सोने-चांदी के दामों में गिरावट, 8 दिन में सोना 10,420 और चांदी 25,830 रुपए सस्ती
फेस्टिवल सीजन के बाद घटी डिमांड, वैश्विक तनाव कम होने और मुनाफावसूली से प्रभावित हुआ बाजार
नई दिल्ली । देशभर में सोने-चांदी के दामों में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है। 28 अक्टूबर (सोमवार) को सोने की कीमतों में भारी गिरावट दर्ज की गई, वहीं चांदी के भाव में भी तेजी से कमी आई है। इंडिया बुलियन एंड ज्वेलर्स एसोसिएशन (IBJA) के आंकड़ों के अनुसार, सोने के भाव में ₹1,913 प्रति 10 ग्राम की गिरावट दर्ज की गई है, जबकि चांदी ₹1,631 प्रति किलोग्राम सस्ती हुई है।
वर्तमान में 10 ग्राम सोने की कीमत ₹1,19,164 है, जो पहले ₹1,21,077 थी। वहीं चांदी का भाव घटकर ₹1,43,400 प्रति किलोग्राम पर आ गया है, जबकि कल यह ₹1,45,031 प्रति किलोग्राम थी।
8 दिनों में सोना 10,420 रुपए सस्ता, चांदी में भी बड़ी गिरावट
पिछले आठ दिनों में सोने के दामों में उल्लेखनीय गिरावट आई है। 19 अक्टूबर को सोने का भाव ₹1,29,584 प्रति 10 ग्राम के अपने उच्चतम स्तर पर था, जो अब घटकर ₹1,19,164 प्रति 10 ग्राम पर पहुंच गया है। यानी केवल आठ दिनों में ₹10,420 रुपए की गिरावट दर्ज की गई।
इसी अवधि में चांदी के दामों में भी बड़ी गिरावट आई है। चांदी 1,69,230 रुपए प्रति किलो से घटकर 1,43,400 रुपए प्रति किलो हो गई है। यानी कुल ₹25,830 रुपए की कमी आई है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह गिरावट घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों कारकों का परिणाम है।

कीमतों में गिरावट के प्रमुख कारण
सोना-चांदी की कीमतों में आई इस गिरावट के पीछे कई अहम कारण हैं —
1. त्योहारी खरीदारी के खत्म होने से घटती मांग
दीवाली, धनतेरस और शादियों के शुरुआती दौर में सोने-चांदी की मांग में तेजी देखी गई थी, लेकिन अब त्योहारों के बाद खरीदारी का रुझान धीमा पड़ गया है। पारंपरिक रूप से भारत में त्योहारी सीजन खत्म होने के बाद ज्वेलरी की बिक्री घट जाती है, जिसका सीधा असर कीमतों पर पड़ता है।
2. वैश्विक तनाव में कमी
पिछले कुछ महीनों से पश्चिम एशिया और यूरोप में चल रहे भू-राजनीतिक तनाव के कारण निवेशक सुरक्षित निवेश विकल्प के रूप में सोने-चांदी की ओर झुके थे। लेकिन हाल के दिनों में हालात में थोड़ी स्थिरता आने से निवेशकों ने सोना बेचकर मुनाफावसूली की, जिससे कीमतों में गिरावट आई।
3. मुनाफावसूली और ओवरबॉट मार्केट
विशेषज्ञों के अनुसार, पिछले दिनों सोने की कीमतों में आई तीव्र बढ़त के बाद अब बाजार में मुनाफावसूली (Profit Taking) का दौर चल रहा है। तकनीकी संकेतक (Technical Indicators) जैसे RSI (Relative Strength Index) पहले ही संकेत दे रहे थे कि बाजार ओवरबॉट ज़ोन में है। ऐसे में कई बड़े निवेशकों ने अपने पोर्टफोलियो से सोना निकालकर बिक्री शुरू कर दी, जिससे कीमतों पर दबाव बढ़ गया।
इस साल अब तक सोना 43 हजार और चांदी 69 हजार रुपए महंगी
हालांकि हालिया गिरावट के बावजूद, पूरे साल के हिसाब से देखें तो सोना और चांदी दोनों में अब भी अच्छी बढ़त बनी हुई है।
- 31 दिसंबर 2024 को सोने की कीमत ₹76,162 प्रति 10 ग्राम थी, जो अब बढ़कर ₹1,19,164 तक पहुंच गई है — यानी इस साल अब तक ₹43,002 की बढ़ोतरी हुई है।
- इसी अवधि में चांदी ₹86,017 प्रति किलो से बढ़कर ₹1,43,400 तक पहुंची है — यानी कुल ₹57,383 की वृद्धि हुई है।
इससे स्पष्ट है कि दीर्घकालिक निवेशकों के लिए सोना अब भी एक स्थायी और सुरक्षित विकल्प बना हुआ है।
IBJA के रेट और शहरों में फर्क क्यों होता है
IBJA की ओर से जारी दरों में 3% जीएसटी, मेकिंग चार्ज और ज्वेलर्स मार्जिन शामिल नहीं होते, इसलिए विभिन्न शहरों में दरें अलग-अलग होती हैं। बैंक और आरबीआई भी सोवरेन गोल्ड बॉन्ड (SGB) के दाम तय करने के लिए इन्हीं दरों का उपयोग करते हैं। कई बैंक इन्हीं आंकड़ों के आधार पर गोल्ड लोन की ब्याज दरें भी निर्धारित करते हैं।
सोना खरीदते समय सावधानी बरतें
विशेषज्ञों के अनुसार, निवेशकों और उपभोक्ताओं को सोना खरीदते समय दो महत्वपूर्ण बातों पर ध्यान देना चाहिए —
- सर्टिफाइड और हॉलमार्क सोना ही खरीदें: ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड (BIS) का हॉलमार्क होना अनिवार्य है। इससे सोने की शुद्धता (कैरेट वैल्यू) की पुष्टि होती है।
- रेट की तुलना करें: खरीदारी के दिन सोने का भाव कई स्रोतों — जैसे इंडिया बुलियन एंड ज्वेलर्स एसोसिएशन की वेबसाइट, स्थानीय ज्वेलर्स और बैंकों से — क्रॉस चेक करें, क्योंकि 24 कैरेट, 22 कैरेट और 18 कैरेट सोने के रेट अलग-अलग होते हैं।
आगे के संकेत: कीमतों में स्थिरता या और गिरावट?
बाजार विशेषज्ञों का अनुमान है कि अगले कुछ सप्ताहों में सोना और चांदी की कीमतों में हल्की और गिरावट हो सकती है, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर मजबूत हुआ है और अमेरिकी बॉन्ड यील्ड में बढ़ोतरी देखी जा रही है। हालांकि दीर्घकालिक निवेशकों के लिए सोना अब भी सुरक्षित संपत्ति मानी जा रही है, खासकर तब जब वैश्विक अर्थव्यवस्था में अस्थिरता बनी हुई है।
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