September 17, 2025 2:55 AM

खालिद और शरजील की जमानत याचिका दिल्ली हाईकोर्ट ने खारिज की

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दिल्ली दंगे: उमर खालिद और शरजील इमाम की जमानत याचिका हाईकोर्ट ने खारिज की

नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को दिल्ली दंगों की साजिश से जुड़े अहम मामले में बड़ा फैसला सुनाया। जस्टिस नवीन चावला की अध्यक्षता वाली बेंच ने उमर खालिद और शरजील इमाम समेत कुल नौ आरोपितों की जमानत याचिकाएं खारिज कर दीं। अदालत ने कहा कि इस मामले में लगे आरोप गंभीर प्रकृति के हैं, इसलिए फिलहाल आरोपितों को राहत नहीं दी जा सकती।

किन आरोपितों की जमानत याचिका खारिज हुई

अदालत ने जिन नौ आरोपितों की जमानत याचिका खारिज की है, उनके नाम इस प्रकार हैं—

  • उमर खालिद
  • शरजील इमाम
  • अतहर खान
  • अब्दुल खालिद सैफी
  • मोहम्मद सलीम खान
  • शिफा-उर-रहमान
  • मीरान हैदर
  • गुलफिशा फातिमा
  • शादाब अहमद

पहले ही सुरक्षित कर लिया गया था फैसला

सभी जमानत याचिकाओं पर सुनवाई पूरी होने के बाद अदालत ने 9 जुलाई 2025 को फैसला सुरक्षित रख लिया था। अब उच्च न्यायालय ने इन सभी याचिकाओं को ठुकरा दिया है।

दिल्ली पुलिस का पक्ष

सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत के सामने कहा था:

  • यह मामला किसी साधारण अपराध का नहीं है, बल्कि सुनियोजित दंगों की साजिश का है।
  • आरोपितों की योजना थी कि इसका प्रभाव पूरे देश में दिखाई दे।
  • “अगर कोई देश के खिलाफ कार्रवाई करता है, तो उसके लिए बेहतर जगह जेल ही है।”

अदालत का दृष्टिकोण

अदालत ने माना कि यह मामला सामान्य आपराधिक घटना नहीं, बल्कि देश की आंतरिक सुरक्षा और कानून-व्यवस्था से जुड़ा गंभीर प्रकरण है। इस वजह से आरोपितों को जमानत देने से समाज और न्याय प्रणाली पर गलत प्रभाव पड़ सकता है।

पृष्ठभूमि

दिल्ली दंगे फरवरी 2020 में हुए थे। इस दौरान बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई और करोड़ों की संपत्ति को नुकसान पहुंचा। पुलिस और जांच एजेंसियों का आरोप है कि दंगे पूर्व नियोजित और सुनियोजित थे।

  • उमर खालिद और शरजील इमाम पर आरोप है कि उन्होंने दंगों को हवा देने के लिए भड़काऊ भाषण दिए और लोगों को उकसाया।
  • दिल्ली पुलिस ने इनके खिलाफ यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम) समेत कई धाराओं में मुकदमा दर्ज किया है।

आगे की प्रक्रिया

अब आरोपितों को निचली अदालत में मुकदमे का सामना करना होगा। उच्च न्यायालय के इस फैसले ने साफ संकेत दे दिया है कि अदालतें इस तरह के मामलों को गंभीर राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा अपराध मान रही हैं।


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