इलाहाबाद हाईकोर्ट के विवादित फैसले पर बवाल, केंद्रीय मंत्री समेत कई सांसदों ने जताई आपत्ति
इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक हालिया फैसले को लेकर देशभर में बहस छिड़ गई है। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि किसी महिला के प्राइवेट पार्ट को छूना और उसके पायजामे की डोरी खींचना रेप की श्रेणी में नहीं आता। इस बयान के बाद महिला संगठनों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और कई राजनीतिक दलों ने नाराजगी जताई है।
केंद्रीय मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने किया फैसले का विरोध
केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने हाईकोर्ट के फैसले को पूरी तरह गलत बताया। उन्होंने कहा, “सभ्य समाज में इस तरह की मानसिकता के लिए कोई जगह नहीं है। सुप्रीम कोर्ट को इस फैसले का संज्ञान लेना चाहिए, क्योंकि इसका समाज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।”
शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने सुप्रीम कोर्ट से की अपील
शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने इस फैसले को लेकर कड़ी आपत्ति जताई और भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना को पत्र लिखकर इस पर हस्तक्षेप करने की मांग की। उन्होंने कहा कि जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा द्वारा दिया गया यह फैसला “गुमराह करने वाला” है और इसके लिए उन्हें डिसक्वालीफाई किया जाना चाहिए।
प्रियंका चतुर्वेदी ने अपनी चिट्ठी में लिखा:
- इस पूरे मामले को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर किया जाए ताकि पीड़ित को न्याय मिल सके।
- भविष्य में ऐसे असंवेदनशील फैसलों से बचने के लिए सभी न्यायाधीशों के लिए विशेष प्रशिक्षण अनिवार्य किया जाए।
टीएमसी और AAP सांसदों ने भी जताई नाराजगी
टीएमसी सांसद जून मालिया ने इस फैसले को “महिलाओं के प्रति असंवेदनशीलता” का उदाहरण बताते हुए कहा कि “हमें इस मानसिकता को बदलना होगा।”
आम आदमी पार्टी की सांसद स्वाति मालीवाल ने भी कड़ा विरोध जताते हुए कहा, “यह समझ से बाहर है कि अदालत ने इस फैसले का तर्क क्या दिया? सुप्रीम कोर्ट को तुरंत दखल देना चाहिए।”
क्या है पूरा मामला?
यह मामला उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले से जुड़ा है। 12 जनवरी, 2022 को एक महिला ने कोर्ट में शिकायत दर्ज कराई थी। उनका आरोप था कि 10 नवंबर, 2021 को जब वह अपनी 14 साल की बेटी के साथ रिश्तेदार के घर से लौट रही थीं, तो गांव के ही तीन लोगों पवन, आकाश और अशोक ने उन्हें रास्ते में रोक लिया।
- पवन ने महिला की बेटी को लिफ्ट देने की बात कहकर अपनी बाइक पर बैठा लिया।
- रास्ते में आकाश और पवन ने लड़की के प्राइवेट पार्ट को छूने की कोशिश की और जबरन उसके पायजामे की डोरी खींच दी।
- लड़की की चीख-पुकार सुनकर पास से गुजर रहे ग्रामीण सतीश और भूरे मौके पर पहुंचे।
- आरोपियों ने देशी तमंचा दिखाकर उन्हें धमकाया और वहां से फरार हो गए।
- जब पीड़िता की मां ने आरोपी पवन के पिता अशोक से शिकायत की, तो उन्होंने धमकी देते हुए गाली-गलौज की।
- पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज न करने के बाद महिला ने कोर्ट का रुख किया।
हाईकोर्ट ने क्यों दिया विवादित फैसला?
ट्रायल कोर्ट ने पहले इस मामले में आरोपियों पर आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार) और पॉक्सो एक्ट की धारा 18 के तहत मुकदमा चलाने के आदेश दिए थे। लेकिन आरोपियों ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए कहा:
- आरोपी पीड़िता के कपड़े उतारने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन इसे रेप की कोशिश नहीं माना जा सकता।
- बलात्कार की कोशिश साबित करने के लिए स्पष्ट इरादा दिखना चाहिए।
- मामले को आईपीसी की धारा 354 (महिला की लज्जा भंग करने के प्रयास) और पॉक्सो एक्ट की धारा 9/10 (गंभीर यौन हमला) के तहत माना जाएगा।
फैसले पर बढ़ता विवाद और आगे की राह
हाईकोर्ट के इस फैसले ने देशभर में गुस्से का माहौल बना दिया है। महिला संगठनों और राजनीतिक दलों का कहना है कि इस तरह के फैसले पीड़ितों के हक में नहीं जाते और यौन अपराधों को बढ़ावा दे सकते हैं।
अब सभी की निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर हैं कि क्या वह इस मामले में हस्तक्षेप करता है या नहीं। वहीं, इस फैसले को लेकर राजनीतिक बयानबाजी भी तेज हो रही है।
क्या आपको लगता है कि हाईकोर्ट का यह फैसला न्यायसंगत है? अपनी राय हमें कमेंट में बताएं!