फ्रांस में सियासी संकट: पीएम सेबेस्टियन लेकोर्नू ने 27 दिन में दिया इस्तीफा, विपक्ष ने राष्ट्रपति मैक्रों से मांगा त्यागपत्र
कैबिनेट गठन पर मचा बवाल, विपक्ष ने राष्ट्रपति मैक्रों से मांगा इस्तीफा
पेरिस। फ्रांस की राजनीति एक बार फिर अस्थिरता के दौर में पहुंच गई है। प्रधानमंत्री सेबेस्टियन लेकोर्नू ने पद संभालने के महज 27 दिन बाद ही रविवार को इस्तीफा दे दिया, जिससे राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की सरकार पर गहरा संकट मंडराने लगा है।
लेकोर्नू ने 9 सितंबर को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी, और 6 अक्टूबर को उन्होंने अचानक अपना त्यागपत्र सौंप दिया। राष्ट्रपति मैक्रों ने तत्काल उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया।

महज 12 घंटे पहले किया था कैबिनेट का ऐलान
लेकोर्नू के इस्तीफे ने फ्रांस की राजनीतिक हलचल को और बढ़ा दिया है, क्योंकि उन्होंने इस्तीफे से मात्र 12 घंटे पहले ही नया मंत्रीमंडल घोषित किया था। रविवार शाम को किए गए इस ऐलान के बाद देशभर में विपक्षी दलों ने नए कैबिनेट की आलोचना की।
दरअसल, लेकोर्नू ने कहा था कि वे “नई शुरुआत” करेंगे, लेकिन उनके कैबिनेट में पुराने चेहरों की ही वापसी देखी गई। इस बात से न सिर्फ विपक्ष, बल्कि राष्ट्रपति मैक्रों के सहयोगी दल लेस रिपब्लिकेंस (Les Républicains) भी नाराज़ हो गए।
सबसे बड़ा विवाद तब हुआ जब ब्रूनो ले मायेर, जो सात साल तक अर्थव्यवस्था मंत्री रहे थे, को रक्षा मंत्री बना दिया गया। इसे सत्ता में बैठे दल की “नीतिगत अस्थिरता” का प्रतीक बताया गया।
13 महीने में चौथे प्रधानमंत्री
लेकोर्नू का इस्तीफा फ्रांस में बढ़ती राजनीतिक अस्थिरता का संकेत है। वे पिछले 13 महीनों में देश के चौथे प्रधानमंत्री थे।
उनसे पहले फ्रांस्वा बायरू ने विश्वास मत न मिलने के बाद पद छोड़ा था। बायरू के पहले मिशेल बार्नियर और एलिज़ाबेथ बोर्न भी संसदीय गतिरोध के कारण अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके थे।
फ्रांस में यह स्थिति 2024 के आम चुनावों के बाद बनी, जब संसद में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। नतीजतन, राष्ट्रपति मैक्रों की नीतियों को पारित कराने के लिए उन्हें लगातार विरोध और अविश्वास प्रस्तावों का सामना करना पड़ रहा है।
संसद में कोई बहुमत नहीं, बढ़ा राजनीतिक गतिरोध
फ्रांस की संसद वर्तमान में तीन हिस्सों में बंटी हुई है —
- मैक्रों का सेंटर-दक्षिणपंथी गठबंधन,
- वामपंथी गठबंधन,
- अति दक्षिणपंथी दल।
इस विभाजित संसद में कोई भी समूह बहुमत में नहीं है। नतीजतन, सरकार का कोई भी फैसला या नीति पारित कराना बेहद कठिन हो गया है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री बार-बार बदल रहे हैं और कोई भी प्रशासनिक स्थिरता नहीं बन पा रही है।
बजट संकट और आर्थिक अस्थिरता
लेकोर्नू को पद संभालते ही सबसे बड़ी चुनौती राजकोषीय घाटे को कम करने और सरकारी खर्च घटाने वाले बजट को पारित कराने की थी।
यह वही कार्य था जो उनके पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री फ्रांस्वा बायरू और मिशेल बार्नियर भी पूरा नहीं कर पाए थे।
