दमोह/प्रयागराज।
मध्यप्रदेश के दमोह जिले में मिशनरी अस्पताल के डॉक्टर नरेंद्र यादव उर्फ एन जॉन केम के खिलाफ चल रही जाँच में हर रोज़ चौंकाने वाले खुलासे हो रहे हैं। अब पुलिस ने दावा किया है कि आरोपी के प्रयागराज स्थित फ्लैट से एक फर्जी दस्तावेज निर्माण करने वाली पूर्ण लैब का पता चला है, जिससे बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी की जा रही थी।
प्रयागराज फ्लैट से मिली “फर्जी डॉक्यूमेंट फैक्ट्री”
दमोह पुलिस अधीक्षक ने जानकारी दी कि प्रयागराज में स्थित डॉक्टर के फ्लैट से प्रिंटर, वॉटरमार्क पेपर, फर्जी सीलें और अन्य उपकरण बरामद किए गए हैं, जो फर्जी प्रमाणपत्रों के निर्माण में इस्तेमाल होते थे। यह स्पष्ट संकेत है कि आरोपी केवल स्थानीय स्तर पर नहीं, बल्कि बहुस्तरीय धोखाधड़ी के लिए सुनियोजित तैयारी किए हुए था।
कानपुर से असली, लेकिन नाम और पहचान नकली
पुलिस ने बताया कि कानपुर स्थित पुश्तैनी मकान और सभी सरकारी दस्तावेज नरेंद्र यादव के असली नाम पर हैं। उसकी एमबीबीएस डिग्री भी प्रमाणित है, और उसका मेडिकल कॉलेज में चयन पहले ही प्रयास में हुआ था। यानी शैक्षणिक पृष्ठभूमि असली है, पर उसके बाद विदेश जाने, प्रभाव जमाने और पहचान छिपाने के लिए नरेंद्र यादव ने ‘एन जॉन केम’ नाम धारण किया।
विदेश यात्रा और आईएमए की पाबंदी
पुलिस के अनुसार आरोपी लंबे समय से विदेश आता-जाता रहा है। वहां वह खुद को अंतरराष्ट्रीय हृदयरोग विशेषज्ञ के तौर पर प्रचारित करता था। इतना ही नहीं, नोएडा में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने भी फर्जी डिग्री के आधार पर उसके खिलाफ कार्रवाई की थी और पांच साल तक चिकित्सा प्रैक्टिस पर रोक लगाई थी।
पुलिस रिमांड खत्म, अब नार्को टेस्ट की तैयारी
13 अप्रैल को डॉक्टर की रिमांड समाप्त हो रही है। दमोह पुलिस ने अब नार्को टेस्ट की अनुमति मांगी है ताकि मामले की गहराई में जाकर अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क का पर्दाफाश किया जा सके।
बायोडाटा में झूठ की इंतहा
इंदौर की एक रोजगार परामर्श फर्म ने खुलासा किया है कि आरोपी डॉक्टर ने 9 पन्नों का विस्तृत फर्जी बायोडाटा बनाकर देशभर के अस्पतालों में भेजा था।
दावे जो हैरान कर दें:
- 32,000 से अधिक ऑपरेशन में भागीदारी
- 18,740 कोरोनरी एंजियोग्राफी
- 14,236 कोरोनरी एंजियोप्लास्टी
- काम का अनुभव: भारत, ब्रिटेन, अमेरिका, जर्मनी, स्पेन और फ्रांस में
- स्थायी पता: ब्रिटेन के बर्मिंघम का
इंदौर फर्म के निदेशक पंकज सोनी ने बताया कि शुरुआत से ही उन्हें बायोडाटा पर संदेह था। उन्होंने कहा—
“हम आश्चर्य में थे कि इतना अनुभवी डॉक्टर भारत के छोटे शहरों में नौकरी क्यों खोज रहा है? यही से जांच शुरू हुई।”
तीन बार भेजा था फर्जी बायोडाटा
- 2020: पहली बार आवेदन, ऑनलाइन विज्ञापन के जवाब में
- 2023: दूसरी बार आवेदन, बुरहानपुर के अस्पताल को बायोडाटा भेजा
- 2024: तीसरी बार आवेदन, जिसमें खुद को वरिष्ठ हृदयरोग विशेषज्ञ बताया
हर बार बायोडाटा में झूठ के नए दावे जुड़े थे। जब फर्म ने गड़बड़ी देखी, तो उन्होंने ऐसे आवेदन को अस्वीकार कर दिया और अपने नेटवर्क में भी चेतावनी भेजी।
मामले की गंभीरता बढ़ी, जांच में जुटी स्पेशल टीम
इस पूरे फर्जीवाड़े की स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (SIT) बनाई गई है, जो डॉक्टर के भारतीय और विदेशी नेटवर्क की तह तक जाएगी।
दमोह से निकला यह मामला अब एक राष्ट्रीय और संभावित रूप से अंतरराष्ट्रीय जालसाजी का रूप ले चुका है। फर्जी दस्तावेज निर्माण, फर्जी पहचान और झूठे दावों के सहारे सालों से चिकित्सा पेशे में घुसपैठ की यह घटना स्वास्थ्य व्यवस्था और नियामक संस्थाओं के लिए एक चेतावनी बन चुकी है।
स्वदेश ज्योति के द्वारा
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