June 8, 2025 12:43 AM

शास्त्र और शस्त्र के संतुलन से ही धर्म की स्थापना संभव: मुख्यमंत्री डॉ. यादव

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आचार्य शंकर की परंपरा पर बोले मुख्यमंत्री — ‘भारत को शक्ति और ज्ञान दोनों की आवश्यकता’

ओंकारेश्वर।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने शुक्रवार को ओंकारेश्वर में आयोजित आदिगुरु शंकराचार्य की जयंती पर समारोह में आचार्य शंकराचार्य की महान परंपरा और भारतीय संत परंपरा की विशेषताओं पर गहरी अंतर्दृष्टि साझा की। उनका उद्बोधन न केवल आध्यात्मिक था, बल्कि वर्तमान भारत के सांस्कृतिक, सामाजिक और धार्मिक पुनर्जागरण की भावना से भी परिपूर्ण था।

डॉ. यादव ने आचार्य शंकर की शिक्षाओं और संतों की भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि धर्म की स्थापना के लिए शस्त्र (बल) और शास्त्र (ज्ञान) — दोनों का अद्भुत संतुलन आवश्यक है। उन्होंने संतों के योगदान को देश की आत्मा बताया और कहा कि भारत को अगर ज्ञान-संपन्न और शक्ति-संपन्न राष्ट्र बनाना है तो हमें अपनी संत परंपरा को गहराई से समझना और आत्मसात करना होगा।


‘आचार्य शंकराचार्य का व्यक्तित्व हिमालय जैसा’

मुख्यमंत्री ने अपने संबोधन में कहा, “मैं अपने आप को धन्य मानता हूं कि मुझे यहां संतों के मुख से आचार्य शंकर के विविध रूपों को सुनने और उन्हें प्रत्यक्ष अनुभव करने का सौभाग्य मिला। उनके लघु जीवन में जो कार्य उन्होंने किया, वह किसी चमत्कार से कम नहीं।” उन्होंने कहा कि आचार्य शंकराचार्य न केवल अद्वैत वेदांत के प्रवर्तक थे, बल्कि एक ऐसे युगपुरुष थे जिन्होंने भारत की विभाजित धार्मिक चेतना को एक सूत्र में पिरोया।

डॉ. यादव ने कहा कि शंकराचार्य द्वारा चांडाल को भी दंडवत प्रणाम करना — यह सिद्ध करता है कि उनके लिए आत्मा की अनुभूति सर्वोपरि थी, न कि जाति या वर्ण का बंधन। उन्होंने बताया कि “उनका आचार्यत्व हिमालय के समान अडिग और विशाल है, जो हमें अपने अंतरमन के द्वंद्व से ऊपर उठकर अद्वैत की अनुभूति कराता है।”


‘संत परंपरा ने शस्त्र और शास्त्र दोनों का किया समन्वय’

मुख्यमंत्री ने उपस्थित संतों को संबोधित करते हुए कहा कि भारत की संत परंपरा केवल ध्यान और ज्ञान की नहीं रही, बल्कि जरूरत पड़ने पर धर्म रक्षार्थ शस्त्र उठाने की परंपरा भी रही है। उन्होंने अखाड़ों की परंपरा का उल्लेख करते हुए कहा कि “हमारे संन्यासी सिर्फ वैराग्य के प्रतीक नहीं, बल्कि आवश्यकता पड़ने पर धर्म की रक्षा के लिए रणभूमि में उतरने वाले योद्धा भी रहे हैं। यही संतुलन भारत की विशेषता है।”


‘1400 वर्षों की ज्ञान परंपरा का केंद्र रहे शंकराचार्य’

डॉ. यादव ने भारतीय शिक्षा और दर्शन की निरंतरता पर बल देते हुए कहा कि आचार्य शंकराचार्य ने भारत की टूटती हुई सांस्कृतिक कड़ियों को जोड़ा, और विभिन्न विचारधाराओं को समन्वय के सूत्र में पिरोया। उन्होंने कहा कि भारत में 1400 वर्षों से जो ज्ञान परंपरा जीवित है, वह आचार्य शंकर के कारण ही संभव हो पाई है।


‘अयोध्या में भगवान राम मुस्करा रहे हैं, संघर्ष सफल हुआ’

मुख्यमंत्री ने अपने भाषण में अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण को भी भारत के आध्यात्मिक पुनर्जागरण का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा, “500 वर्षों के संघर्ष के बाद जब भगवान राम का धाम आज एक स्वरूप ले रहा है, तो वह केवल एक भवन नहीं, बल्कि पूरे राष्ट्र की चेतना का जागरण है। अयोध्या में भगवान मुस्करा रहे हैं और हम सब उस आनंद को अनुभव कर रहे हैं।”

उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व को इसका श्रेय देते हुए कहा कि यह कार्य “अद्वैत” की उस भावना को मूर्त रूप देने का प्रयास है, जिसमें समग्र भारत एकजुट होता है।


‘धार्मिक नगरियों में शराबबंदी और आर्थिक विकास’

मुख्यमंत्री ने यह भी बताया कि प्रदेश सरकार धार्मिक नगरियों में शराबबंदी के माध्यम से आध्यात्मिक वातावरण को संरक्षित करने के लिए प्रतिबद्ध है। इसके साथ-साथ राज्य के आर्थिक विकास की योजना पर बात करते हुए उन्होंने कहा, “हमारा लक्ष्य 9% औद्योगिक उत्पादन को 20% तक ले जाना है और यह कार्य भी ईश्वर की कृपा से ही संभव होगा।”


‘भारत को चाहिए शक्ति और भक्ति दोनों’

अपने उद्बोधन के अंत में मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत की उन्नति केवल आर्थिक या भौतिक दृष्टि से नहीं, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से भी होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि हमें आधुनिक विज्ञान, प्रौद्योगिकी और शिक्षा के साथ-साथ अपने धार्मिक मूल्यों और आध्यात्मिक परंपराओं को भी संजोकर चलना होगा।

“यदि हमारे संतों की कृपा रही तो हम हर दिशा में सफल होंगे। भारत को शक्ति और भक्ति दोनों चाहिए, और संतों की परंपरा से ही यह संतुलन संभव है।” — डॉ. मोहन यादव



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