कांग्रेस अकसर भारतीय जनता पार्टी पर संविधान बदलने के आरोप लगाती है। उसके लिए वह भाजपा के एक-दो अपरिपक्व नेताओं के बयानों को आधार बनाती है। लेकिन इस बार संविधान बदलने की मंशा रखने के आरोप कांग्रेस पर लग रहे हैं। कांग्रेस के किसी छोटे नेता ने संविधान बदलने की बात नहीं की है अपितु कर्नाटक के उप-मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस के कद्दावर नेता डीके शिवकुमार ने संविधान बदले जाने की बात कही है। डीके शिवकुमार के बयान के बाद से सड़क से संसद तक कांग्रेस घिर गई है। भाजपा की ओर से लोकसभा और राज्यसभा, दोनों सदनों में इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया गया। स्थिति यह बन गई कि डीके शिवकुमार को कहना पड़ गया कि उनके बयान को गलत तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया जा रहा है। कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी कहा कि संविधान को कोई नहीं बदल सकता। कांग्रेस ने तो संविधान बचाने के लिए रैली निकाली है। यह बहुत रोचक है कि कोई रैली निकालकर संविधान का रक्षक बन जाता है जबकि भाजपा ने तो संविधान और राष्ट्रीय ध्वज के लिए बलिदान दिया है। जम्मू-कश्मीर में ‘एक विधान-एक निशान-एक प्रधान’ के लिए किसने बलिदान दिए? आतंकियों की धमकी के बावजूद कश्मीर में तिरंगा फहराने की हिम्मत किसने दिखायी? मल्लिकार्जुन खड़गे अपने नेता डीके शिवकुमार के विवादित बयान का बचाव करने के लिए जिस प्रकार के तर्क दे रहे हैं, उनके आधार पर तो उन्हें संविधान के सबसे बड़े रक्षक के तौर पर भाजपा की भूमिका को स्वीकार कर लेना चाहिए। बहरहाल, आरोप-प्रत्यारोप के बीच यह जनता को यह जानना आवश्यक है कि कर्नाटक के उप-मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने वास्तव में क्या कहा है। जब समाचार चैनल के एंकर ने शिवकुमार से पूछा कि “क्या संविधान धर्म के आधार पर आरक्षण की अनुमति देता है?” तब जवाब में शिवकुमार ने कहा कि “हां, मैं सहमत हूं। आइए, इंतजार करें और देखें कि न्यायालय क्या फैसला करती है? हमने कुछ शुरू किया है। मुझे पता है कि हर कोई न्यायालय जाएगा। आइए, अच्छे दिन का इंतजार करें। अच्छा दिन आएगा। बहुत सारे बदलाव हो रहे हैं। संविधान बदलेगा। ऐसे फैसले आए हैं जिन्होंने संविधान को भी बदल दिया है”। इस बयान में कांग्रेस के नेता शिवकुमार साफ कह रहे हैं कि वे संविधान को बदल देंगे। संविधान बदलने के लिए वे अच्छे दिन आने का इंतजार करेंगे। यानी केंद्र में कांग्रेस की सरकार आएगी, तब वे अपनी मंशा के अनुरूप संविधान में बदलाव करेंगे। याद रखें कि संविधान और न्यायालय के निर्णय को बदलने का कांग्रेस का इतिहास रहा है। देश में कांग्रेस ही वह राजनीतिक दल है, जिसने लोकतंत्र का गला घोंटकर आपातकाल थोपा था। संविधान की आत्मा कही जानेवाली ‘प्रस्तावना’ को ही बदलने का काम कांग्रेस ने ही किया। यानी कांग्रेस संविधान की आत्मा तक को बदल चुकी है। कट्टरपंथी मुस्लिमों को खुश करने के लिए कांग्रेस ने ही सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को पलटते हुए एक असहाय वृद्ध महिला शाहबानो की झोली से न्याय छीन लिया था। यह भी याद रखना चाहिए कि संविधान में धर्म के आधार पर आरक्षण देने का कोई प्रावधान नहीं किया गया था। इसलिए जब धर्म के आधार पर आरक्षण देने के उपाय किए जाते हैं, तो वह भी संविधान की मूल भावना का विरोधी कार्य है। याद हो कि जब मुसलमानों को आरक्षण देने की चर्चा संविधान सभा में हुई तब अल्पसंख्यक समिति के अध्यक्ष सरदार पटेल ने बेबाकी के साथ कहा था- “दोबारा यही सब करना है तो पाकिस्तान जाओ”। धर्म के आधार पर आरक्षण माँगने वालों को सरदार पटेल ने पाकिस्तान चले जाने को कह दिया था। कांग्रेस यदि मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए आरक्षण के प्रावधानों में फेरबदल कर रही है तो क्या इसे संविधान विरोधी कृत्य नहीं माना जाना चाहिए? कांग्रेस द्वारा ऐन-केन-प्रकारेण मुसलमानों को आरक्षण देना, क्या अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के अधिकारों में सेंध लगाना नहीं माना जाना चाहिए? आरक्षण पर नये प्रावधान क्या बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर के विचारों का विरोध नहीं है? यह ऐसे प्रश्न हैं, जिन पर गंभीर चर्चा होनी चाहिए ताकि समाज के सामने यह तथ्य आ सके कि संविधान का सच्चा हितैषी कौन है?