शतरंज विश्व कप: दिव्या देशमुख और कोनेरू हंपी फाइनल में, भारत का ऐतिहासिक पल
भारत के लिए यह एक ऐतिहासिक क्षण है, जब पहली बार फिडे वर्ल्ड कप के महिला वर्ग के फाइनल में दोनों ही प्रतिभागी भारतीय होंगी। देश की दो दिग्गज शतरंज खिलाड़ियों – कोनेरू हंपी और दिव्या देशमुख – ने अपने-अपने सेमीफाइनल मुकाबले जीतकर यह गौरव हासिल किया है। यह मुकाबला जॉर्जिया के बटुमी में चल रहे फिडे वर्ल्ड कप में खेला जा रहा है।
हंपी ने टाई ब्रेकर में दी चीन की खिलाड़ी को मात
दिग्गज खिलाड़ी और भारतीय शतरंज का गौरव कोनेरू हंपी ने सेमीफाइनल में चीन की टिंगजी लेई को हराकर फाइनल में प्रवेश किया। मुकाबला बेहद रोमांचक रहा, जहां दोनों मुख्य मुकाबले ड्रॉ रहे और फिर निर्णय टाई ब्रेकर में हुआ।
टाई ब्रेकर में लेई ने शुरुआती बाजी जीतकर बढ़त बनाई थी, लेकिन हंपी ने दूसरा मुकाबला जीतकर मुकाबले को बराबरी पर ला दिया। तीसरे टाई ब्रेकर सेट में हंपी ने सफेद मोहरों से खेलते हुए आक्रामक शुरुआत की और लेई को हर मोर्चे पर पछाड़ दिया। इस बाजी को जीतकर हंपी फाइनल के बेहद करीब पहुंच चुकी थीं, जहां उन्हें सिर्फ एक ड्रॉ की जरूरत थी। लेकिन उन्होंने रक्षात्मक नहीं बल्कि आक्रामक खेल दिखाते हुए दूसरा मुकाबला भी जीत लिया और फाइनल में प्रवेश कर लिया।

दिव्या देशमुख ने पूर्व विश्व चैंपियन को हराकर रचा इतिहास
19 वर्षीय युवा खिलाड़ी दिव्या देशमुख ने भी अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया। उन्होंने सेमीफाइनल में चीन की पूर्व विश्व चैंपियन तान झोंग्यी को 1.5-0.5 के अंतर से पराजित किया। पहले मुकाबले में काले मोहरों से खेलते हुए दिव्या ने संतुलन बनाए रखा और खेल ड्रॉ पर समाप्त हुआ।

दूसरे मुकाबले में सफेद मोहरों के साथ उन्होंने आक्रामक रणनीति अपनाई और झोंग्यी पर लगातार दबाव बनाते हुए उन्हें गलतियाँ करने पर मजबूर कर दिया। समय की कमी में झोंग्यी ने निर्णायक भूल की, जिसका फायदा उठाकर दिव्या ने दो प्यादों की बढ़त हासिल कर ली और अंततः मुकाबला जीत लिया।

पहली बार दो भारतीय महिला खिलाड़ी फाइनल में आमने-सामने
फिडे वर्ल्ड कप के इतिहास में यह पहली बार है जब फाइनल में दोनों खिलाड़ी भारत से होंगी। इससे पहले भी भारत ने इस टूर्नामेंट में दमदार प्रदर्शन किया है, लेकिन ऐसा ऐतिहासिक पल कभी नहीं आया। इस बार भारत की चार महिला खिलाड़ियाँ – कोनेरू हंपी, दिव्या देशमुख, हरिका द्रोणवल्ली और आर. वैशाली – क्वार्टरफाइनल तक पहुंची थीं, जो अब तक का सबसे शानदार प्रदर्शन है।

शतरंज में भारत का बढ़ता वर्चस्व
यह प्रदर्शन केवल दो खिलाड़ियों की सफलता नहीं बल्कि भारतीय शतरंज की गहराई और तैयारी का प्रमाण है। कोनेरू हंपी जैसी अनुभवी खिलाड़ी और दिव्या देशमुख जैसी युवा प्रतिभा का एक साथ शीर्ष स्तर पर पहुंचना, भारत के लिए गर्व की बात है। हंपी जहां वर्षों से विश्व शतरंज में भारत का प्रतिनिधित्व कर रही हैं, वहीं दिव्या ने युवा पीढ़ी की ओर से भारत को नया मुकाम दिलाया है।
क्या कहती हैं आंकड़ें और विशेषज्ञ
- दिव्या देशमुख की उम्र मात्र 19 वर्ष है, लेकिन उनके खेल में परिपक्वता और संतुलन स्पष्ट दिखा।
- हंपी की रणनीतिक क्षमता और अनुभव ने उन्हें टाई ब्रेकर में असंभव स्थिति से विजेता बना दिया।
- विशेषज्ञ मानते हैं कि यह फाइनल भारतीय महिला शतरंज के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा।