दिव्या देशमुख बनीं FIDE वर्ल्ड कप फाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला
भारतीय शतरंज में एक नया स्वर्णिम अध्याय जुड़ गया है। भारत की युवा ग्रैंडमास्टर दिव्या देशमुख ने जॉर्जिया में चल रहे FIDE विमेंस वर्ल्ड कप 2025 के फाइनल में पहुंचकर इतिहास रच दिया है। वे इस प्रतिष्ठित टूर्नामेंट के फाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बन गई हैं। इस उपलब्धि के साथ ही दिव्या ने न केवल अपना पहला ग्रैंडमास्टर नॉर्म हासिल किया है, बल्कि 2026 में होने वाले FIDE विमेंस कैंडिडेट्स टूर्नामेंट के लिए भी अपनी जगह पक्की कर ली है।

पूर्व वर्ल्ड चैंपियन तान झोंग्यी को दी मात
सेमीफाइनल मुकाबले में दिव्या ने चीन की पूर्व विश्व चैंपियन तान झोंग्यी को 1.5-0.5 के अंतर से हराया। यह उनकी इस टूर्नामेंट में लगातार तीसरी जीत है, जिसमें उन्होंने ग्रैंडमास्टर स्तर की खिलाड़ी को शिकस्त दी है।
पहला गेम: संतुलित रणनीति से ड्रॉ
सेमीफाइनल का पहला गेम काले मोहरों से खेलते हुए दिव्या ने सावधानी से शुरुआत की। झोंग्यी ने ‘क्वीन्स गैम्बिट डिक्लाइन्ड’ ओपनिंग खेली, जिसके जवाब में दिव्या ने जल्दी-जल्दी मोहरों की अदला-बदली कर खेल को संतुलन की ओर ले जाया। दोनों खिलाड़ियों के पास अंत में एक-एक रूक, एक-एक बिशप और तीन-तीन प्यादे रह गए थे, जिससे मुकाबला ड्रॉ पर समाप्त हुआ।
दूसरा गेम: धैर्य, रणनीति और समय प्रबंधन का अद्भुत उदाहरण
दूसरे गेम में दिव्या को सफेद मोहरे मिले और उन्होंने इसका पूरा लाभ उठाया। खेल की शुरुआत से ही दिव्या ने आक्रामक रुख अपनाया और लगातार दबाव बनाते हुए झोंग्यी को गलतियां करने पर मजबूर कर दिया। खेल 101 चालों तक चला, जिसमें दिव्या की रणनीति, बोर्ड पर नियंत्रण और समय का बेहतरीन उपयोग देखने को मिला।
जब झोंग्यी ने थोड़ी बढ़त बनाई तो ऐसा लगा कि वह वापसी करेंगी, लेकिन समय की कमी में उन्होंने एक गलत चाल चली, जिससे दिव्या को दो प्यादों की बढ़त मिल गई। आखिरी के कुछ क्षणों में झोंग्यी के पास खेल को ड्रॉ पर समाप्त करने के मौके थे, लेकिन वह उन्हें भुना नहीं सकीं और अंततः हार माननी पड़ी।

कोनेरू हम्पी का फैसला टाई-ब्रेकर से होगा
सेमीफाइनल के दूसरे मुकाबले में भारत की अनुभवी ग्रैंडमास्टर कोनेरू हम्पी का मुकाबला चीन की लेई टिंगजी से था। यह दोनों गेम ड्रॉ रहे। पहले गेम में हम्पी के पास सफेद मोहरे थे, लेकिन लेई के ठोस बचाव के आगे वह कोई निर्णायक बढ़त नहीं बना सकीं।
अब यह मुकाबला गुरुवार को रैपिड और ब्लिट्ज टाई-ब्रेकर से तय होगा कि फाइनल में दिव्या देशमुख की प्रतिद्वंद्वी कौन होगी।

भारत की चार महिला खिलाड़ियों ने क्वार्टर फाइनल में बनाई जगह
यह टूर्नामेंट भारत के लिए कई मायनों में ऐतिहासिक रहा है। पहली बार चार भारतीय महिला खिलाड़ी – कोनेरू हम्पी, हरिका द्रोणवल्ली, आर. वैशाली और दिव्या देशमुख – इस टूर्नामेंट के क्वार्टर फाइनल तक पहुंचीं। इससे यह स्पष्ट होता है कि भारतीय महिला शतरंज का स्तर लगातार ऊंचाई की ओर बढ़ रहा है।
दिव्या देशमुख: नई पीढ़ी की उम्मीद
सिर्फ 19 साल की उम्र में दिव्या देशमुख का यह प्रदर्शन यह साबित करता है कि भारतीय शतरंज की नई पीढ़ी आत्मविश्वास, रणनीति और तकनीकी कौशल में किसी से पीछे नहीं है। लगातार तीन ग्रैंडमास्टरों को हराना और बड़े मंच पर दबाव को झेलते हुए जीत हासिल करना उनके मानसिक बल और तैयारी का परिचायक है।
आगे क्या?
अब सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि फाइनल में दिव्या का मुकाबला कोनेरू हम्पी से होता है या चीन की टिंगजी लेई से। लेकिन इससे पहले ही दिव्या ने जो उपलब्धि हासिल की है, वह भारतीय खेल इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज की जाएगी।
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