October 19, 2025 7:37 PM

भारत विकसित करेगा अगली पीढ़ी का स्वदेशी अवाक्स सिस्टम: केंद्र सरकार ने दी 20,000 करोड़ की परियोजना को मंजूरी

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भारत में विकसित होगा अगली पीढ़ी का स्वदेशी अवाक्स सिस्टम, सरकार ने दी 20,000 करोड़ की मंजूरी

नई दिल्ली। भारत ने सैन्य निगरानी और हवाई नियंत्रण के क्षेत्र में एक बड़ा कदम उठाते हुए अगली पीढ़ी की स्वदेशी हवाई रडार प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (AWACS) विकसित करने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है। केंद्र सरकार ने इस 20,000 करोड़ रुपये की महात्वाकांक्षी परियोजना को मंजूरी दे दी है, जिसका नेतृत्व रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) करेगा। इस कदम के साथ भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल हो जाएगा, जिनके पास यह रणनीतिक तकनीकी क्षमता स्वदेशी रूप से विकसित करने की क्षमता है।

क्या है अवाक्स सिस्टम और इसकी अहमियत?

AWACS यानी Airborne Warning and Control System (हवाई चेतावनी और नियंत्रण प्रणाली) एक फ्लाइंग कमांड सेंटर की तरह काम करता है। इसमें लंबी दूरी तक दुश्मन के विमानों, ड्रोन, मिसाइलों और ग्राउंड सिस्टम्स की निगरानी करने की ताकत होती है। यह हवाई युद्धों, निगरानी अभियानों और टारगेट ट्रैकिंग में निर्णायक भूमिका निभाता है।

DRDO और एयरबस का संयुक्त सहयोग

इस परियोजना के तहत DRDO, फ्रांसीसी कंपनी एयरबस के साथ साझेदारी में A321 विमानों को एक उन्नत हवाई रडार प्रणाली से लैस करेगा। यह पहली बार है जब भारत की ओर से बोइंग के बजाय एयरबस प्लेटफॉर्म का उपयोग इस किस्म की सैन्य प्रणाली के लिए किया जा रहा है। DRDO द्वारा निर्मित AESA रडार, मिशन कंट्रोल सिस्टम और अन्य स्वदेशी तकनीकों को इस विमान में एकीकृत किया जाएगा।

‘नेत्र’ से ‘नेत्र MK-II’ तक

भारत पहले ही DRDO द्वारा विकसित ‘नेत्र’ प्रणाली के जरिए दुनिया का चौथा देश बन चुका है जिसने स्वदेशी AWACS प्रणाली विकसित की है। इसे ‘आकाश की आंख’ कहा जाता है और यह प्रणाली 2019 के बालाकोट एयरस्ट्राइक के दौरान अपनी दक्षता सिद्ध कर चुकी है। नई प्रणाली ‘नेत्र MK-II’ इस दिशा में और बड़ा और परिष्कृत कदम है।

वर्तमान में भारतीय वायुसेना ‘नेत्र’ आधारित छोटे हवाई प्लेटफॉर्म्स का उपयोग करती है, साथ ही रूस-इजराइल सहयोग से विकसित तीन IL-76 ‘फाल्कन’ विमान भी इस बेड़े में शामिल हैं। हालांकि, इन ‘फाल्कन’ विमानों की तकनीकी समस्याओं और सीमित उपलब्धता लंबे समय से चुनौती बनी हुई है।

परियोजना का पैमाना और उद्देश्य

  • कुल लागत: ₹20,000 करोड़
  • AWACS विमान: कुल 6 विमान बनाए जाएंगे
  • कार्य: दुश्मन के विमानों, रडार और मिसाइल सिस्टम की निगरानी, हवाई युद्ध में मार्गदर्शन और नियंत्रण
  • उद्देश्य: वायुसेना की निगरानी क्षमता को बढ़ाना, रणनीतिक बढ़त हासिल करना, आत्मनिर्भर भारत मिशन को बल देना
  • संपूर्ण स्वदेशी सिस्टम: AESA रडार, मिशन कंट्रोल यूनिट, सेंसर और सिस्टम भारतीय कंपनियों द्वारा निर्मित होंगे।

DRDO इस परियोजना को लगभग तीन वर्षों में पूरा करने का लक्ष्य लेकर चल रही है। इसके बाद यह भारत की सुरक्षा नीति में एक बड़ी छलांग साबित होगी।

निर्यात की संभावना और वैश्विक मान्यता

इस प्रणाली के पूरी तरह सफल होने के बाद भारत न केवल आत्मनिर्भर होगा बल्कि उसे अन्य मित्र देशों को ऐसी उन्नत प्रणालियाँ निर्यात करने का अवसर भी मिल सकता है। इसके साथ ही भारत टेक्नोलॉजी डोमिनेशन की ओर अग्रसर होगा, जिससे रक्षा उद्योग में वैश्विक उपस्थिति मजबूत होगी।


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