- ऋतुपर्ण दवे
भारतीय फिल्म जगत का एक दैदीप्यमान नक्षत्र, वो चमकता सितारा जिसने कभी अपने उसूलों से समझौता नहीं किया। जिसकी हरेक फिल्म में कूट-कूट कर देश प्रेम भरा है। जिसके अन्दर भारतीयता की ऐसी लौ थी कि खुद ही भारत कुमार बन गया। यकीन नहीं होता कि मनोज कुमार हमारे बीच नहीं रहे! लेकिन उनका अभिनय, आदर्श और सबसे बड़ी देश प्रेम की प्रेरणा कभी चुकने वाली नहीं। जब तक सृष्टि रहेगी, धरती और ब्रम्हाण्ड रहेगा तब तक भारत रहेगा और भारत कुमार के बोल ‘मेरे देश की धरती सोना उगले-उगले हीरा-मोती’ सबके कानों में गुंजायमान होते रहेंगे। अद्वितीय प्रतिभा के धनी मनोज कुमार ने कभी भी फिल्म को फिल्म नहीं बल्कि संस्कार, देशहित और संदेशवाहक के रूप में देखा। यही कारण था कि उनके द्वारा अभिनीत फिल्में भारतीय सिने जगत में तो परचम लहराती रहीं विदेशों में भी जबरदस्त लोकप्रिय हुईं।
24 जुलाई 1937 को जन्मे मनोज कुमार के नाम से मशहूर हरिकृष्ण गिरी गोस्वामी का जन्म पाकिस्तान के एबटाबाद में हुआ था। उनका जंडियाला शेर खान और लाहौर जैसे इलाकों से भीसंबंध रहा है। उन दिनों जब दिल्ली में सुभाष चंद्र बोस की आईएनए से जुड़े लोगों का ट्रायल चल रहा था तो लाहौर के नौजवान और बच्चे जुलूस निकाल नारे लगाते थे”लाल किले से आई आवाज ढिल्लो, सहगल, शाहनवाज”। इनमें मनोज भी शामिल होते। इस बीच स्वतंत्रता मिली, बंटवारा हुआ देश भारत-पाकिस्तान में बंट गया। बंटवारे के बाद हुई हिंसा में उनके चाचा मारे गए। उनके पिता उन्हें लाल किलाले गए।दोनों ने वहां नारे लगाए। इसकी छाप उनके जीवन में पड़ी। वो दिल्ली के शरणार्थी कैंप में भी रहे। वहीं उनके भाई का जन्म होने वाला था। लेकिन हिंसा के बीच अस्पताल के लोग भी भूमिगत हो गए और बिना इलाज भाई मारा गया। यहीं से उनके मन में दंगों को लेकर नफरत हुई। लेकिन पिता ने जिंदगी में कभी दंगा-मारपीट न करने की सीख दी। जिससे उनका हृदय परिवर्तन हुआ।
उनके दिल में देश भक्ति कूट-कूट कर भरी थी। आजादी के बाद जब भारतीय फिल्मों का दौर बदल रहा था तब मनोज कुमार एक्शन, रोमांटिक फिल्मों के बजाए देश भक्ति की ओर बढ़ रहे थे। यह उनकी निष्ठा और भावना थी जो उन्होंने 1965 में देश भक्ति से ओत-प्रोत फिल्म शहीद बनाई।इसमें शहीद भगत सिंह की भूमिका निभाई। 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान उनकी मुलाकात तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री से हुईजिन्होंने उन्हें युद्ध में होने वाली परेशानियों पर फिल्म बनाने को कहा। शास्त्री जी कहा कि मेरा एक नारा है जय जवान-जय किसान। इस पर कोई फिल्म बनाओ। मनोज कुमार ने फिल्म उपकार बनाई जो सबको बहुत पसंद आई। हालांकि शास्त्री जी इसे नहीं देख पाए क्योंकि उसी बीच उनकी मृत्यु हो गई थी। उपकार आज भी जबरदस्त लोकप्रिय है। इस फिल्म से मनोज कुमार की किस्मत रातों-रात बदल गई। उपकार की कहानी और गाने दर्शकों को बेहद भाए। वास्तव में फिल्म में भारत के किसान के संघर्ष को दिखाया गया है। इसी फिल्म ने मनोज कुमार को दूसरा नया नाम भारत कुमार दे दिया। यूं तो मनोज कुमार का असली नाम हरिकिशन गोस्वामी था। लेकिन बॉलीवुड में उन्होंने मनोज कुमार और भारत कुमार के नाम से परचम फहराया। उन्होंने बॉलीवुड को एक से एक हिट फिल्में दी।