नई दिल्ली। भारत में हरित ऊर्जा के क्षेत्र में बड़ा आर्थिक परिवर्तन आने वाला है। ग्रीन हाइड्रोजन यानी हरित हाइड्रोजन की उत्पादन लागत में आने वाले वर्षों में लगभग 40% की गिरावट आ सकती है। यह अनुमान प्रतिष्ठित संस्था इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस (IEEFA) की हालिया रिपोर्ट में व्यक्त किया गया है।
यह गिरावट भारत सरकार की हरित ऊर्जा नीतियों, सस्ती अक्षय ऊर्जा की उपलब्धता और इलेक्ट्रोलाइजर निर्माण लागत में संभावित कटौती के चलते संभव हो सकती है। देश का लक्ष्य है कि 2030 तक 5 मिलियन टन (50 लाख टन) ग्रीन हाइड्रोजन का वार्षिक उत्पादन किया जाए।
₹260 से ₹310 प्रति किलो हो सकती है लागत
रिपोर्ट के मुताबिक, ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन की औसत लागत भारत में ₹260 से ₹310 प्रति किलोग्राम के बीच आ सकती है, यानी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर करीब 3 से 3.75 डॉलर प्रति किलोग्राम। वर्तमान में यह लागत अधिक है, लेकिन सरकारी नीतियों के चलते इसमें उल्लेखनीय गिरावट संभव है।
सरकार की ये योजनाएं बनीं सहायक
भारत सरकार ने हाइड्रोजन निर्माताओं के लिए नवीकरणीय बिजली सस्ती करने, ओपन एक्सेस के लिए ट्रांसमिशन शुल्क हटाने, और जीएसटी दर 5% करने जैसे कई प्रोत्साहनात्मक कदम उठाए हैं। इससे कंपनियों को हाइड्रोजन उत्पादन में लागत घटाने में मदद मिलेगी।
- इंटर-स्टेट ट्रांसमिशन चार्ज माफ
- डिस्ट्रीब्यूशन और ट्रांसमिशन टैरिफ में कटौती
- हाइड्रोजन पर 5% जीएसटी दर
- स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा
इलेक्ट्रोलाइजर लागत में भी संभावित गिरावट
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IEEFA की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन में इस्तेमाल होने वाले इलेक्ट्रोलाइजर की कीमतों में भी 7 से 10% तक गिरावट आ सकती है। इलेक्ट्रोलाइजर वह उपकरण होता है जो बिजली से पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभाजित करता है।
इस लागत में कमी से देश में हाइड्रोजन उत्पादन की गति तेज हो सकती है, जिससे औद्योगिक, परिवहन और कृषि क्षेत्रों में ग्रीन हाइड्रोजन के उपयोग की संभावना बढ़ जाएगी।
सुधारों की अब भी जरूरत
रिपोर्ट के अनुसार, भारत के नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन को उद्योग जगत ने सकारात्मक रूप से स्वीकार किया है, लेकिन इसमें और सुधार की गुंजाइश है। विशेषकर स्टार्टअप्स को आकर्षित करने, मांग स्थिर करने, और आपूर्ति श्रृंखला विकसित करने की दिशा में बेहतर योजनाओं की जरूरत है।
यदि ये पहल सफल रहती हैं, तो ग्रीन हाइड्रोजन भारत में कार्बन उत्सर्जन को कम करने, ऊर्जा आयात पर निर्भरता घटाने और नई नौकरियों के अवसर पैदा करने में मदद कर सकता है।
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ग्रीन हाइड्रोजन मिशन: भारत की बड़ी पहल
जनवरी 2023 में भारत सरकार ने राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन की शुरुआत की थी, जिसके तहत ₹19,744 करोड़ के निवेश के साथ 2030 तक 5 मिलियन टन उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। यह मिशन भारत को ग्रीन हाइड्रोजन के वैश्विक उत्पादन केंद्र के रूप में स्थापित करने का प्रयास है।
पंचामृत प्रतिज्ञा और नेट ज़ीरो का लक्ष्य
भारत ने 2021 में COP26 सम्मेलन में ‘पंचामृत’ प्रतिज्ञा के अंतर्गत निम्नलिखित लक्ष्य तय किए थे:
- 500 GW गैर-जीवाश्म विद्युत क्षमता प्राप्त करना
- 50% ऊर्जा आवश्यकताएं नवीकरणीय स्रोतों से
- 1 बिलियन टन कार्बन उत्सर्जन में कमी
- GDP उत्सर्जन तीव्रता में 45% की कटौती
- 2070 तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन का लक्ष्य
भारत में ग्रीन हाइड्रोजन की लागत में संभावित 40% गिरावट न केवल ऊर्जा क्रांति को गति देगी, बल्कि यह भारत को दुनिया के प्रमुख ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादकों की सूची में शामिल कर सकती है। सरकार की मजबूत नीतियों, उद्योगों की भागीदारी और तकनीकी विकास से भारत स्वच्छ ऊर्जा के युग की ओर एक निर्णायक कदम बढ़ा रहा है।
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