मुफ्त की योजनाओं के ऐलान से सर्वोच्च न्यायालय नाराज
नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को एक मामले की सुनवाई के दौरान चुनाव में राजनीतिक पार्टियों द्वारा मुफ्त की योजनाओं के ऐलान पर नाराजगी जाहिर की। अदालत ने कहा कि यदि लोगों को लगातार मुफ्त राशन और पैसे मिलते रहेंगे, तो इससे उनकी काम करने की इच्छा प्रभावित होगी। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। याचिका में शहरी इलाकों में बेघर लोगों को आश्रय स्थल मुहैया कराने की मांग की गई थी।
न्यायालय की सख्त टिप्पणी
सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि मुफ्त योजनाओं के कारण लोग काम करने की इच्छा नहीं रखते। उन्हें मुफ्त राशन और बिना काम किए आर्थिक सहायता मिल रही है। जस्टिस गवई ने टिप्पणी करते हुए कहा, “कहते हुए दुख हो रहा है, लेकिन क्या बेघर लोगों को समाज की मुख्यधारा में शामिल नहीं किया जाना चाहिए, ताकि वे भी देश के विकास में योगदान दे सकें? क्या हम इस तरह से परजीवियों का एक वर्ग तैयार नहीं कर रहे हैं?”
याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने अदालत को बताया कि सरकार ने शहरी इलाकों में आश्रय स्थलों के लिए फंडिंग बंद कर दी है, जिसके चलते इस सर्दी में 750 से अधिक बेघर लोगों की मौत हो गई। इस पर अदालत ने चिंता जताई और केंद्र सरकार से स्पष्ट जवाब मांगा।
केंद्र सरकार की सफाई और सुनवाई टली
केंद्र सरकार की ओर से पक्ष रख रहे अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमाणी ने न्यायालय को बताया कि सरकार शहरी इलाकों में गरीबी उन्मूलन के लिए एक नई योजना को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में है, जिसमें बेघर लोगों को आश्रय देने का भी प्रावधान होगा। इस पर अदालत ने केंद्र से पूछा कि यह योजना कितने समय में लागू होगी। इसके बाद न्यायालय ने मामले की सुनवाई छह सप्ताह के लिए टाल दी।
चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर सुनवाई 19 फरवरी को
इस बीच, मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति से जुड़े नए कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की तारीख तय कर दी गई है। सर्वोच्च न्यायालय 19 फरवरी को इस मामले की सुनवाई करेगा।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने इस मामले की सुनवाई के दौरान एनजीओ एडीआर की ओर से पेश हुए वकील प्रशांत भूषण को जानकारी दी। वकील प्रशांत भूषण ने अपील की कि इस याचिका पर जल्द सुनवाई होनी चाहिए, क्योंकि जल्द ही नए मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति होनी है। अदालत ने इस पर सहमति जताई और 19 फरवरी की तारीख तय कर दी।
क्या मुफ्त योजनाएं हानिकारक हैं?
इस पूरे घटनाक्रम के बाद यह बहस तेज हो गई है कि क्या मुफ्त की योजनाएं जनता की निर्भरता बढ़ाकर उन्हें आलसी बना रही हैं? न्यायालय का मानना है कि यह समाज के लिए दीर्घकालिक रूप से नुकसानदायक हो सकता है। अब देखना होगा कि सरकार इस विषय पर क्या कदम उठाती है और अदालत का अंतिम फैसला क्या होता है।