• भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के अनुसार, 1 से 31 अगस्त के बीच हिमाचल में जहां औसतन 256.8 मिलीमीटर वर्षा दर्ज होती है

शिमला। हिमाचल प्रदेश इस साल अगस्त माह में ऐसी तबाही से जूझ रहा है, जिसने बीते 50 वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। राज्य में सामान्य से 72 प्रतिशत अधिक बारिश हुई है, जिसने पूरे प्रदेश को संकट की स्थिति में ला खड़ा किया। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के अनुसार, 1 से 31 अगस्त के बीच हिमाचल में जहां औसतन 256.8 मिलीमीटर वर्षा दर्ज होती है, वहीं इस बार 440.8 मिलीमीटर बारिश हुई। यह आंकड़ा प्रदेश के इतिहास में पहली बार दर्ज किया गया है।

बारिश का असर – हर जिले में तबाही

इस बार सबसे अधिक नुकसान कुल्लू जिले में हुआ, जहां सामान्य से 162 प्रतिशत अधिक बारिश दर्ज की गई। सामान्य अगस्त में यहां 180.2 मिलीमीटर वर्षा होती है, लेकिन इस बार 472.9 मिलीमीटर बारिश हुई। इसके बाद शिमला में 126% ज्यादा, ऊना में 121% ज्यादा, सोलन में 118% ज्यादा और चंबा में 104% ज्यादा बारिश दर्ज की गई। यानी पांच जिलों में बारिश सामान्य से डबल से भी अधिक रही, जिसने भारी भूस्खलन, बाढ़ और मकानों के ध्वस्त होने जैसी घटनाओं को जन्म दिया।

मानसून सीजन भी औसत से ज्यादा

केवल अगस्त ही नहीं, बल्कि पूरा मानसून सीजन (1 जून से 31 अगस्त) भी सामान्य से ज्यादा रहा। जहां औसतन 613.8 मिलीमीटर बारिश होती है, वहीं इस बार 826.8 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई। लगातार हो रही तेज वर्षा से नदियां और नाले उफान पर हैं, जिससे सड़कें टूट गईं और पुल बह गए।

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3056 करोड़ की संपत्ति नष्ट

सरकारी रिपोर्ट के अनुसार, इस बारिश और प्राकृतिक आपदाओं से प्रदेश को 3056 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हो चुका है। अब तक 320 लोगों की मौत हो चुकी है।

  • 844 घर पूरी तरह जमींदोज हो गए।
  • 3254 घर आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हुए।
  • 472 दुकानें और 3710 गोशालाएं व मकान भी प्रभावित हुए।

राहत और बचाव कार्य

प्रदेश सरकार और एनडीआरएफ की टीमें लगातार राहत और बचाव कार्य में जुटी हुई हैं। हालांकि, पहाड़ों में जगह-जगह भूस्खलन और सड़क धंसने की घटनाओं ने राहत कार्य में बाधा डाली है। मुख्यमंत्री ने केंद्र से अतिरिक्त आर्थिक सहायता की मांग की है। वहीं ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें तत्काल पुनर्वास और मुआवज़े की ज़रूरत है, क्योंकि कई परिवार खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर हो गए हैं।

विशेषज्ञों की चेतावनी

मौसम विशेषज्ञों ने बताया कि जलवायु परिवर्तन और लगातार बढ़ते निर्माण कार्य इस तबाही के बड़े कारण हैं। उन्होंने कहा कि यदि इस तरह अंधाधुंध निर्माण जारी रहा तो आने वाले वर्षों में हिमाचल जैसी संवेदनशील जगहों पर और भी ज्यादा विनाशकारी आपदाएँ देखने को मिल सकती हैं।