बीजिंग ने अमेरिका की व्यापार नीतियों की आलोचना की, कहा—अपने हितों की रक्षा के लिए कड़ा जवाब देंगे
चीन ने कहा – रूसी तेल खरीदना पूरी तरह वैध, ट्रंप की धमकियों को बताया एकतरफा आर्थिक दबाव
बीजिंग, 17 अक्टूबर।
अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते व्यापारिक तनाव के बीच बीजिंग ने स्पष्ट किया है कि रूस से तेल खरीदना पूरी तरह “वैध” और “अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुरूप” है। चीन ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की हाल की टिप्पणियों को “एकतरफा धमकाने” का उदाहरण बताया और चेतावनी दी कि यदि उसके आर्थिक हितों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की गई, तो वह कड़े प्रतिशोधात्मक कदम उठाएगा।
चीन का यह बयान ट्रंप के उस दावे के बाद आया है जिसमें उन्होंने कहा था कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे वादा किया है कि भारत अब रूस से तेल नहीं खरीदेगा, और उन्होंने चीन से भी ऐसा ही कदम उठाने की मांग की है। ट्रंप ने यह भी आरोप लगाया था कि रूस से तेल खरीदकर भारत और चीन यूक्रेन युद्ध को वित्तपोषित कर रहे हैं।

“वैध आर्थिक सहयोग कर रहे हैं”: चीन
चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने बीजिंग में आयोजित प्रेस वार्ता में कहा,
“चीन रूस सहित दुनिया के सभी देशों के साथ सामान्य, वैध और परस्पर लाभकारी आर्थिक, व्यापारिक और ऊर्जा सहयोग करता है। अमेरिका का इस पर सवाल उठाना अनुचित हस्तक्षेप है।”
उन्होंने आगे कहा कि अमेरिका की कार्रवाइयाँ “एकतरफा धमकाने और आर्थिक दबाव बढ़ाने का विशिष्ट उदाहरण” हैं। लिन जियान ने चेतावनी दी कि यदि चीन के वैध हितों को हानि पहुंची, तो बीजिंग “कड़े जवाबी कदम उठाएगा और अपनी संप्रभुता की दृढ़ता से रक्षा करेगा।”
चीन ने अमेरिका की नीतियों को बताया “हानिकारक”
चीन ने अमेरिका द्वारा हाल में लागू किए गए निर्यात नियंत्रण और चीनी जहाजों पर नए बंदरगाह शुल्क लगाने के निर्णय की कड़ी आलोचना की है। बीजिंग का कहना है कि यह कदम दोनों देशों के बीच जारी व्यापार वार्ता के लिए “बेहद हानिकारक” साबित हुआ है।
हालांकि पिछले कुछ महीनों में अमेरिका और चीन के बीच कुछ बातचीत फिर से शुरू हुई है, परंतु दोनों पक्षों के बीच विश्वास का संकट अभी भी बना हुआ है। किसी स्थायी समाधान की संभावना फिलहाल दूर दिखाई देती है।

रूस के साथ मजबूत व्यापारिक साझेदारी
रूस और चीन के बीच व्यापारिक संबंध पिछले कुछ वर्षों में काफी गहरे हुए हैं। यूक्रेन युद्ध के दौरान जब पश्चिमी देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगाए, तब चीन उसके लिए सबसे बड़ा ऊर्जा खरीदार बनकर उभरा। बीजिंग ने न केवल रूस की निंदा करने से परहेज किया बल्कि लगातार आर्थिक सहयोग बनाए रखा।
पश्चिमी देशों का आरोप है कि चीन इस नीति से रूस को अप्रत्यक्ष रूप से आर्थिक सहारा दे रहा है, हालांकि चीन इसे “तटस्थ रुख” बताता है।
ट्रंप की नई व्यापारिक घोषणाएं
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में कहा था कि वे 1 नवंबर से चीन के उत्पादों पर 100 प्रतिशत अतिरिक्त शुल्क लगाएंगे। यह निर्णय चीन द्वारा “दुर्लभ खनिजों और खनन प्रौद्योगिकियों” के निर्यात पर नियंत्रण बढ़ाने के कदम के जवाब में लिया गया है।
अमेरिका ने अप्रैल में भी “धारा 301” के तहत चीन निर्मित और संचालित जहाजों पर शुल्क लगाने की घोषणा की थी। अमेरिकी व्यापार अधिनियम, 1974 की इस धारा के तहत, अमेरिका को उन देशों पर व्यापारिक प्रतिबंध लगाने का अधिकार प्राप्त है जिनकी नीतियों को अमेरिकी हितों के लिए “अनुचित या हानिकारक” माना जाता है।

चीन का पलटवार
अमेरिकी कदमों के जवाब में चीन ने पिछले सप्ताह अपने बंदरगाहों पर आने वाले अमेरिकी जहाजों पर “विशेष बंदरगाह शुल्क” लगाने का निर्णय लिया, जो मंगलवार से प्रभावी हो गया।
चीनी वाणिज्य मंत्रालय की प्रवक्ता ही योंगकियान ने कहा कि अमेरिका ने “चीन की ईमानदारी और वार्ता की भावना की अनदेखी की है,” जिससे दोनों देशों के संबंधों को गंभीर क्षति पहुंची है।
“स्थिरता के लिए मिलकर काम करें”: चीन के मंत्री
चीन के वाणिज्य मंत्री वांग वेंटाओ ने बीजिंग में एप्पल के सीईओ टिम कुक से मुलाकात के दौरान अमेरिका पर नवीनतम व्यापार विवादों को भड़काने का आरोप लगाया।
वांग ने कहा,
“चीन-अमेरिका व्यापारिक संबंधों की स्थिरता बनाए रखने के लिए दोनों पक्षों को संवाद और सहयोग की भावना से काम करना चाहिए, न कि प्रतिबंधों और धमकियों के रास्ते पर।”
विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका और चीन के बीच यह नया टकराव वैश्विक अर्थव्यवस्था पर गहरा असर डाल सकता है। रूस से ऊर्जा खरीद को लेकर बढ़ता दबाव और व्यापार युद्ध की पुनरावृत्ति आने वाले महीनों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में अस्थिरता को और बढ़ा सकती है।
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