गणाधिप संकष्टी चतुर्थी 2025: 8 नवंबर को बन रहे हैं शुभ योग, जानें व्रत विधि, चंद्र दर्शन का समय और धार्मिक महत्व
मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि, जिसे गणाधिप संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है, इस वर्ष 8 नवंबर 2025 को मनाई जाएगी। यह दिन भगवान श्री गणेश की विशेष पूजा-अर्चना और व्रत के लिए अत्यंत शुभ माना गया है। हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, जो भक्त इस दिन पूरे विधि-विधान से गणेश जी की उपासना करता है, उसके जीवन से समस्त बाधाएं, कष्ट और संकट समाप्त हो जाते हैं तथा सुख, सौभाग्य और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है।
संकष्टी चतुर्थी का महत्व
हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि भगवान श्री गणेश को समर्पित होती है। इसे संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। जब यह तिथि मार्गशीर्ष माह में आती है, तब इसे विशेष रूप से गणाधिप संकष्टी चतुर्थी के नाम से मनाया जाता है। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता और मंगलकर्ता कहा गया है, जो अपने भक्तों के जीवन से सभी प्रकार की बाधाओं को दूर करते हैं।
ऐसा कहा गया है कि जो व्यक्ति इस दिन श्रद्धापूर्वक व्रत रखता है और रात्रि में चंद्र दर्शन के बाद गणेश जी को अर्घ्य अर्पित करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यह व्रत न केवल मानसिक शांति और आत्मिक बल प्रदान करता है, बल्कि व्यक्ति के जीवन में धन, सफलता और सौभाग्य का भी आगमन करता है।
गणाधिप संकष्टी चतुर्थी की तिथि और मुहूर्त
वैदिक पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि इस वर्ष 8 नवंबर 2025 की सुबह 7:32 बजे से आरंभ होकर 9 नवंबर की सुबह 4:25 बजे तक रहेगी। चतुर्थी तिथि का उदय 8 नवंबर को हो रहा है, इसलिए गणाधिप संकष्टी चतुर्थी का व्रत 8 नवंबर को ही रखा जाएगा।
चंद्र दर्शन का शुभ समय रात 7:59 बजे रहेगा। व्रतधारी इसी समय चंद्रमा को अर्घ्य अर्पित कर अपने व्रत का समापन करेंगे।
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इस वर्ष बन रहे हैं शुभ योग
ज्योतिषीय दृष्टि से इस वर्ष की गणाधिप संकष्टी चतुर्थी विशेष मानी जा रही है क्योंकि इस दिन कई शुभ योगों का संयोग बन रहा है।
- शिव योग और सिद्ध योग का संयोग इस दिन बन रहा है, जो किसी भी धार्मिक अनुष्ठान के लिए अत्यंत मंगलकारी होता है।
- इसके साथ ही भद्रावास योग और शिववास योग का निर्माण भी हो रहा है, जिससे गणेश पूजा का फल कई गुना बढ़ जाता है।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, इन शुभ संयोगों में गणपति की आराधना करने से मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण होती हैं, परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है और जीवन से सभी प्रकार के विघ्न और संकट दूर होते हैं।
व्रत और पूजा की विधि
गणाधिप संकष्टी चतुर्थी के दिन प्रातः स्नान कर स्वच्छ लाल या पीले वस्त्र धारण करना शुभ माना गया है। पूजा स्थल पर गणेश जी की प्रतिमा या चित्र स्थापित कर दूर्वा, मोदक, लड्डू, लाल फूल और दीपक से भगवान गणेश की आराधना की जाती है।
इस दिन “एकदन्त” स्वरूप की पूजा विशेष फलदायी मानी गई है। एकदन्त गणेश जी के उस स्वरूप का प्रतीक है जो ज्ञान, बुद्धि और धन के मार्ग को प्रकाशित करता है। भक्तों को “ॐ एकदन्ताय नमः” मंत्र का 108 बार जाप करना चाहिए।
पूजा के बाद दिनभर उपवास रखकर रात्रि में चंद्रमा के दर्शन के बाद अर्घ्य अर्पित किया जाता है। जल, दूध, चंदन और फूलों से चंद्रमा को अर्घ्य देकर गणेश जी से सभी कष्टों के निवारण और सुख-समृद्धि की प्रार्थना की जाती है।
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धार्मिक मान्यता और लाभ
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, स्वयं माता पार्वती ने गणेश जी से कहा था कि जो भी भक्त इस तिथि पर व्रत रखेगा और चंद्रमा को अर्घ्य देगा, उसके जीवन में आने वाले सभी संकट समाप्त हो जाएंगे। इसी कारण इसे ‘संकष्टी चतुर्थी’ कहा गया — अर्थात वह तिथि जो संकटनाशिनी है।
इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति को पिछले जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है, मानसिक शांति प्राप्त होती है और आर्थिक रूप से स्थिरता आती है। ज्योतिषीय दृष्टि से यह व्रत ग्रहदोषों के निवारण में भी अत्यंत प्रभावी माना गया है।
आध्यात्मिक संदेश
गणाधिप संकष्टी चतुर्थी केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मसंयम और सकारात्मक सोच का प्रतीक है। इस दिन का उपवास व्यक्ति को आत्मचिंतन का अवसर देता है और भौतिक जीवन की अशांति से राहत प्रदान करता है। भगवान गणेश के प्रति अटूट श्रद्धा और विनम्रता से किया गया यह व्रत व्यक्ति के जीवन में नई ऊर्जा और संतुलन लाता है।
समापन
इस बार जब मार्गशीर्ष की गणाधिप संकष्टी चतुर्थी 8 नवंबर को आएगी, तो भक्तों के लिए यह केवल पूजा का अवसर नहीं बल्कि जीवन की बाधाओं से मुक्ति पाने और सौभाग्य प्राप्त करने का दिव्य पर्व होगा। गणेश जी की आराधना से परिवार में सुख-शांति, व्यवसाय में सफलता और जीवन में मंगल की कामना की जा सकती है।
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