चुनाव आयोग ने जारी की बिहार में हटाए गए 65 लाख वोटरों की सूची, विपक्ष ने लगाए आरोप
नई दिल्ली। बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारियों के बीच भारत निर्वाचन आयोग विपक्षी दलों के निशाने पर आ गया है। कारण है—राज्य में मतदाता सूची से हटाए गए 65 लाख वोटरों की सूची। आयोग ने सोमवार, 18 अगस्त को यह सूची जारी कर दी, जिसमें उन नामों का विवरण है जिन्हें मृतक होने, स्थायी रूप से क्षेत्र छोड़ देने, एक ही व्यक्ति का नाम दो जगह दर्ज होने या क्षेत्र में निवास न करने जैसी परिस्थितियों के आधार पर हटा दिया गया है। यह कदम विपक्ष के आरोपों और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उठाया गया।
गहन पुनरीक्षण से सामने आया बड़ा आंकड़ा
जुलाई महीने में चले विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान के दौरान निर्वाचन आयोग के अधिकारियों ने व्यापक स्तर पर जांच की। 1 अगस्त को जारी ड्राफ्ट रोल में 65 लाख नाम हटाए जाने की घोषणा हुई, जिसके बाद विपक्ष ने आयोग पर "वोट चोरी" के गंभीर आरोप लगाए। विपक्षी दलों ने इसे लोकतंत्र पर हमला बताया और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अदालत ने आयोग को पारदर्शिता के लिए हटाए गए नामों की सूची सार्वजनिक करने का आदेश दिया।
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वेबसाइट पर उपलब्ध कराई गई पूरी जानकारी
निर्वाचन आयोग ने अपने मतदाता सेवा पोर्टल पर यह सूची जारी की है। शीर्षक दिया गया है—"वे मतदाता, जिनके नाम 2025 तक बिहार की मतदाता सूची में थे, लेकिन 01.08.2025 की ड्राफ्ट रोल में शामिल नहीं हैं।"
इस लिंक से दो तरीके से जानकारी प्राप्त की जा सकती है—
- वोटर कार्ड (EPIC) नंबर डालकर खोज – जिससे किसी विशेष मतदाता का अद्यतन विवरण दिखेगा।
- विधानसभा क्षेत्र और भाग संख्या अनुसार डाउनलोड – जिसमें बूथवार हटाए गए मतदाताओं की पूरी सूची मिलेगी।
राजनीतिक दलों के लिए चुनौती
चुनाव आयोग की ओर से सूची सार्वजनिक कर दी गई है, लेकिन असली चुनौती अब राजनीतिक दलों के सामने है। यदि वे यह साबित करना चाहते हैं कि किसी जीवित और योग्य मतदाता का नाम गलत तरीके से काटा गया है, तो उन्हें प्रत्येक मतदान केंद्र की सूची डाउनलोड कर, भौतिक सत्यापन करना होगा। इसके लिए समय बेहद सीमित है—केवल 12 दिन।
ध्यान देने वाली बात यह है कि गहन पुनरीक्षण के समय राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) के कामकाज की निगरानी की अनुमति दी गई थी। इस प्रक्रिया में भाजपा, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल समेत सभी दलों के 1,60,813 पर्यवेक्षक जुड़े थे। इसके बावजूद 1 अगस्त से अब तक किसी भी राजनीतिक दल ने दावा-आपत्ति दर्ज नहीं कराई।
अब तक मिली 28,370 आपत्तियां
चुनाव आयोग के अनुसार 15 अगस्त तक 28,370 मतदाताओं ने आपत्तियां दर्ज कराई थीं। इनमें अधिकतर मामले मृत व्यक्तियों के नाम हटाने या गलती से हटाए गए जीवित मतदाताओं को पुनः शामिल करने से संबंधित हैं। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि राजनीतिक दलों की ओर से एक भी दावा-आपत्ति दर्ज नहीं हुई।
विशेषज्ञों की राय
चाणक्या इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिकल राइट्स एंड रिसर्च के अध्यक्ष सुनील कुमार सिन्हा का कहना है कि, “जो लोग किसी कारण से हटाए गए थे, उनकी आपत्तियां आयोग को पहले ही मिल चुकी हैं। अब जारी की गई सूची का वास्तविक लाभ राजनीतिक दलों को नहीं मिलने वाला। यह कदम मुख्यतः विपक्षी दलों के आरोपों को निष्प्रभावी करने और उनका मुंह बंद करने के लिए उठाया गया है।”
विपक्ष के लिए दोधारी तलवार
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह सूची जारी करके आयोग ने विपक्ष के बड़े हमले को निष्क्रिय करने की कोशिश की है। अब विपक्ष को यह साबित करने के लिए भारी मेहनत करनी होगी कि वाकई बड़ी संख्या में असली मतदाताओं को हटाया गया है। लेकिन इसके लिए समय बहुत कम है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि आयोग ने पारदर्शिता दिखाकर विपक्षी हमलों से बचने का रास्ता बना लिया है।
बिहार चुनाव से पहले सामने आया यह विवाद केवल एक प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं है, बल्कि लोकतांत्रिक विश्वास की कसौटी भी है। 65 लाख वोटरों की सूची का प्रकाशन पारदर्शिता की दिशा में कदम जरूर है, लेकिन अब असली परीक्षा इस बात की है कि क्या योग्य मतदाताओं के अधिकार सुरक्षित रह पाते हैं या नहीं।
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