ज्ञानवापी मामले में तीन बहनों को पक्षकार बनाने की मांग खारिज
वाराणसी। ज्ञानवापी मामले से जुड़े एक महत्वपूर्ण विकास में, जिला जज जयप्रकाश तिवारी की अदालत ने सोमवार को वादी हरिहर पांडेय की तीन पुत्रियों को मूल वाद में पक्षकार बनाए जाने और मामले को अन्य न्यायालय में स्थानांतरित किए जाने की मांग को खारिज कर दिया।
अदालत ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि प्रार्थना पत्र स्वीकार योग्य नहीं है, क्योंकि इसे सीआरपीसी की धारा 24 के तहत दाखिल किया जाना चाहिए था, जो कि नहीं हुआ। अदालत ने कहा कि इस मामले में सिविल जज (सीनियर डिविजन फास्टट्रैक) की अदालत में पहले से ही सुनवाई चल रही है, इसलिए वर्तमान प्रार्थना पत्र आधारहीन है।
वादमित्र की आपत्ति बनी आधार
इस प्रकरण में वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी ने अदालत के समक्ष आपत्ति दर्ज की थी और कहा था कि यह प्रार्थना पत्र पोषणीय नहीं है। उन्होंने इसे खारिज करने की मांग की थी। पिछली सुनवाई में दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने 7 जुलाई को आदेश सुरक्षित रखा था, जो अब सुनाया गया।
मूल वाद का पृष्ठभूमि
गौरतलब है कि ज्ञानवापी परिसर में नए मंदिर के निर्माण और पूजा-पाठ के अधिकार को लेकर वर्ष 1991 में सोमनाथ व्यास (अब दिवंगत), डॉ. रासरंग शर्मा और हरिहर पांडेय द्वारा एक मुकदमा सिविल जज (सीनियर डिविजन) की अदालत में दायर किया गया था। यह वाद वर्तमान में फास्टट्रैक कोर्ट में लंबित है।
हरिहर पांडेय की मृत्यु के बाद उनकी बेटियों की अर्जी
वादी हरिहर पांडेय की मृत्यु के बाद उनकी पुत्रियाँ मणिकुंतला तिवारी, नीलिमा मिश्रा और रेणु पांडेय ने अदालत में आवेदन देकर खुद को पक्षकार बनाए जाने की मांग की थी। उनके अधिवक्ता ने यह भी तर्क दिया था कि सिविल जज (फास्टट्रैक) की अदालत में उन्हें पक्ष रखने का पूरा अवसर नहीं दिया जा रहा है, इसलिए मुकदमा किसी अन्य अदालत में स्थानांतरित किया जाए।
हालांकि, जिला अदालत ने इन दलीलों को अस्वीकार करते हुए प्रार्थना पत्र निरस्त कर दिया और स्पष्ट किया कि मामला उसी अदालत में चलता रहेगा जहाँ यह फिलहाल विचाराधीन है।
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