संसद में बजट को लेकर गहरे मतभेद हैं —
- वामपंथी दल चाहते हैं कि सरकार जनता पर खर्च बढ़ाए,
- जबकि दक्षिणपंथी गठबंधन घाटा नियंत्रित करने के लिए सख्त नीतियाँ लाना चाहता है।
इस असहमति ने लेकोर्नू की सरकार को पहले दिन से ही अस्थिर बना दिया था।
विपक्ष ने राष्ट्रपति मैक्रों से मांगा इस्तीफा
प्रधानमंत्री के इस्तीफे के बाद विपक्ष ने राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों को निशाने पर ले लिया है।
अति दक्षिणपंथी नेता मरीन ले पेन ने कहा कि अब देश में “स्थिर सरकार के लिए नए संसदीय चुनाव” कराना ही एकमात्र रास्ता है। उन्होंने मैक्रों से कहा कि “अगर वे देशहित में सोचते हैं, तो उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए।”
वहीं, वामपंथी पार्टी फ्रांस अनबोड (LFI) ने कहा कि यह बार-बार के इस्तीफे यह साबित करते हैं कि “मैक्रों की नीतियाँ जनता से दूर हैं।” पार्टी ने राष्ट्रपति से तुरंत संसद भंग कर नए चुनाव कराने की मांग की है।
हालांकि, राष्ट्रपति मैक्रों ने साफ कहा है कि वे किसी भी स्थिति में इस्तीफा नहीं देंगे और जल्द नया प्रधानमंत्री नियुक्त करेंगे।
फ्रांस में राजनीतिक अस्थिरता के पीछे का कारण
फ्रांस की मौजूदा स्थिति का मूल कारण सत्ता का विभाजित जनादेश है।
2024 के संसदीय चुनाव में किसी दल को बहुमत न मिलने के कारण सरकार “गठबंधन के दबावों” में काम कर रही है।
ऐसे में कोई भी विवादास्पद निर्णय संसद में पास कराना लगभग असंभव बन गया है।
विशेष रूप से पेंशन सुधार, रक्षा बजट और कर नीति जैसे मुद्दों पर विपक्ष सरकार को घेरता रहा है।
इस अस्थिरता का असर फ्रांस की विदेश नीति और यूरोपीय संघ में उसकी भूमिका पर भी पड़ सकता है। विश्लेषकों का कहना है कि लगातार बदलते प्रधानमंत्रियों के कारण प्रशासनिक निर्णयों में देरी हो रही है और निवेशकों का भरोसा भी कमजोर पड़ रहा है।
कौन होंगे अगले प्रधानमंत्री?
अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि मैक्रों अगला प्रधानमंत्री किसे नियुक्त करते हैं।
संभावना जताई जा रही है कि वे किसी ऐसे नेता को चुनें जो सभी दलों के बीच संतुलन बना सके।
हालांकि, राजनीतिक समीकरण इतने जटिल हैं कि यह कार्य भी आसान नहीं दिखता।
फ्रांस की राजनीति का भविष्य अनिश्चित
लगातार प्रधानमंत्री बदलने और संसद में गतिरोध के चलते फ्रांस अब एक गहरे राजनीतिक संक्रमण काल से गुजर रहा है।
लेकोर्नू का इस्तीफा इस बात का संकेत है कि यदि सत्ता संतुलन और सहयोग की नई व्यवस्था नहीं बनी, तो आने वाले महीनों में देश और बड़े संकट की ओर बढ़ सकता है।
स्वदेश ज्योति के द्वारा | और भी दिलचस्प खबरें आपके लिए… सिर्फ़ स्वदेश ज्योति पर!
- गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री रवि नाइक का 79 वर्ष की आयु में निधन
- दिल्ली में चार दिन तक सशर्त ‘ग्रीन पटाखों’ की अनुमति
- कोल्ड्रिफ कफ सिरप कांड में नया खुलासा: डॉ. प्रवीण सोनी ने कोर्ट में कबूला—दवा लिखने पर मिलता था कमीशन
- एडीजीपी पूरण कुमार के शव का पोस्टमार्टम शुरू, शाम 4 बजे होगा अंतिम संस्कार
- भारत सातवीं बार निर्विरोध चुना गया संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद का सदस्य