July 4, 2025 10:23 AM

नक्सली गांव में बेटी की विदाई, सीआरपीएफ जवानों ने निभाया भाई का फर्ज– सुकमा के पूवर्ती गांव में प्रेम, सुरक्षा और विश्वास की ऐतिहासिक तस्वीर

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सुकमा।
कभी देश के सबसे खूंखार नक्सली माड़वी हिड़मा के गांव पूवर्ती को लेकर जो ख़बरें आती थीं, वो खौफ, हिंसा और अलगाव की होती थीं। लेकिन अब इस गांव से एक नई तस्वीर सामने आई है — प्रेम, भाईचारे और बदलते बस्तर की तस्वीर, जहां सीआरपीएफ के जवानों ने एक विवाहिता की विदाई में भाई बनकर आशीर्वाद दिया और नेग देकर भावुक विदाई की।


🌸 बस्तर के जंगलों में गूंजे बैंड-बाजे

मंगलवार को सुकमा और बीजापुर की सीमा पर स्थित पूवर्ती गांव में एक युवा कन्या का विवाह संपन्न हुआ। विदाई के समय गांव वालों ने सीआरपीएफ की 150वीं बटालियन के कैंप में पहुंचकर जवानों को समारोह में आमंत्रित किया। दुल्हन अपने परिवार और गांव वालों के साथ सीआरपीएफ कैंप पहुंची, जहां जवानों ने पारंपरिक रीति से उसे आशीर्वाद दिया और अपनी बहन समझकर नेग-उपहार देकर विदा किया।

सीआरपीएफ जवानों ने बेटी के पैर छूकर आशीर्वाद दिया, नजर उतारी और गांववालों के साथ मिलकर ढोल-नगाड़ों पर थिरकते हुए विदाई में शामिल हुए। यह भावुक और ऐतिहासिक दृश्य खुद छत्तीसगढ़ सरकार के मंत्री केदार कश्यप ने सोशल मीडिया पर साझा करते हुए इसे “बदलते बस्तर का प्रतीक” बताया।


🔴 कभी डर और गोलियों की गूंज, अब रिश्तों और विश्वास की सरगम

पूवर्ती गांव कभी नक्सली हिड़मा और देवा बारसे का गढ़ था। साल भर पहले तक यहां के ग्रामीण सुरक्षाबलों को देखकर भाग जाते थे। गांव में पुलिस की उपस्थिति संघर्ष, सर्चिंग और भय का प्रतीक मानी जाती थी। लेकिन जैसे ही सीआरपीएफ का स्थायी कैंप यहां स्थापित हुआ, गांव का माहौल बदलने लगा

जवानों ने न केवल सुरक्षा दी, बल्कि गांव के बच्चों को पढ़ाना, चिकित्सा सेवा देना, त्योहारों में भाग लेना शुरू किया। इसी आपसी जुड़ाव और विश्वास का नतीजा है कि अब ग्रामीण खुद सेना के पास जाते हैं, अपने उत्सव में शामिल करते हैं, उन्हें परिवार मानते हैं।


🌿 बस्तर में बदलती सोच और समाज

यह सिर्फ एक विदाई नहीं थी, यह एकता, विश्वास और विकास की प्रतीक घटना थी। जहां कभी जंगलों में खामोशी और भय था, अब वहां से संगीत, रिश्ते और उत्सव की गूंज सुनाई देती है।

सीआरपीएफ जवानों का यह भावनात्मक जुड़ाव बताता है कि अब बस्तर के गांव सिर्फ युद्ध के मोर्चे नहीं, बल्कि नई सामाजिक क्रांति के केंद्र बन रहे हैं। पूवर्ती की बेटी की विदाई में जो दृश्य उभरा, वो आने वाले समय में बस्तर के दूसरे गांवों के लिए भी प्रेरणा बन सकता है।


📸 यह तस्वीरें बताती हैं – युद्ध नहीं, विश्वास से जीता जाता है दिल

पूवर्ती गांव की यह घटना नक्सलवाद से जूझ रहे भारत के लिए एक नई उम्मीद लेकर आई है। जब एक बेटी सीआरपीएफ के भाइयों से गले लगकर विदा होती है, तो यह केवल एक सामाजिक रस्म नहीं, बल्कि दिलों की दूरी मिटाने वाला ऐतिहासिक क्षण होता है।


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