मुखबिर की सूचना पर कार्रवाई, 7 गिरफ्तार, मास्टरमाइंड ऋतुराज का नेटवर्क प्रदेशभर में फैलाने की थी योजना
जबलपुर।
मध्यप्रदेश की आर्थिक सुरक्षा को चुनौती देने वाली एक बड़ी आपराधिक साजिश का हनुमानताल पुलिस ने पर्दाफाश किया है। जबलपुर में एक किराए के मकान में चल रहे नकली नोट छापने के कारखाने का खुलासा हुआ है। इस मामले में 7 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है, जबकि एक आरोपी राकेश तिवारी फरार है। गिरोह के पास से कुल 18 लाख रुपए के जाली नोट बरामद किए गए हैं।
मुखबिर की सूचना से शुरू हुई कार्रवाई
कार्रवाई की शुरुआत सोमवार को उस समय हुई जब मदार टेकरी के पास से रवि दाहिया (55) को हिरासत में लिया गया। उसके पास से 500 रुपए के कुल 2.94 लाख के नकली नोट बरामद हुए। पूछताछ में उसने आधारताल निवासी ऋतुराज विश्वकर्मा का नाम लिया, जिसने उसे यह नकली करंसी दी थी। डील के मुताबिक, 1 लाख नकली नोट के बदले 30 हजार असली देने का सौदा तय हुआ था।
कारखाने से मिली बड़ी मात्रा में सामग्री
रवि की निशानदेही पर ऋतुराज के किराए के घर पर छापा मारा गया। वहां से 1.94 लाख के नकली नोट, कलर प्रिंटर, लेपटॉप, कटर, और A4 साइज के दर्जनों कागज़ बरामद हुए। ऋतुराज ने कबूल किया कि वह पिछले एक महीने से नकली नोटों की छपाई कर रहा था। उसका मकसद मध्यप्रदेश के विभिन्न जिलों में नकली नोटों का जाल फैलाना था।
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मंडला और शहपुरा तक फैला नेटवर्क
जांच में सामने आया कि ऋतुराज ने मंडला निवासी संतोष श्रीवास्तव और अजय नवेरिया को 12 लाख नकली नोट दिए थे, जिनके बदले में 3 लाख असली नोट मिलने थे। पुलिस ने अजय नवेरिया के पास से 10 लाख और शहपुरा निवासी जमना प्रसाद पटेल के पास से 3 लाख रुपए के जाली नोट बरामद किए।
“3 लाख असली दो, 12 लाख नकली लो”
पुलिस पूछताछ में चौंकाने वाली जानकारी सामने आई कि गिरोह 3 लाख असली नोट के बदले 12 लाख नकली नोट देता था। यानी नोट बदलवाने वालों को चार गुना नकली राशि मिलती थी। इसके ज़रिए गिरोह पूरे मध्यप्रदेश में नकली नोटों का रैकेट खड़ा करने की योजना में था। अब तक सामने आए तथ्यों के अनुसार, प्रदेश के हर जिले में नेटवर्क तैयार करने की तैयारी चल रही थी।
मास्टरमाइंड की कुबूलनामाः “हर जिले में टीम खड़ी कर रहा था”
तीन दिन की पुलिस रिमांड में ऋतुराज विश्वकर्मा ने बताया कि वह जिला स्तर पर एजेंट्स तैयार कर रहा था, जो नकली नोटों को छोटे दुकानों, बाजारों और शादी समारोहों जैसे कार्यक्रमों में खपा सकें। ऋतुराज ने अपने गिरोह में तकनीकी और फील्ड दोनों तरह के सदस्य शामिल कर लिए थे।
पुलिस की मानें तो गिरोह का संचालन पूरी तरह से संगठित था और डिजिटल सॉफ्टवेयर, कलर प्रिंटिंग तकनीक और पेपर चयन में विशेष सावधानी बरती जा रही थी, जिससे नकली नोट असली जैसे लगें।
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