शहडोल में ड्रायफ्रूट्स घोटाला: अधिकारियों ने एक घंटे में खा लिए 14 किलो मेवे

📍 शहडोल। मध्यप्रदेश के शहडोल जिले में जल गंगा संवर्धन अभियान के तहत हुए एक कार्यक्रम में सरकारी अधिकारियों पर ड्रायफ्रूट्स घोटाले का आरोप सामने आया है। गोहपारू ब्लॉक की भदवाही ग्राम पंचायत में हुए इस आयोजन में मात्र एक घंटे में 14 किलो ड्रायफ्रूट्स के सेवन का बिल सरकार को थमा दिया गया, जो अब घोटाले के रूप में उभरकर सामने आया है।


क्या है मामला?

ग्राम पंचायत भदवाही में आयोजित जल चौपाल कार्यक्रम में शामिल हुए अधिकारियों के नाम पर जो बिल बने, उसमें बताया गया कि:

  • 5 किलो काजू
  • 6 किलो बादाम
  • 3 किलो किशमिश
  • और साथ ही 6 लीटर दूध में 5 किलो चीनी डालकर बनी चाय

का एक घंटे में सेवन किया गया, जबकि स्थानीय ग्रामीणों को केवल खिचड़ी, पूड़ी और सब्जी परोसी गई।


19,010 रुपये का बिल, 1000 रुपये किलो काजू!

सरकारी दस्तावेजों के अनुसार, इस आयोजन के लिए पंचायत द्वारा 19,010 रुपये का भुगतान किया गया, जिसमें:

  • 13 किलो ड्रायफ्रूट्स
  • 30 किलो नमकीन
  • 20 पैकेट बिस्किट

का खर्च शामिल था। बिल में काजू की कीमत 1000 रुपये प्रति किलो दर्शाई गई है, जो बाजार दरों से कहीं अधिक है।

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कौन-कौन थे कार्यक्रम में शामिल?

इस कार्यक्रम में कलेक्टर, जिला पंचायत सीईओ, एसडीएम सहित कई वरिष्ठ अधिकारी शामिल थे। लेकिन अब जब मामला विवादों में है, तो प्रभारी जिला पंचायत सीईओ मुद्रिका सिंह ने कहा:

"मैं कार्यक्रम में मौजूद था, लेकिन ड्रायफ्रूट्स संबंधी जानकारी नहीं थी। अब जब मामला सामने आया है, तो इसकी जांच कराएंगे।"


पहले सामने आया था ऑइल पेंट घोटाला

कुछ ही दिन पहले शहडोल जिले में ऑइल पेंट घोटाला सामने आया था, जिसमें घटिया क्वालिटी के पेंट को ऊंची कीमतों पर खरीदा गया था। अब यह ड्रायफ्रूट्स वाला मामला जिले में लगातार सामने आ रहे भ्रष्टाचार और फिजूलखर्ची की तरफ इशारा करता है।


क्या है ग्रामीणों का पक्ष?

स्थानीय लोगों का कहना है कि प्रचार के लिए कार्यक्रम जरूर किया गया, लेकिन असली उद्देश्य पानी और पर्यावरण के बजाय धोखाधड़ी से खर्च दिखाकर पैसा निकालना था। ग्रामीणों ने मांग की है कि इस पूरे मामले की जांच हो और दोषियों पर कार्रवाई की जाए।


निष्कर्ष

सरकारी आयोजनों में इस तरह की भोजन संबंधी फिजूलखर्ची और गड़बड़ी कई बार सामने आती रही है, लेकिन शहडोल का यह मामला संवेदनशील योजनाओं के नाम पर हो रहे व्यय पर गंभीर सवाल खड़ा करता है।