देवउठनी एकादशी के साथ फिर बजेगी शहनाई, दो महीनों में मिलेंगे 16 शुभ विवाह मुहूर्त
नई दिल्ली, 29 अक्टूबर। हिंदू पंचांग के अनुसार इस वर्ष देवउठनी एकादशी (देव उठनी ग्यारस) का पर्व 1 नवंबर को मनाया जाएगा। यह दिन धार्मिक दृष्टि से अत्यंत शुभ माना जाता है क्योंकि इसी दिन भगवान विष्णु चार माह की योगनिद्रा से जागते हैं और सृष्टि के संचालन का कार्य पुनः आरंभ होता है। इस अवसर से ही विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन और यज्ञोपवीत जैसे सभी मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है, जो चातुर्मास के दौरान स्थगित रहते हैं।
चातुर्मास के बाद मांगलिक कार्यों की शुरुआत
पौराणिक मान्यता के अनुसार, हर साल आषाढ़ शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक का समय चातुर्मास कहलाता है। इस अवधि में भगवान विष्णु योगनिद्रा में रहते हैं, इसलिए इस दौरान विवाह, गृह प्रवेश और अन्य शुभ कार्य नहीं किए जाते। यह अवधि लगभग चार महीने (142 दिन) की होती है। देवउठनी एकादशी के साथ यह प्रतिबंध समाप्त हो जाता है और घर-घर में शुभ कार्यों की शुरुआत होती है।
देवउठनी एकादशी के दिन मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना, तुलसी विवाह और शुभ मांगलिक कार्यों की बुकिंग शुरू हो जाती है। देशभर के ज्योतिषाचार्य इसे शुभता के पुनर्जागरण का प्रतीक मानते हैं।

नवंबर में 13 और दिसंबर में 3 शुभ विवाह मुहूर्त
देवउठनी एकादशी के बाद विवाह की शहनाइयाँ बजने लगेंगी। इस बार नवंबर और दिसंबर में कुल 16 शुभ मुहूर्त प्राप्त हो रहे हैं।
नवंबर के विवाह मुहूर्त इस प्रकार हैं:
2 नवंबर, 3 नवंबर, 5 नवंबर, 8 नवंबर, 12 नवंबर, 13 नवंबर, 16 नवंबर, 17 नवंबर, 18 नवंबर, 21 नवंबर, 22 नवंबर, 23 नवंबर, 25 नवंबर और 30 नवंबर।
दिसंबर के विवाह मुहूर्त:
4 दिसंबर, 5 दिसंबर और 6 दिसंबर।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, इस वर्ष नवंबर का दूसरा पखवाड़ा विवाह के लिए विशेष रूप से शुभ रहेगा, क्योंकि इस दौरान गुरु, शुक्र और चंद्रमा की स्थिति शुभ योग बना रही है।
शुभ मुहूर्त का महत्व
ज्योतिष शास्त्र में शुभ मुहूर्त का अत्यधिक महत्व बताया गया है। प्रत्येक ग्रह और नक्षत्र अपनी गति से समय-समय पर परिवर्तन करते हैं, और उनका प्रभाव सीधे मानव जीवन पर पड़ता है। विवाह जैसे महत्वपूर्ण संस्कार के लिए ऐसे समय का चयन किया जाता है जब ग्रहों की स्थिति वर-वधू के पक्ष में हो।
शुभ मुहूर्त में किया गया विवाह दांपत्य जीवन में स्थिरता, समृद्धि और सौभाग्य लाता है। यह देवताओं के आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है। पंचांग के अनुसार, विवाह के समय चंद्रमा की शुभ स्थिति और गुरु-शुक्र का बलवान होना आवश्यक है।

तुलसी विवाह से प्रारंभ होंगे शुभ कार्य
देवउठनी एकादशी को तुलसी विवाह का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु और तुलसी का विवाह कर धार्मिक दृष्टि से शुभ कार्यों की शुरुआत की जाती है। इस परंपरा के तहत घरों और मंदिरों में विशेष पूजा-पाठ, दीपदान और संकीर्तन का आयोजन किया जाता है। तुलसी विवाह को मानव जीवन में मंगल कार्यों की पुनः स्थापना का प्रतीक माना जाता है

सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी विशेष पर्व
देवउठनी एकादशी केवल धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि भारतीय सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन का एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह समाज में उमंग और उत्साह का वातावरण लाता है। विवाह, गृह प्रवेश और नूतन कार्यों की तैयारी से बाजारों में रौनक लौट आती है।
स्वर्णकार, वस्त्र व्यापारी और पंडाल संचालक इस समय को वर्ष का सबसे व्यस्त दौर मानते हैं, क्योंकि देवउठनी एकादशी के बाद से विवाह-सीजन की शुरुआत होती है, जो माघ मास तक चलती है।

पर्यावरण और आध्यात्मिक दृष्टि से संदेश
देवउठनी एकादशी का पर्व पर्यावरण और आध्यात्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यह संदेश देता है कि जैसे भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं, वैसे ही मनुष्य को भी आलस्य, अज्ञान और अवसाद से जागकर सत्कर्म की ओर अग्रसर होना चाहिए।
देवउठनी एकादशी समाज में शुभता, एकता और धार्मिक भावनाओं का संचार करती है, और भारतीय परंपरा के उस मूल संदेश को दोहराती है—“धर्म, संयम और श्रद्धा से ही जीवन मंगलमय होता है।”
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