भारत को मिला नया सितारा, 88वीं ग्रैंडमास्टर के रूप में स्थापित हुईं दिव्या
दिव्या देशमुख बनीं शतरंज की वर्ल्ड चैंपियन, हम्पी को हराकर रचा इतिहास
नई दिल्ली। भारत की युवा शतरंज खिलाड़ी दिव्या देशमुख ने दुनिया भर के शतरंज प्रेमियों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। महज़ 19 वर्ष की उम्र में उन्होंने इतिहास रचते हुए FIDE महिला वर्ल्ड कप 2025 का खिताब जीत लिया है। यह जीत और भी खास इसलिए बन जाती है क्योंकि फाइनल में उन्होंने भारत की ही दिग्गज खिलाड़ी कोनेरू हम्पी को हराकर यह मुकाम हासिल किया। इस ऐतिहासिक जीत के साथ दिव्या भारत की 88वीं ग्रैंडमास्टर भी बन गईं हैं।
"I think it is fate, me getting the Grandmaster title this way" – 🇮🇳 Divya Deshmukh, winner of the 2025 FIDE Women’s World Cup! 🏆#FIDEWorldCup @DivyaDeshmukh05 pic.twitter.com/WB2GM7ha7d
— International Chess Federation (@FIDE_chess) July 28, 2025
कठिन मुकाबलों के बाद मिली ऐतिहासिक जीत
दिव्या देशमुख ने पूरे टूर्नामेंट के दौरान कई टॉप रैंक महिला शतरंज खिलाड़ियों को हराकर फाइनल में जगह बनाई। अंतिम मुक़ाबला दो बेहद अनुभवी खिलाड़ियों के बीच था—एक ओर थीं अनुभवी ग्रैंडमास्टर कोनेरू हम्पी, जो वर्षों से भारत की शतरंज में प्रमुख चेहरा रही हैं, और दूसरी ओर थीं युवा ऊर्जा और तेज़ रणनीति से लैस दिव्या देशमुख।

फाइनल के दोनों क्लासिकल गेम बराबरी पर छूटे, जिसके बाद निर्णय के लिए टाईब्रेक मुकाबला खेला गया। टाईब्रेक में दिव्या ने बेहतरीन रणनीति और मानसिक संतुलन दिखाते हुए 2.5-1.5 के स्कोर से जीत दर्ज की।
🇮🇳 Divya Deshmukh defeats Humpy Koneru 🇮🇳 to win the 2025 FIDE Women's World Cup 🏆#FIDEWorldCup @DivyaDeshmukh05 pic.twitter.com/KzO2MlC0FC
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हम्पी की चूक बनी निर्णायक
टाईब्रेक मुकाबले में हम्पी शुरुआत में कुछ हावी दिखीं, लेकिन 12वीं चाल के बाद वे असमंजस में पड़ गईं और अपनी लय खो बैठीं। इसके बाद दिव्या ने एक-एक चाल पर सावधानी से नियंत्रण जमाया और 54वीं चाल में निर्णायक बढ़त बना ली। यह बढ़त इतनी निर्णायक थी कि हम्पी ने मैच छोड़ने का फैसला किया और इस प्रकार दिव्या ने खिताब अपने नाम कर लिया।

जीत के बाद छलके आंसू, मां को लगाया गले
फाइनल जीतने के बाद जब दिव्या अपनी मां से मिलीं, तो वे खुद को रोक नहीं सकीं और उनकी आंखों से आंसू छलक पड़े। मां से लिपटकर वे भावुक हो गईं। यह दृश्य सिर्फ एक बेटी की जीत नहीं, बल्कि एक मां की तपस्या का परिणाम भी था।
Divya Deshmukh, the Winner of the 2025 FIDE Women’s World Cup.
— anand mahindra (@anandmahindra) July 28, 2025
Through this victory she also achieves Grandmaster status.
At the age of 19.
And behind the Grandmaster is the caring mother…
As always, the unsung hero behind many stars…
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पुरस्कार राशि और कैंडिडेट्स टूर्नामेंट की योग्यता
FIDE महिला वर्ल्ड कप जीतने के साथ दिव्या को लगभग 42 लाख रुपये की पुरस्कार राशि मिली। यह राशि पुरुषों के वर्ल्ड कप विजेता की तुलना में लगभग आधी है, जो करीब 91 लाख रुपये होती है। फिर भी, इस जीत का महत्व दिव्या के लिए अमूल्य है, क्योंकि इसके साथ ही वे 2026 में होने वाले ‘विमेंस कैंडिडेट्स टूर्नामेंट’ के लिए भी क्वालिफाई कर गई हैं। इस टूर्नामेंट में जीतकर खिलाड़ी विश्व चैंपियनशिप खेलने की दावेदारी हासिल करते हैं। दिव्या भारत की दूसरी महिला बनी हैं जिन्होंने कैंडिडेट्स टूर्नामेंट में जगह बनाई है। कोनेरू हम्पी ने भी फाइनल तक पहुंचकर कैंडिडेट्स टूर्नामेंट में स्थान सुरक्षित किया।

टाईब्रेक राउंड का रोमांचक प्रारूप
इस फाइनल मुकाबले में टाईब्रेक का प्रारूप दर्शकों के लिए भी बेहद रोचक रहा। पहले दो रैपिड गेम (10-10 मिनट) खेले गए। स्कोर बराबर रहने पर दो और गेम 5-5 मिनट के हुए। फिर जरूरत पड़ने पर 3-3 मिनट के गेम और अंत में 3+2 मिनट के ब्लिट्ज गेम्स खेले जाते हैं। यह सिलसिला तब तक चलता है जब तक किसी एक खिलाड़ी की जीत नहीं हो जाती।

सेमीफाइनल में पूर्व वर्ल्ड चैंपियन को हराया
सेमीफाइनल में दिव्या देशमुख ने चीन की पूर्व विश्व चैंपियन तान झोंगयी को हराकर सबको चौंका दिया था। पहले गेम में सफेद मोहरों से खेलते हुए उन्होंने 101 चालों तक चले लंबे मुकाबले में जीत हासिल की। यह मुकाबला उनकी मानसिक दृढ़ता और खेल पर पकड़ का बेहतरीन उदाहरण बना।
झोंगयी ने मुकाबले में वापसी की कोशिश की, लेकिन समय की कमी के कारण उन्होंने एक गलत चाल चली, जिसका फायदा दिव्या ने उठाया और दो प्यादों की बढ़त के साथ जीत दर्ज की। दूसरे गेम में दिव्या ने काली मोहरों से खेलते हुए संतुलित रणनीति अपनाई और गेम को ड्रॉ कराया। इस प्रकार उन्होंने कुल स्कोर 1.5-0.5 से सेमीफाइनल अपने नाम किया।

भारत के लिए बड़ी उपलब्धि
दिव्या देशमुख की यह जीत भारतीय शतरंज इतिहास में स्वर्णिम अध्याय जोड़ती है। जहां पहले विश्व स्तर पर महिला खिलाड़ियों में भारत का प्रतिनिधित्व सीमित रहा करता था, वहीं अब दिव्या जैसे युवा चेहरों की बदौलत भारत नए आयाम छू रहा है। उनकी सफलता न केवल प्रेरणा का स्रोत है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को यह दिखाती है कि समर्पण, अनुशासन और कठिन परिश्रम से कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं।
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