- 17 अप्रैल को कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा था और तब तक वक्फ बोर्ड में किसी भी नई नियुक्ति पर रोक लगाने का निर्देश दिया था
नई दिल्ली। वक्फ संपत्तियों के बढ़ते दायरे और इससे जुड़े विवादों के बीच सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को वक्फ संशोधन कानून 2024 को लेकर सुनवाई शुरू हुई। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच इस बहुचर्चित मामले की सुनवाई कर रही है, जिसमें केंद्र सरकार और याचिकाकर्ताओं के बीच इस कानून की संवैधानिक वैधता को लेकर गहन बहस छिड़ी हुई है। इससे पहले 17 अप्रैल को कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा था और तब तक वक्फ बोर्ड में किसी भी नई नियुक्ति पर रोक लगाने का निर्देश दिया था। केंद्र ने 25 अप्रैल को दाखिल किए गए 1332 पन्नों के विस्तृत हलफनामे में दावा किया है कि 2013 के बाद से वक्फ संपत्तियों में 20 लाख एकड़ से अधिक की वृद्धि हुई है, जिससे निजी और सरकारी जमीनों पर स्वामित्व विवाद भी तेजी से बढ़े हैं। केंद्र ने जोर देते हुए कहा कि यह कानून पूरी तरह संवैधानिक है और विधिवत संसद से पारित हुआ है, इसलिए इस पर कोई रोक नहीं लगनी चाहिए। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में दलील दी कि यह संशोधन लाखों नागरिकों के सुझावों और व्यापक विमर्श के बाद तैयार किया गया है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि देश के कई हिस्सों में वक्फ के नाम पर गांवों और निजी संपत्तियों पर अधिकार जताया गया, जिससे स्थानीय लोगों में आक्रोश और भ्रम की स्थिति बनी। वहीं, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) और कई याचिकाकर्ताओं ने केंद्र के हलफनामे को ‘भ्रामक और तथ्यहीन’ करार दिया है। AIMPLB ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया कि वह ‘झूठा हलफनामा’ देने वाले सरकारी अधिकारी पर कार्रवाई करे। विपक्षी दलों और मुस्लिम संगठनों का आरोप है कि नया कानून वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता को सीमित करता है और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों का उल्लंघन करता है। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष 70 से अधिक याचिकाएं दाखिल हुई हैं, लेकिन फिलहाल पांच प्रमुख याचिकाओं पर ही सुनवाई की जा रही है, जिनमें AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी की याचिका भी शामिल है। यह कानून अप्रैल में राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद लागू हुआ था और इसे लोकसभा में 288 तथा राज्यसभा में 128 सांसदों का समर्थन मिला था, जबकि कई विपक्षी दलों ने इसे चुनौती दी है। बेंच ने फिलहाल अंतिम निर्णय देने से इनकार करते हुए कहा कि यह एक गंभीर संवैधानिक मुद्दा है और इस पर व्यापक सुनवाई की आवश्यकता है।