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March 13, 2025 2:32 PM

आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिकों ने सुपरबग बचाव तंत्र की खोज की

"IIT रुड़की के वैज्ञानिकों ने खोजा सुपरबग बचाव तंत्र, एमबायो में प्रकाशित अध्ययन"

पत्रिका एमबायो में प्रकाशित हुआ अध्ययन

हरिद्वार। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) रुड़की के वैज्ञानिकों ने एक अत्यधिक दवा प्रतिरोधी सुपरबग, एसिनेटोबैक्टर बाउमानी, में एक महत्वपूर्ण विनियामक तंत्र की खोज की है। यह रोगाणु कई जानलेवा संक्रमणों का कारण बनता है और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए एक गंभीर चुनौती बना हुआ है। यह अध्ययन प्रतिष्ठित अमेरिकन सोसाइटी फॉर माइक्रोबायोलॉजी (एएसएम) की पत्रिका एमबायो में प्रकाशित हुआ है। शोध में यह पता चला है कि यह रोगाणु अपने हमले और बचाव प्रणालियों को कैसे नियंत्रित करता है, जिससे वैज्ञानिकों को नई उपचार रणनीतियाँ विकसित करने में मदद मिल सकती है।

आईआईटी रुड़की के निदेशक प्रो. कमल किशोर पंत ने इस उपलब्धि पर प्रकाश डालते हुए कहा कि संस्थान वैश्विक स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटने के लिए वैज्ञानिक अनुसंधान को आगे बढ़ाने के प्रति प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा, “एसिनेटोबैक्टर बाउमानी के रक्षा तंत्र को समझने में यह सफलता हमारे शोधकर्ताओं द्वारा किए जा रहे उच्च-प्रभावी कार्य का प्रमाण है। इस तरह की खोजें एंटीबायोटिक प्रतिरोध से निपटने और स्वास्थ्य सेवा परिणामों को बेहतर बनाने में उन्नत समाधानों का मार्ग प्रशस्त करती हैं।”

शोध दल और उनकी भूमिका

इस महत्वपूर्ण शोध में आईआईटी रुड़की के सोमोक भौमिक, अविक पाठक, शिवम पांडे, कुलदीप देवनाथ, अभिरूप सेठ, निशांत ज्योति, टिम्सी भंडो, जावेद अख्तर, सौरभ चुघ, डॉ. रमनदीप सिंह, और तरुण कुमार शर्मा शामिल थे। उनके प्रयासों से अत्याधुनिक जैव-चिकित्सा अनुसंधान में आईआईटी रुड़की के नेतृत्व को और अधिक मजबूती मिली है।

सुपरबग के विनियामक तंत्र का खुलासा

आईआईटी रुड़की की प्रो. रंजना पठानिया के नेतृत्व में किए गए इस शोध में यह उजागर किया गया कि ए. बाउमानी पर्यावरणीय परिस्थितियों के आधार पर टाइप 6 सिक्रेशन सिस्टम (टी6एसएस) को सक्रिय या निष्क्रिय कर सकता है। इस प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण भूमिका एक छोटे आरएनए अणु, एबीएसआर28, निभाता है। शोध के अनुसार, यह विनियमन मैंगनीज (एमएन²⁺) के स्तर से प्रभावित होता है। जब मैंगनीज का स्तर अधिक होता है, तो एबीएसआर28 टी6एसएस फंक्शन के लिए आवश्यक एक प्रमुख जीन (टीएसएसएम) से जुड़ जाता है, जिससे उसका क्षरण होता है। यह प्रक्रिया टी6एसएस की सक्रियता को रोकती है और प्लास्मिड पीएबी3 के संरक्षण में सहायता करती है। यह प्लास्मिड कई एंटीबायोटिक प्रतिरोधी जीन को वहन करता है, जिससे बैक्टीरिया विभिन्न दवाओं के खिलाफ अपनी रक्षा कर सकता है।

संक्रमण के दौरान अनुकूलन प्रक्रिया

वैज्ञानिकों ने यह भी पाया कि जब ए. बाउमानी टी6एसएस को सक्रिय करता है, तो यह एंटीबायोटिक्स और ऑक्सीडेटिव तनाव (ऑक्सीकरण संबंधी क्षति) के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाता है। इसका अर्थ यह है कि बैक्टीरिया को अलग-अलग परिस्थितियों में जीवित रहने के लिए इस प्रणाली को अत्यंत सावधानीपूर्वक नियंत्रित करना पड़ता है। प्रो. पठानिया ने कहा, “हमारी खोज इस बात को उजागर करती है कि यह रोगाणु संक्रमण के दौरान कैसे अनुकूलन करता है, जिससे इसे एंटीबायोटिक्स और प्रतिरक्षा प्रणाली दोनों से बचने में सहायता मिलती है।”

एबीएसआर28 को लक्षित करने की संभावना

शोधकर्ताओं ने यह निष्कर्ष निकाला कि एबीएसआर28 को लक्षित करके वैज्ञानिक सुपरबग की विनियामक प्रणाली को बाधित करने में सक्षम हो सकते हैं। इस प्रक्रिया में सीधे प्रतिरोध जीन पर हमला किए बिना बैक्टीरिया को एंटीबायोटिक्स के प्रति अधिक संवेदनशील बनाया जा सकता है। यह खोज बहुऔषधि प्रतिरोधी संक्रमणों के खिलाफ सटीक चिकित्सा (प्रिसिजन मेडिसिन) और नवीन दवा विकास के लिए नए मार्ग खोल सकती है।

वैश्विक स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण योगदान

यह अध्ययन इस बात को और पुष्ट करता है कि आईआईटी रुड़की में किए जा रहे शोध केवल अकादमिक प्रगति तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे मानवता के लिए व्यावहारिक समाधान भी प्रदान कर सकते हैं। इस महत्वपूर्ण खोज से सुपरबग संक्रमणों के इलाज की दिशा में नई संभावनाएँ खुल सकती हैं, जिससे लाखों लोगों की जान बचाने में मदद मिल सकती है।

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