उज्जैन में आज रात होगा हरि-हर मिलन: भगवान महाकाल सृष्टि का भार विष्णु को सौंपेंगे, वैकुंठ चतुर्दशी पर भक्तों का मेला

उज्जैन, 03 नवंबर (हि.स.)।
महाकाल की नगरी उज्जैन आज रात एक अद्भुत और दिव्य दृश्य की साक्षी बनेगी, जब विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग भगवान महाकालेश्वर और श्रीहरि विष्णु का पावन हरि-हर मिलन संपन्न होगा। यह आयोजन वैकुंठ चतुर्दशी के अवसर पर होता है, जिसे ब्रह्मांड में सृजन और पालन की शक्तियों के मिलन का प्रतीक माना जाता है। इस रात को न केवल उज्जैन बल्कि पूरे भारत के श्रद्धालु आत्मिक उत्साह और आस्था से इस मिलन के दर्शन करने पहुंचते हैं।


🌕 हरि-हर मिलन की परंपरा और धार्मिक महत्व

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, देव शयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु पाताल लोक में राजा बलि के यहां विश्राम करने चले जाते हैं। इस अवधि में चार महीनों तक सृष्टि का संचालन भगवान शिव के अधीन रहता है। फिर जब देव उठनी एकादशी पर भगवान विष्णु जागते हैं, तो वैकुंठ चतुर्दशी के दिन महादेव स्वयं सृष्टि का भार पुनः श्रीहरि विष्णु को सौंपते हैं।
इसी क्षण को ‘हरि-हर मिलन’ कहा जाता है — यह सृष्टि के संतुलन, धर्म के पुनर्स्थापन और देव-शक्तियों के समन्वय का प्रतीक है।

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🛕 महाकालेश्वर से गोपाल मंदिर तक रजत पालकी सवारी

आज रात उज्जैन में यह दिव्य अनुष्ठान परंपरागत वैभव के साथ संपन्न होगा।
महाकालेश्वर मंदिर के सभा मंडप में रात्रि 11 बजे विशेष पूजन के बाद बाबा महाकाल की रजत पालकी सवारी निकलेगी। यह सवारी गुदरी चौराहा, पटनी बाजार से होती हुई गोपाल मंदिर तक पहुंचेगी।

गोपाल मंदिर पहुंचने पर भगवान श्रीहरि विष्णु का विशेष पूजन-अर्चन होगा।

  • महाकाल मंदिर के पुजारी भगवान विष्णु को बिल्वपत्र की माला अर्पित करेंगे।
  • वहीं गोपाल मंदिर के पुजारी भगवान महाकाल को तुलसी की माला अर्पित करेंगे।

यह क्षण प्रतीकात्मक रूप से दर्शाता है कि शिवजी सृष्टि संचालन का भार विष्णु को सौंपकर कैलाश पर्वत की तपस्या में लौट जाते हैं।
इस दृश्य को देखकर भक्तों की आंखों में आस्था और आनंद दोनों छलक उठते हैं।


🔔 श्रद्धालुओं की भीड़ और भावनाओं का उत्सव

हर वर्ष की तरह इस बार भी हजारों श्रद्धालु उज्जैन पहुंच चुके हैं। मंदिर परिसर और सवारी मार्ग दीपों से जगमगा रहे हैं। श्रद्धालु सड़कों पर दीपदान करते हैं, फूल बरसाते हैं और “हर हर महादेव” तथा “जय श्रीहरि” के जयकारों से पूरा शहर गूंज उठता है।

यह दृश्य केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि ब्रह्मांडीय संतुलन का जीवंत प्रदर्शन है — जहां सृजन (विष्णु) और संहार (शिव) की शक्तियाँ एक साथ आती हैं।

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🧿 प्रशासन के पुख्ता इंतजाम, आतिशबाजी पर पूर्ण प्रतिबंध

उज्जैन कलेक्टर रौशन कुमार सिंह ने सुरक्षा और अनुशासन सुनिश्चित करने के लिए भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 163 (1) के तहत आदेश जारी किए हैं।
इन आदेशों के अनुसार —

  • 3 और 4 नवंबर की मध्यरात्रि में आतिशबाजी, हिंगोट रॉकेट के उपयोग और बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध रहेगा।
  • हिंगोट या रॉकेट का निर्माण, विक्रय या संधारण करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।

महाकाल मंदिर समिति के प्रशासक प्रथम कौशिक ने बताया कि मंदिर परिसर और सवारी मार्ग पर सफाई, प्रकाश व्यवस्था, बैरिकेडिंग, भीड़ नियंत्रण और दमकल दल की तैनाती कर दी गई है।
पुलिस अधीक्षक प्रदीप शर्मा के अनुसार, पूरे मार्ग पर सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं और सुरक्षा बलों की तैनाती बढ़ाई गई है।


वैकुंठ चतुर्दशी का आध्यात्मिक महत्व

वैकुंठ चतुर्दशी हिंदू धर्म में मोक्ष प्राप्ति की तिथि मानी जाती है।
स्कंद पुराण के अनुसार, इस दिन भगवान शिव और विष्णु दोनों की आराधना करने से जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट होते हैं।

इस दिन विशेष रूप से—

  • शिवलिंग पर बेलपत्र, धतूरा और जल अर्पित किया जाता है।
  • भगवान विष्णु को तुलसी और दीप अर्पण किया जाता है।
  • श्रद्धालु गंगा स्नान, दान और दीपदान करते हैं, जिससे जीवन में सुख-समृद्धि और वैभव आता है।

🌸 उज्जैन की देवोपम परंपरा

उज्जैन, जो स्वयं महाकालेश्वर का निवास स्थान है, में यह परंपरा सदियों से निभाई जा रही है।
इतिहासकारों के अनुसार, हरि-हर मिलन का उल्लेख कालिदास के रघुवंश और स्कंद पुराण में भी मिलता है। इस दिन उज्जैन की गलियों में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है, मंदिरों में विशेष भजन-कीर्तन होते हैं और घाटों पर दीपों की श्रृंखला जगमगाती है।


🔱 धार्मिक संदेश: एकता का प्रतीक है हरि-हर मिलन

हरि-हर मिलन केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह उस आध्यात्मिक एकता का प्रतीक है जो दर्शाती है कि शिव और विष्णु में कोई भेद नहीं है — दोनों ही ब्रह्म के दो रूप हैं।
जहां विष्णु सृजन और पालन के प्रतीक हैं, वहीं शिव संहार और पुनर्निर्माण के।
दोनों के मिलन से ही ब्रह्मांड का संतुलन बना रहता है।


आज रात उज्जैन में जब चांदनी के बीच रजत पालकी सजेगी, दीपों की रोशनी नदियों में झिलमिलाएगी, और हजारों श्रद्धालु “हरि-हर मिलन” के जयघोष में लीन होंगे — तब यह दृश्य एक बार फिर प्रमाणित करेगा कि धर्म केवल पूजा नहीं, बल्कि ब्रह्मांडीय समरसता का उत्सव है।