भोपाल। प्रदेश में साइबर अपराधों का बढ़ता ग्राफ एक बड़ी चिंता का विषय बन गया है। डिजिटल युग के साथ-साथ साइबर अपराधों के नए और जटिल रूप सामने आ रहे हैं, जिनमें से एक है "डिजिटल अरेस्ट"। इस गंभीर मसले पर आज विधानसभा में चर्चा हुई। जबलपुर उत्तर मध्य के भाजपा विधायक डॉ. अभिलाष पाण्डेय ने नियम 138(1) के अधीन ध्यान आकर्षण की सूचना पेश करते हुए "डिजिटल अरेस्ट" का मुद्दा उठाया और इसे प्रदेश के लिए एक गंभीर खतरा बताया।
क्या है डिजिटल अरेस्ट?
डॉ. पाण्डेय ने बताया कि "डिजिटल अरेस्ट" अपराधियों द्वारा किया जाने वाला एक आधुनिक साइबर अपराध है, जिसमें वे खुद को पुलिस या अन्य सरकारी अधिकारी बताकर आम लोगों को डराते और धमकाते हैं। अपराधी फोन या वीडियो कॉल के जरिए पीड़ित को किसी अपराध में शामिल होने की झूठी जानकारी देकर डराते हैं और उनसे पैसे ऐंठते हैं। पीड़ित को यह विश्वास दिलाया जाता है कि अगर उन्होंने पैसे नहीं दिए तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाएगा।
साइबर अपराधों से निपटने की चुनौती
डॉ. पाण्डेय ने कहा कि प्रदेश में साइबर अपराधों से निपटने के लिए कानूनों और संसाधनों की कमी एक बड़ी बाधा है। उन्होंने मौजूदा कानूनों में संशोधन और अपराधियों के खिलाफ सख्त सजा का प्रावधान करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि अपराधियों में कानून व्यवस्था का डर खत्म होता जा रहा है, जिससे ये घटनाएं बढ़ रही हैं।
डिजिटल अरेस्ट की बढ़ती घटनाएं
लोक स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा राज्यमंत्री नरेन्द्र शिवाजी पटेल ने विधानसभा में बताया कि वर्ष 2024 (22 नवंबर तक) में डिजिटल अरेस्ट के कुल 26 मामले दर्ज हुए हैं। इनमें 12 करोड़ 60 लाख 71 हजार 802 रु का फ्रॉड हुआ है। हालांकि, पुलिस ने सक्रियता दिखाते हुए 72 लाख 38 हजार 927 रु की राशि फरियादियों को वापस कराई और 38 आरोपियों को गिरफ्तार किया।
जागरूकता और प्रशिक्षण अभियान
राज्यमंत्री ने कहा कि साइबर अपराधों पर नियंत्रण और साइबर सुरक्षा को मजबूत बनाने के लिए व्यापक कार्ययोजना तैयार की जा रही है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2017 से 2024 तक प्रदेश में कुल 4848 साइबर जागरूकता अभियान चलाए गए, जिनके माध्यम से 30 लाख से अधिक लोगों को जागरूक किया गया। इसके साथ ही, 314 साइबर ट्रेनिंग प्रोग्राम आयोजित कर 32,384 पुलिस अधिकारियों और कर्मचारियों को प्रशिक्षित किया गया है।
साइबर अपराधों से निपटने के लिए टोल फ्री नंबर और पोर्टल की सुविधा
राज्य सरकार ने साइबर अपराधों की शिकायतों पर त्वरित कार्यवाही के लिए टोल फ्री नंबर 1930 और ऑनलाइन पोर्टल www.cybercrime.gov.in की सुविधा उपलब्ध कराई है।
साइबर फॉरेंसिक यूनिट्स का विस्तार
प्रदेश में साइबर अपराधों की जांच के लिए 13 साइबर फॉरेंसिक यूनिट्स की स्थापना की गई है। ये यूनिट्स इंदौर, जबलपुर, उज्जैन, ग्वालियर, चंबल, रीवा, बालाघाट, शहडोल, सागर, नर्मदापुरम, छिंदवाड़ा, रतलाम और खरगौन में कार्यरत है
डिजिटल अरेस्ट और अन्य साइबर अपराधों के बढ़ते मामलों पर सरकार गंभीरता से काम कर रही है। विधानसभा में हुई चर्चा और सरकार द्वारा उठाए गए कदम इस बात का संकेत हैं कि प्रदेश में साइबर अपराधों पर नियंत्रण पाने के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं। जागरूकता अभियान और कानूनों में सुधार के जरिए इन अपराधों पर काबू पाने की उम्मीद जताई जा रही है।
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