नई दिल्ली/पेरिस/नागपुर।
भारतीय एरोस्पेस सेक्टर के लिए एक बड़ा मील का पत्थर साबित होने वाली घोषणा पेरिस एयरशो में हुई, जहां अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस एयरोस्ट्रक्चर लिमिटेड और फ्रांस की डसॉल्ट एविएशन ने मिलकर भारत में फाल्कन 2000 बिजनेस जेट के निर्माण की डील साइन की। यह पहली बार होगा जब डसॉल्ट फ्रांस से बाहर अपने किसी फाल्कन सीरीज जेट का निर्माण किसी अन्य देश में करेगी।
यह साझेदारी डसॉल्ट रिलायंस एरोस्पेस लिमिटेड (DRAL) के ज़रिए की जाएगी, जो पहले से ही नागपुर स्थित प्लांट में फाल्कन 2000 के कुछ कंपोनेंट्स बना रही है। अब इस प्लांट में पूरा फाल्कन 2000 जेट तैयार किया जाएगा, जिसकी पहली डिलीवरी साल 2028 में होगी।
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क्या है इस डील का महत्व?
यह डील केवल एक औद्योगिक समझौता नहीं, बल्कि भारत के एयरोस्पेस, रोजगार और तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम है। डसॉल्ट जैसी ग्लोबल एरोस्पेस कंपनी का भारत में पूर्ण जेट निर्माण का निर्णय न केवल ‘मेक इन इंडिया’ मिशन को सशक्त करता है, बल्कि भारत को ग्लोबल एरोस्पेस मैप पर रणनीतिक स्थान भी देता है।
तीन बड़े फायदे जो भारत को मिलेंगे
1. रोजगार और स्थानीय उद्योग को बढ़ावा
रिलायंस का दावा है कि इस परियोजना से हजारों नई नौकरियां पैदा होंगी, खासकर महाराष्ट्र में। इसके साथ ही इंडियन सप्लायर्स, MSME और लोकल मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स को भी इसमें अहम भागीदारी मिलेगी।
2. तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा में बड़ा कदम
डसॉल्ट द्वारा फाल्कन 2000 के प्रोडक्शन प्रोसेस भारत को ट्रांसफर किया जाएगा। इससे भारतीय इंजीनियर्स और तकनीशियनों को विश्व स्तरीय टेक्नोलॉजी सीखने और इस्तेमाल करने का अवसर मिलेगा।
3. मेक इन इंडिया को अंतरराष्ट्रीय पहचान
रिलायंस ने जानकारी दी है कि इस प्रोजेक्ट में जेट के लगभग 50% कंपोनेंट्स भारत में ही बनेंगे। इससे भारत की उत्पादन क्षमताओं को वैश्विक मंच पर मजबूती मिलेगी और देश को एक एयरोस्पेस हब के रूप में स्थापित करने में मदद मिलेगी।
डील के पीछे रणनीति क्या है?
डसॉल्ट एविएशन पहले से ही भारत के साथ राफेल फाइटर जेट्स की डील में भागीदार रही है। CEO एरिक ट्रैपियर ने कहा,
“फाल्कन 2000 जेट का भारत में निर्माण हमारी सप्लाई चेन को मजबूती देगा और भारत को एक ग्लोबल एयरोस्पेस हब बनाने में मदद करेगा।”
डसॉल्ट की रणनीति यह भी है कि वह भारत जैसे उभरते मार्केट में अपनी मौजूदगी को सिर्फ सैन्य क्षेत्र तक सीमित न रखे, बल्कि सिविल एविएशन में भी मजबूत पकड़ बनाए।
रिलायंस की एरोस्पेस में मजबूत होती पकड़
रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर की यह चौथी बड़ी डिफेंस/एयरोस्पेस डील है। इससे पहले कंपनी—
- डसॉल्ट के साथ राफेल फाइटर जेट्स प्रोजेक्ट से जुड़ी।
- फ्रांसीसी कंपनी थेल्स ग्रुप और जर्मन राइनमेटल के साथ रक्षा उपकरणों के लिए काम कर रही है।
- जर्मनी की डील डिफेंस के साथ ₹10,000 करोड़ की डील साइन कर चुकी है, जिसके तहत रत्नागिरी में 155mm वुल्कैनो प्रिसीजन म्यूनिशन बनाए जाएंगे।
इस नई डील से रिलायंस की डिफेंस और एयरोस्पेस में दीर्घकालिक रणनीति को और अधिक स्थायित्व मिलेगा।
किन चुनौतियों का सामना करना होगा?
1. टाइमलाइन प्रेशर:
2028 तक प्रोडक्शन और डिलीवरी सुनिश्चित करना आसान नहीं। सप्लाई चेन, वर्कफोर्स स्किलिंग और ग्लोबल स्टैंडर्ड की क्वालिटी को मेंटेन करना सबसे बड़ी चुनौती होगी।
2. कॉम्पिटिशन:
फाल्कन 2000 का मुकाबला ग्लोबल जेट ब्रांड्स जैसे गल्फस्ट्रीम और बॉम्बार्डियर से होगा। भारत में लागत भले कम हो, लेकिन गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं हो सकता।
3. राजनीतिक विपक्ष और पुरानी छाया:
डसॉल्ट और रिलायंस की पहले की राफेल डील को लेकर उठी राजनीतिक बहस इस नई डील पर भी असर डाल सकती है। पारदर्शिता और निष्पक्षता को प्राथमिकता देनी होगी।
क्या है फाल्कन 2000?
फाल्कन 2000 एक लक्जरी और हाई-स्पीड बिजनेस जेट है, जो डसॉल्ट एविएशन द्वारा निर्मित होता है।
- रेंज: लगभग 6,000 किलोमीटर तक नॉन-स्टॉप उड़ान
- स्पीड: 850-900 किमी/घंटा
- उपयोग: कॉरपोरेट लीडर्स, सेलिब्रिटी, और कई देशों की सैन्य टुकड़ियां
- कीमत: अनुमानित ₹35 करोड़ प्रति यूनिट
फाल्कन 2000 का भारत में निर्माण एविएशन, तकनीक, और रोजगार के क्षेत्र में नए युग की शुरुआत है। भारत पहली बार किसी इंटरनेशनल लग्ज़री जेट का पूर्ण निर्माणकर्ता बनने जा रहा है। अगर यह प्रोजेक्ट समय पर और गुणवत्ता के साथ पूरा होता है, तो यह भारत के एयरोस्पेस सेक्टर के लिए टेक-ऑफ जैसा साबित हो सकता है।
स्वदेश ज्योति के द्वारा
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