) इस साल पिछले सालों की तुलना में लगभग 10% बढ़ा है। इसका सीधा असर उत्तर भारत के मौसम पर पड़ेगा, जिससे अक्टूबर से ही ठंड का असर शुरू हो गया है।

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ला नीना से बढ़ेगी ठंड और बारिश

दिसंबर से सक्रिय होने वाला ला नीना भारत में ठंड और वर्षा दोनों को प्रभावित करेगा। यह घटना प्रशांत महासागर के सतही तापमान के सामान्य से नीचे चले जाने पर होती है। इसके चलते उत्तरी गोलार्ध में सर्दियां लंबी और अधिक ठंडी होती हैं।

भारतीय मौसम विभाग (IMD) के पूर्व वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. आर.के. जैन के अनुसार,

“ला नीना की वजह से इस साल सर्दी लंबी चलेगी। जनवरी और फरवरी में कई राज्यों में रिकॉर्ड तोड़ न्यूनतम तापमान दर्ज किया जा सकता है। मध्य और उत्तर भारत में कोल्ड वेव (शीतलहर) के दौर पिछले 10 सालों से अधिक तीव्र रहने की संभावना है।”

ग्लोबल तापमान में अस्थायी गिरावट

वैज्ञानिक आंकड़े बताते हैं कि दुनिया का औसत तापमान पिछले 122 वर्षों में 0.99°C बढ़ा है, लेकिन अब यह वृद्धि अस्थायी रूप से रुकने जा रही है।
ला नीना के कारण 2025 के अंत तक वैश्विक औसत तापमान 0.2°C तक गिरने की संभावना है। यानी अगले दो वर्षों में पृथ्वी की सतह थोड़ी ठंडी हो जाएगी, जिसका असर भारत के मौसम पर भी पड़ेगा।

देश के कई हिस्सों में रैन शेल्टर और हीटर की तैयारी

ठंड की चेतावनी के बाद राज्यों ने आपदा प्रबंधन और स्वास्थ्य विभागों को पहले से अलर्ट पर रखा है। मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में नगर निगमों को रैन शेल्टर, अलाव व्यवस्था और हीटर की तैयारी के निर्देश दिए गए हैं।

विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि इस बार की ठंड कमजोर, बुजुर्ग और अस्थमा रोगियों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकती है। इसलिए नागरिकों को स्वास्थ्य और सुरक्षा उपायों का पालन करने की सलाह दी गई है।

इस बार की सर्दी न केवल मौसम विज्ञान के लिहाज से ऐतिहासिक होगी, बल्कि यह जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझने का भी महत्वपूर्ण अवसर बनेगी।