October 15, 2025 6:05 PM

आदिवासी अधिकारों पर विधानसभा में गरमाई बहस: वन पट्टों की निरस्ती, भेदभाव और विधेयकों पर उठा विपक्ष का सवाल

विधानसभा में वन अधिकार पट्टों की निरस्ती पर घमासान: आदिवासी हितों पर उठे सवाल

भोपाल। मध्यप्रदेश विधानसभा का मानसून सत्र सोमवार को अपने छठे दिन पर पहुंचा, जहां आदिवासी समुदाय के अधिकारों को लेकर सरकार और विपक्ष आमने-सामने नजर आए। नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने विधानसभा में जोरदार ढंग से यह मुद्दा उठाया कि प्रदेश में साढ़े तीन लाख से अधिक वन अधिकार पट्टे निरस्त कर दिए गए हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि यह आदिवासी समुदाय के साथ अन्याय है, जिसे तत्काल रोका जाना चाहिए।

आदिवासी जमीनों पर जबरन कब्जे का आरोप

कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक और पूर्व मंत्री जयवर्धन सिंह ने सदन में अपनी बात रखते हुए कहा कि “आदिवासियों की जमीनें उनसे जबरन छीनी जा रही हैं।” उन्होंने सवाल किया कि जब आदिवासी अपने पारंपरिक अधिकारों के तहत इन जमीनों पर वर्षों से रह रहे हैं, तो अब उन्हें क्यों बेदखल किया जा रहा है?

मुख्यमंत्री का जवाब: “बारिश में नहीं हटाए जाएंगे आदिवासी”

विपक्ष के तीखे आरोपों पर जवाब देते हुए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा कि भाजपा सरकार ने ही आदिवासियों को सबसे ज्यादा – 26,500 वन अधिकार पट्टे – अपने कार्यकाल में दिए हैं। उन्होंने यह भरोसा भी दिलाया कि “बारिश के दिनों में किसी भी आदिवासी को उसकी जमीन से नहीं हटाया जाएगा।”

उपग्रह चित्रों के आधार पर होगी जांच: विजय शाह

जनजातीय कार्य मंत्री विजय शाह ने स्पष्ट किया कि वर्ष 2005 की स्थिति को आधार मानते हुए सैटेलाइट इमेजेस के जरिए उन दावों की जांच की जाएगी, जिन पर संदेह है। उन्होंने कहा कि पट्टों की वैधता का निर्णय निर्धारित प्रक्रिया और समितियों के माध्यम से ही लिया जाएगा।

भूरिया का आरोप: “कुपोषित बच्चों पर ₹8 खर्च, मंत्रियों पर हजारों”

विधानसभा में कांग्रेस विधायक विक्रांत भूरिया ने सरकार की प्राथमिकताओं पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि “सरकार एक कुपोषित बच्चे पर सिर्फ ₹8 खर्च कर रही है, जबकि मंत्रियों के नाश्ते के लिए ₹19,000 के ड्राय फ्रूट्स मंगाए जा रहे हैं।” उन्होंने इसे आदिवासी बच्चों के साथ घोर भेदभाव बताया।

सदन में पेश हुए महत्वपूर्ण विधेयक

विधानसभा में संसदीय कार्य मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने ‘मध्य प्रदेश महानगर क्षेत्र नियोजन और विकास विधेयक’ पेश किया। वहीं श्रम मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल ने ‘कारखाना मध्य प्रदेश संशोधन विधेयक 2025’ और ‘मध्यप्रदेश दुकान तथा स्थापना संशोधन विधेयक’ प्रस्तुत किए।

इसके अलावा, अगले दिन के लिए ‘मध्य प्रदेश मोटरयान कराधान संशोधन विधेयक 2025’ और ‘समाज के कमजोर वर्गों को विधिक सहायता समाप्त करने वाला विधेयक’ सदन में प्रस्तुत किया जाना प्रस्तावित है।

कार्यवाही की गरिमा पर उठे सवाल

पूर्व उपाध्यक्ष राजेंद्र कुमार सिंह ने सदन की मर्यादा पर सवाल उठाते हुए कहा कि नेता प्रतिपक्ष के भाषण के दौरान संसदीय कार्य मंत्री द्वारा उन्हें रोकना परंपराओं के खिलाफ है। इस पर विजयवर्गीय ने जवाब दिया कि सभी को नियमों के दायरे में रहकर ही वक्तव्य देना होता है – चाहे वह मुख्यमंत्री हों या नेता प्रतिपक्ष। स्पीकर नरेंद्र सिंह तोमर ने बीच का रास्ता निकालते हुए कहा कि “सदन तभी सुचारु चलेगा जब सभी पक्षों की बात सुनी जाए।”

सरकार सुनने को तैयार: मुख्यमंत्री

मुख्यमंत्री मोहन यादव ने सदन में यह भरोसा दिलाया कि सरकार आदिवासियों की समस्याएं समझने और समाधान निकालने के लिए विपक्ष के सुझावों को भी महत्व देगी। उन्होंने कहा कि कई गांवों में आदिवासियों के साथ-साथ अन्य वर्ग के लोग भी रहते हैं, इसलिए सरकार समन्वय के साथ निर्णय लेगी।


वन पट्टों को लेकर हुए सवाल-जवाब

कांग्रेस विधायक अजय सिंह ने पूछा कि जो आवेदन निरस्त हुए हैं, क्या उनकी पुनः समीक्षा होगी? डॉ. हीरालाल अलावा ने सामुदायिक वन प्रबंधन की अनुपलब्धता पर सवाल उठाया। झूमा सोलंकी ने नेटवर्क की समस्या का हवाला देते हुए ऑफलाइन आवेदन व्यवस्था की मांग की। फूल सिंह बरैया और सोहनलाल वाल्मीकि ने सरकार से आदिवासियों को संरक्षित करने की मांग रखी।

भाजपा विधायक मोहन सिंह राठौड़ ने बताया कि उनकी समिति ने रिपोर्ट तैयार नहीं की है जबकि 80% आदिवासी क्षेत्र उनकी विधानसभा में आते हैं।


मंत्रियों के जवाब

वन राज्य मंत्री दिलीप अहिरवार ने कहा कि तीन स्तरों की समितियां दावों की जांच करती हैं। उन्होंने विपक्ष पर पलटवार करते हुए कहा कि “उमंग सिंघार खुद 2018 में वन मंत्री थे, तब एक भी पट्टा नहीं बांटा।”

पंचायत मंत्री प्रहलाद पटेल ने कहा कि पेसा अधिनियम के तहत ग्राम सभा को वित्तीय अधिकार दिए गए हैं और राज्यपाल स्वयं इसकी निगरानी करते हैं। अधिनियम में जो भी कमियां हैं, उन्हें दूर किया जा रहा है।


पूरे सत्र की कार्यवाही में साफ नजर आया कि वन अधिकार पट्टों और आदिवासी अधिकारों को लेकर सरकार और विपक्ष के बीच मतभेद गहरे हैं। जहां एक ओर सरकार खुद को आदिवासी हितैषी बता रही है, वहीं विपक्ष उसे वादा खिलाफी और भेदभाव का दोषी ठहरा रहा है। आगामी दिनों में यह मुद्दा और भी उग्र रूप ले सकता है।


स्वदेश ज्योति के द्वारा | और भी दिलचस्प खबरें आपके लिए… सिर्फ़ स्वदेश ज्योति पर!


Share on facebook
Share on twitter
Share on linkedin
Share on whatsapp
Share on telegram