अदालत ने कहा- चतुराई से बार-बार आवेदन देना स्वीकार्य नहीं
गौतम नवलखा को कोर्ट से झटका, एलगार परिषद मामले में दिल्ली जाने की अनुमति नहीं
मुंबई। एलगार परिषद मामले में आरोपित मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा को बड़ा झटका लगा है। मुंबई की विशेष एनआईए कोर्ट ने उनकी उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने 45 दिनों तक दिल्ली में रहने की अनुमति मांगी थी। अदालत ने स्पष्ट किया कि आरोपी बार-बार एक जैसे आधारों पर आवेदन दाखिल कर न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग कर रहे हैं।
विशेष न्यायाधीश चकोर बाविस्कर ने अपने आदेश में कहा कि नवलखा ने "बड़ी चतुराई" से एक ही तर्क के आधार पर अलग-अलग आवेदन दायर करने की तरकीब निकाली है ताकि उन्हें दिल्ली में रुकने की अनुमति मिल सके, जो कि "न्यायिक रूप से स्वीकार्य नहीं है और न्याय प्रक्रिया के साथ खिलवाड़ है।"
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उच्च न्यायालय से मिली थी सशर्त ज़मानत
गौतम नवलखा को दिसंबर 2023 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने सशर्त ज़मानत दी थी, जिसमें यह शर्त स्पष्ट रूप से शामिल थी कि वे मुंबई नहीं छोड़ सकते, जब तक कि विशेष एनआईए कोर्ट से अनुमति न मिल जाए। इसी शर्त के तहत उन्होंने विशेष कोर्ट में याचिका दाखिल कर दिल्ली में 45 दिन तक रहने की अनुमति मांगी थी।
नवलखा ने याचिका में क्या दलीलें दीं?
गौतम नवलखा ने अपनी याचिका में कई मानवीय और व्यक्तिगत कारणों का हवाला दिया था:
- अपने साथी की पोती-पोतियों के साथ समय बिताने की इच्छा।
- अपनी बीमार बहन की देखभाल करने की जिम्मेदारी।
- दिल्ली में रहने के दौरान अपने संपर्कों के माध्यम से पेशेवर अवसर तलाशने की मंशा।
हालांकि, अदालत ने इन दलीलों को अपर्याप्त और पुनरावृत्त (repetitive) मानते हुए खारिज कर दिया।
क्या है एलगार परिषद मामला?
एलगार परिषद मामला 31 दिसंबर 2017 को पुणे में आयोजित एक कार्यक्रम से जुड़ा है, जिसके बाद भीमा-कोरेगांव में जातीय हिंसा हुई थी। इस मामले में कई सामाजिक कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों को कथित रूप से माओवादी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था। नवलखा उन्हीं आरोपितों में से एक हैं।
एनआईए (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) ने आरोप लगाया है कि यह परिषद कथित रूप से माओवादी संगठनों के प्रभाव में आयोजित की गई थी और इसका उद्देश्य राज्यविरोधी गतिविधियों को बढ़ावा देना था।
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मानवाधिकार संगठनों की प्रतिक्रिया
मानवाधिकार संगठनों ने अदालत के इस निर्णय पर नाराज़गी जताई है। उनका कहना है कि नवलखा को मानवीय आधार पर कुछ राहत दी जानी चाहिए थी। वे पहले ही लंबी अवधि से नजरबंद हैं और उनके खिलाफ अब तक कोई ठोस साक्ष्य सार्वजनिक नहीं किए गए हैं।
न्यायिक सख्ती या वैधानिक प्रक्रिया की रक्षा?
विशेष कोर्ट के इस निर्णय को लेकर दो दृष्टिकोण सामने आ रहे हैं — एक तरफ अदालत कानून के अनुपालन और न्यायिक प्रक्रिया की गंभीरता बनाए रखने पर जोर दे रही है, तो दूसरी ओर मानवाधिकार समूह इसे एक वरिष्ठ नागरिक की मानवीय अपील की अनदेखी मान रहे हैं।
फिलहाल, कोर्ट का रुख स्पष्ट है: नवलखा को मुंबई छोड़ने की अनुमति नहीं मिलेगी और उन्हें यथास्थिति का पालन करना होगा।
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