सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने हाल ही में बीबीसी के ‘हार्डटॉक’ शो में एक साक्षात्कार के दौरान कई अहम मुद्दों पर अपनी राय रखी। उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर को लेकर दिए गए फैसले से पहले भगवान से प्रार्थना करने की खबर को सिरे से खारिज कर दिया।
राम मंदिर पर फैसला निष्पक्ष, प्रार्थना की खबर फर्जी
पूर्व CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि उनके फैसलों को लेकर गलत धारणाएं फैलाई जा रही हैं। उन्होंने स्पष्ट किया, “यह पूरी तरह से झूठ है कि मैंने अयोध्या केस का फैसला देने से पहले भगवान से प्रार्थना की थी। एक न्यायाधीश के रूप में मेरा कर्तव्य संविधान के अनुसार न्याय करना है, न कि किसी धार्मिक भावनाओं के आधार पर।”
अनुच्छेद 370: संविधान में शुरू से ही अस्थायी था
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के केंद्र सरकार के फैसले पर उन्होंने कहा कि यह प्रावधान संविधान में शुरुआत से ही “ट्रांजिशनल” (संक्रमणकालीन) था। उन्होंने कहा, “जब संविधान बना, तब यह तय किया गया था कि अनुच्छेद 370 धीरे-धीरे खत्म हो जाएगा। वर्तमान में जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक सरकार कार्यरत है, जो इस बदलाव की स्वीकृति को दर्शाता है।”
न्यायपालिका में ऊंची जाति के हिंदू पुरुषों का प्रभाव
जब उनसे न्यायपालिका में ऊंची जाति के हिंदू पुरुषों के वर्चस्व पर सवाल पूछा गया, तो उन्होंने इसे एक ऐतिहासिक वास्तविकता बताया। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि “निचली अदालतों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है, जिससे आने वाले वर्षों में उच्च न्यायपालिका में भी विविधता देखने को मिलेगी।”
PM मोदी से मुलाकात पर सफाई
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनकी गणेश चतुर्थी पर हुई मुलाकात को लेकर सवाल किए जाने पर, उन्होंने इसे सामान्य शिष्टाचार करार दिया। उन्होंने कहा, “संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों के बीच ऐसी मुलाकातें होती रहती हैं। इसे राजनीति से जोड़ना ठीक नहीं है।”
क्या न्यायपालिका पर दबाव है?
सुप्रीम कोर्ट पर राजनीतिक दबाव को लेकर पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा कि “न्यायपालिका पूरी तरह स्वतंत्र है और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।” उन्होंने इसका उदाहरण देते हुए राहुल गांधी के मानहानि मामले में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप का जिक्र किया, जिसमें अदालत ने उनकी सजा पर रोक लगा दी थी।
निष्कर्ष
अपने इस साक्षात्कार में पूर्व CJI डी.वाई. चंद्रचूड़ ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता, धर्मनिरपेक्षता और संविधान की सर्वोच्चता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि “न्यायपालिका राजनीतिक प्रभाव से मुक्त है और संविधान के मूल सिद्धांतों के अनुसार ही फैसले लिए जाते हैं।”
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