- चिराग सीटों पर समझौते के मूड में नहीं दिख रहे थे, ऐसे में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को खुद हस्तक्षेप करना पड़ा
नई दिल्ली। बिहार की राजनीति में एक बार फिर लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) और भाजपा के बीच सीटों को लेकर खींचतान तेज हो गई है। पिछले विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान ने अलग राह चुनकर जदयू को भारी नुकसान पहुँचाया था, और इस बार भी उनकी मांगों ने राजग (NDA) की रणनीति को मुश्किल में डाल दिया है। सूत्रों के मुताबिक, भाजपा नेतृत्व की कई कोशिशों के बावजूद चिराग सीटों पर समझौते के मूड में नहीं दिख रहे थे। ऐसे में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को खुद हस्तक्षेप करना पड़ा। बीते कुछ दिनों से चिराग पासवान भाजपा नेताओं के संपर्क से बाहर बताए जा रहे थे। बिहार चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान और प्रदेश प्रभारी विनोद तावड़े उनसे संपर्क करने की लगातार कोशिश कर रहे थे, लेकिन चिराग “आउट ऑफ रीच” बताकर चर्चाओं से दूरी बनाए हुए थे। स्थिति गंभीर होती देख अमित शाह ने अपने तरीके से संदेश भिजवाया — और यही दखल निर्णायक साबित हुआ।
शाह के हस्तक्षेप के बाद चिराग और धर्मेंद्र प्रधान के बीच बातचीत फिर शुरू हुई। इसके बाद चिराग के रुख में नरमी देखी गई, हालांकि सीटों के बंटवारे पर अब तक कोई औपचारिक सहमति नहीं बनी है।
लोजपा (रामविलास) की मांगें बनीं विवाद का कारण
लोजपा (रामविलास) इस बार करीब 40 सीटों की मांग कर रही है, जबकि भाजपा और जदयू इसे अतार्किक और अव्यवहारिक बता रहे हैं। पार्टी प्रमुख चिराग पासवान विशेष रूप से गोविंदगंज, ब्रह्मपुर, अतरी, महुआ और सिमरी बख्तियारपुर जैसी पांच प्रमुख सीटों पर अड़े हुए हैं। इनमें से तीन सीटों पर जदयू भी दावा कर रही है, जिससे तनाव और बढ़ गया है।
भाजपा चाहती है कि चिराग यथार्थवादी मांग रखें ताकि गठबंधन में संतुलन बना रहे। वहीं, चिराग का कहना है कि उनकी पार्टी को “सम्मानजनक हिस्सेदारी” दी जानी चाहिए।
2020 का अनुभव बना भाजपा के लिए सबक
वर्ष 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान ने गठबंधन से अलग होकर चुनाव लड़ा, जिससे कई सीटों पर भाजपा-जदयू उम्मीदवारों को नुकसान हुआ। जदयू की सीटें घट गईं और नीतीश कुमार मुश्किल से सत्ता में लौट पाए।
इस अनुभव को देखते हुए अमित शाह ने हाल ही में दिल्ली में हुई बिहार कोर कमेटी की बैठक में स्पष्ट निर्देश दिया कि “2020 जैसी गलती दोहराई नहीं जानी चाहिए।”
भाजपा को पूरा एहसास है कि दलित और युवा मतदाताओं में चिराग की लोकप्रियता गठबंधन के लिए महत्वपूर्ण है, इसलिए पार्टी उन्हें नाराज़ नहीं करना चाहती।
बड़ी महत्वाकांक्षाएँ, बढ़ती चुनौतियाँ
चिराग पासवान की राजनीति अब केवल सीटों की संख्या तक सीमित नहीं रह गई है। उनके समर्थकों ने पटना की सड़कों पर “अगला मुख्यमंत्री – चिराग पासवान” वाले पोस्टर लगा दिए हैं। इससे स्पष्ट है कि चिराग अब खुद को राज्य नेतृत्व की वैकल्पिक शक्ति के रूप में स्थापित करना चाहते हैं।
इसी बीच, जदयू भी “बड़े भाई की भूमिका” बनाए रखना चाहता है और भाजपा 101-102 सीटों के अनुपात में बंटवारे की तैयारी कर रही है। लेकिन जब लोजपा, जीतन राम मांझी की हम पार्टी और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी जैसे सहयोगियों की भी बड़ी मांगें हैं, तो यह समीकरण और जटिल हो जाता है।
शाह की कोशिशें जारी, लेकिन समाधान दूर
राजनीतिक सूत्रों के अनुसार, अमित शाह का हस्तक्षेप फिलहाल तनाव कम करने वाला कदम साबित हुआ है, लेकिन स्थिति पूरी तरह नियंत्रण में नहीं आई है। भाजपा नेतृत्व को भरोसा है कि बातचीत के अगले दौर में समझौता हो जाएगा।
हालांकि, राजनीतिक जानकारों का कहना है कि “उम्मीद होना और समाधान निकलना – दोनों के बीच की दूरी बिहार की राजनीति में अक्सर लंबी होती है।”
भाजपा नेताओं का बयान
लोजपा प्रवक्ता धीरेंद्र मुन्ना ने कहा, “सीटों को लेकर अभी कोई औपचारिक बातचीत नहीं हुई है। फोन भले आउट ऑफ रीच हो, लेकिन हमारे नेता हमेशा रीच में हैं।”
उन्होंने यह भी दोहराया कि चिराग पासवान पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि उनकी पार्टी “सम्मानजनक साझेदारी” चाहती है, न कि किसी की दया पर मिलने वाला हिस्सा।