सोहनलाल ने चिट्ठी में कहा था- रोना नहीं, नाचते-गाते विदा करना
मंदसौर में दोस्त की अंतिम इच्छा पर शव यात्रा में नाचे मित्र
मंदसौर।
मित्रता का ऐसा भावुक और अद्वितीय उदाहरण मंदसौर जिले के जवासिया गांव में देखने को मिला, जहां एक मित्र ने अपने मरने से पहले की अंतिम इच्छा में यह कहा था कि उसकी शव यात्रा में कोई गम न मनाया जाए, बल्कि नाचते-गाते उसे विदा किया जाए। जब वह निधन को प्राप्त हुआ, तो उसका घनिष्ठ मित्र उसकी इस आखिरी इच्छा को पूरी श्रद्धा और आंसुओं के साथ निभाते हुए अर्थी के आगे नाचा। यह घटना न केवल गांव में चर्चा का विषय बनी हुई है, बल्कि पूरे इलाके में मित्रता की एक आदर्श मिसाल के रूप में देखी जा रही है।

चाय की दुकान से शुरू हुई दोस्ती, बनी कृष्ण-सुदामा जैसी मिसाल
करीब पंद्रह वर्ष पूर्व सोहनलाल जैन और अंबालाल प्रजापत की मुलाकात गांव की एक साधारण चाय की दुकान पर हुई थी। समय के साथ यह दोस्ती इतनी प्रगाढ़ हुई कि दोनों का जीवन एक-दूसरे से पूरी तरह जुड़ गया। दोनों ही भजन, सत्संग और धार्मिक आयोजनों में नियमित रूप से भाग लेते थे। कई बार वे भक्ति-भाव में डूबकर मंदिरों में कीर्तन भी करते थे। उनकी मित्रता को गांव वाले ‘कृष्ण-सुदामा’ जैसा मानते थे।
साल 2021 में लिखी चिट्ठी में जताई थी अंतिम इच्छा
सोहनलाल जैन, जो पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे, ने वर्ष 2021 में एक चिट्ठी लिखकर अपने मित्र अंबालाल को सौंप दी थी। इस चिट्ठी में उन्होंने स्पष्ट लिखा कि जब उनकी मृत्यु हो, तो कोई ग़म न मनाया जाए, न कोई रोए। बल्कि ढोल-नगाड़ों के साथ, नाचते-गाते हुए उनकी शव यात्रा निकाली जाए। उनका मानना था कि जीवन और मृत्यु दोनों परमात्मा की देन हैं, और अंत समय को भी उत्सव की तरह विदाई में बदला जा सकता है।

अंतिम विदाई में निभाई गई मित्रता की अंतिम कसौटी
जब हाल ही में सोहनलाल का निधन हुआ, तो अंबालाल ने मित्र की अंतिम इच्छा को पूरी श्रद्धा और साहस के साथ निभाया। उन्होंने गांववालों को इकट्ठा किया, ढोल-नगाड़े बुलवाए और पूरी शव यात्रा को एक जुलूस की तरह निकाला। इसके आगे-आगे वे स्वयं नाचते हुए चले, भले ही आंखों में आंसू थे, पर दिल में मित्रता की आखिरी डोर थी।
गांव में हुई चर्चा, लोग बोले- “ऐसी दोस्ती अब नहीं मिलती”
जवासिया गांव के बुजुर्गों से लेकर युवाओं तक सभी ने इस दृश्य को देखकर मित्रता की गहराई को महसूस किया। एक वृद्ध महिला ने कहा, “हमने आज तक नहीं देखा कि कोई अपने दोस्त की शव यात्रा में इस तरह नाचे। पर जो किया, वह वाकई दिल छू लेने वाला था।” वहीं कई युवाओं ने कहा कि यह सिखने जैसा है कि मित्रता सिर्फ मौज-मस्ती तक सीमित नहीं होती, बल्कि कठिन समय में निभाना ही असली दोस्ती होती है।
मित्र की इच्छा पूरी करने में कोई संकोच नहीं: अंबालाल
जब मीडिया ने अंबालाल से इस भावुक निर्णय के बारे में पूछा, तो उन्होंने कहा, “सोहनलाल भाई ने मेरे लिए जो भाव रखे थे, उन्हें निभाना मेरा फर्ज़ था। उन्होंने मुझसे वादा लिया था, तो मैं कैसे पीछे हटता? भले ही दिल भारी था, लेकिन मैं जानता था कि वह जहां भी होंगे, मेरे इस कदम से खुश होंगे।”
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